जहां शिव हैं वहां सिद्धि है, जहां शिव हैं वहां न कोई रोग है, न शोक, न विपत्ति, न मृत्यु भय, न बीमारी, न ग्रह दोष, न राज्य बाधा। साधना के क्षेत्र में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होगा जो शिव की साधना न करता हो, चाहे वह संन्यासी हो अथवा गृहस्थ। भगवान त्र्यम्बक जो देवों के देव कहे जाते हैं, उनकी कृपा बिना सिद्धि असंभव है।
भगवान भोलेनाथ अपनी कृपा का अक्षय भण्डार अपने भक्तों पर लुटाते रहते हैं, शीघ्र प्रसन्न हो कर भक्त को वर देते हैं और यदि भक्त संकट के समय उन्हें स्मरण भी कर लेता है तो उसका संकट दूर हो जाता है।
आगे की पंक्तियों में शिव और शक्ति दोनों का सम्मिलित एक ऐसा शिव कवच दिया जा रहा है, जो कि सभी प्रकार की विपत्तियों के नाश और अकाल मृत्यु-भय से छुटकारा दिलाने में समर्थ है। कितना भी भयंकर रोग हो, यदि इस त्र्यम्बक कवच का पाठ कर जल रोगी को पिला दिया जाये तो उसे अवश्य ही आराम प्राप्त होता है।
अपने सामने सुन्दर शिव-चित्र तथा भगवती दुर्गा का चित्र स्थापित कर एक ताम्र पात्र में शिव त्र्यम्बक महामृत्युंजय यंत्र स्थापित कर शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करें। इस साधना में अपने पास जैसा भी शिवलिंग हो, उसे भी अवश्य स्थापित कर देना चाहिये तथा हाथ में जल लेकर चारों ओर घेरा बना लेना चाहिये। अब रूद्राक्ष माला से शिव का ध्यान कर एक माला ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जप करें तत्पश्चात् हाथ में जल लेकर नीचे लिखा विनियोग मंत्र व न्यास तथा ध्यान करें और उसी स्थान पर बैठे-बैठे एक माला मूल मंत्र का जप अवश्य करें, इसमें समय अवश्य लगेगा लेकिन मंत्र जप पूर्ण रूप से अवश्य करना है।
इस प्रयोग को किसी भी सोमवार से अथवा पुष्य नक्षत्र से प्रारम्भ किया जा सकता है। प्रतिदिन एक माला मंत्र अनुष्ठान सम्पन्न करते हुये 11 दिन निरंतर यह प्रयोग करना है तथा पूजा स्थान में यंत्र के आगे जो कलश जल से भर कर रखें वह जल ग्रहण कर लें तथा दूध का नैवेद्य और फल पूजा प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।
अस्य श्री शिवकवच स्तोत्रमंत्रस्य ब्रह्म ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः।
श्री सदाशिव रूद्रो देवता ह्रीं शक्तिः रं कीलकं।
श्री ह्रीं क्लीं बीजम्। श्री सदाशिवप्रीत्यर्थे शिवकवच स्तोत्र जपे विनियोगः।
ऊँ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ऊँ रां सर्वशक्ति धाम्ने ईशानात्मने अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ऊँ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ऊँ क्लीं सर्वशक्ति धाम्ने वायव्यात्मने तर्जनीभ्यां नमः।
ऊँ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ऊँ मं रूं अनादिशक्ति धाम्ने अघोरात्मने मध्यमाभ्यां नमः।
ऊँ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ऊँ शिरः स्वतंत्र शक्तिधाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्यां नमः।
ऊँ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ऊँ वां रौं अतुलशक्ति धाम्ने सद्याजातात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ऊँ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ऊँ यं रं अनादि शक्तिधाम्ने सर्वात्मने करतल-कर पृष्ठाभ्यां नमः।
वज्रंदष्ट्रं त्रिनयनं काल कण्ठमरिन्दमम्।
सहस्त्रकरमत्युग्रं वन्दे शम्भुमुमापतिम्।।
अथापरं सर्वपुराणगुह्यमशेषपापोधहरं पवित्रम्।
जय प्रदंसर्वविपत्प्रमोचनं वक्ष्यामिशैवं कवचं हितायते।।
ऊँ नमो भगवते सदाशिवाय सकल तत्वात्मकाय सर्व मंत्र रूपाय सर्वयन्त्राधिठिताय सर्व तन्त्ररूपाय सर्वतन्व विदूराय ब्रह्मरूद्रावतारिणे नीलकण्ठाय पार्वती मनोहर प्रियाय सोम सूर्याग्नि लोचनाय भस्मोल्लसत विग्रहाय महामणि मुकुट धारणाय माणिक्य भूषणाय सृष्टि स्थित प्रलय काल रौद्रावताराय दक्षाध्वरध्वंसकाय महाकाल भेदनाय मूलाधारैक नीलकाय, तत्वातीताय, गंगाधराय सर्वदेवाधिदेवाय षडाश्रयाय वेदान्त साराय।
सर्वतो रक्ष रक्ष मामुज्वलोज्वल, महामृत्युभयं मृत्युभयं नाशय नाशय, अरिभयमृत्सादयोत्सादय विषसर्वभयं शमय-शमय, चौरान् मारय मारय, मम शत्रूनुच्चाटयोच्चाटय, त्रिशूलेन विदारय विदारय, कुठारेण भिन्धि भिन्धि, खड्गेन छिन्दि छिन्दि।
खट्वांगेनविपोथय विपोथय मूसलेन निष्पेषय निषनेषय, वाणैः सन्ताडय सन्ताडय रक्षांसि भीषय भीषय, अशेष भूतानि विद्रावय विद्रावय, कूष्माण्ड वेताल, मारीगण, ब्रह्मराक्षसगणान् सन्त्रासय सन्त्रासय, ममांभयं कुरू कुरू बिन्नस्तंमामाश्वासयाश्वासय, नरकमहाभयान्मामुद्धरोद्धर संजीवय संजीवय, क्षुतृडभ्याम् मामानन्दयानन्दय।
शिव-कवचेन मामाच्छादयच्छादय मृत्युंजयं त्र्यंम्बकं सदाशिव नमस्ते।।
शिव साधना का यह प्रयोग मंत्र यदि प्रतिदिन पांच बार जप किया जाये तो रोग तथा शोक साधक के पास फटक ही नहीं सकते। भगवान शिव की कृपा से साधक अपने मार्ग में आने वाली विपत्तियों को सरलता से दूर कर जीवन में पूर्ण शिवत्व की ओर अग्रसर होता है तथा पूरे परिवार को सुख, सौभाग्य एवं शांति प्राप्त होती है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,