जीवन एक दौड़ के समान है, एक खत्म तो दूसरी शुरू और रूकना कही नहीं, इसमें हार-जीत से कोई मतलब नहीं सिर्फ भागते रहना गोल-गोल, हर दौड़ हमसे कुछ लेती हैं, इस दौड़ में कोई चैन सुकून नहीं है, आप निरन्तर किसी न किसी समस्या को सुलझाते या उससे भागते रहे हो, एक खत्म तो दूसरी समस्या आपके द्वार खड़ी होती है, जितना छिप लो, भाग लो यह आपका पीछा नहीं छोड़ती। अधिकतर यह समस्यायें समाज द्वारा रचित होती हैं, जिसका उद्देश्य केवल समाज में होने वाली घटनाओं को देख एक नया नियम बनाना, सामान्य जीवन को और कठिन करना, एक चौखटा या ढाँचा बनाना उसी के अन्दर चलने को बाध्य करना है। समाज का उद्देश्य समाज के लोगों को प्रगतिशील करना होता है- परन्तु आज वास्तविकता में समाज हमें आगे ढकेल रहा है, एक नये नियम, एक नई परिवेश व समस्या के मुंह में जब पूर्व की समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ होता है। समस्या के समाधान हेतु रूकना जरूरी है, उसका मूल जानना जरूरी है, विचार-विमर्श करना, साथ ही साथ समाज के कुछ मूल्यों को चुनौती देना आवश्यक है, जो हमें विचार करने, सवाल करने, कुछ अपने लिये करने से रोकते हैं। जब समाज का कोई व्यक्ति कुछ नया करता है तो समाज उसे रोकता है, थू-थू करता है, पर जब वही व्यक्ति सफल होता है तो उसे माला-शॉल पहना कर उसका सम्मान करता है।
मेरा यहाँ यह उद्देश्य नहीं कि मैं समाज की बुराई करू या उसका तिरस्कार करू। अपितु उस दौड़ को एक मार्ग दूं, जिससे आप आगे बढ़ सकें। गुरू वो आसरा वो झोली है जहाँ शिष्य अपनी ऊर्जा जमा कर सके, एक ऐसा आंचल जहाँ उसे एक ठेहराव मिले, एक शक्ति पून्ज जो साधक को शीतलता दे, आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करे, शिष्य अपने जीवन में उस ऊर्जा का संचार करे जो उसे हर दौड़ में जीतने की निरन्तर चेतना दे और वह हर कार्य मात्र करने नहीं अपितु विजय होने के मानस से करे। एक शिष्य दूसरों के उदाहरण पर अपने जीवन का निर्माण नहीं अपितु स्वयं का जीवन एक जीवन्त उदाहरण स्वरूप हो।
इस श्रावण मास आप सभी अपने जीवन की विषरूपी समस्याओं के समाधान व अपने जीवन को अर्धनारीश्वर स्वरूप पूर्ण व जीवन को रिद्धि-सिद्धि योग्यवान व गुणवान व भगवान कार्तिकेय के समान शौर्यवान बनाने हेतु अवश्य ही कैलाश सिद्धाश्रम में रूद्राष्टाध्यायी व अभिषेक हेतु पूरे परिवार सहित 19-20-21 अगस्त, श्रावण सुहाग वृद्धि हरियाली तीज दीक्षा महोत्सव में अवश्य आयें।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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