गणपति, विघ्नविनाशक, सिद्ध लक्ष्मीप्रदायक देवताओं में अग्रण्य पूज्य है। बिना गणपति पूजा के अन्य समस्त सिद्धियां, साधनाएं, पूजा आदि निष्फल है। इष्ट के रूप में गणपति शीघ्र एवं निश्चित फलदायक है-
बीजापूर गदेक्षु कार्मुकरूजा चक्राब्जपाशोत्पल।
ब्रीह्य ग्रस्य विषाण रन्न कलश प्रोद्यत्कराम्भोरूहः।।
ध्येयो बल्लभया स पद्म करयाश्लिष्टो ज्वलद्भूषया।
विश्वोत्पति विपत्ति संस्थित करो विघ्नेश इष्टार्थदः।।
सिद्ध लक्ष्मी गणपति
विनियोग-
ऊँ अस्य श्री गणपति महामंत्रस्य गणक ऋषि,
निचृद् गायत्री छन्दः महागणपतिदेवता,
सिद्ध कामेश्वरी लक्ष्मी गणपति मंत्रे विनियोगः।
करन्यास
ऊँ श्रीं हृीं क्लीं ओं गं अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ऊँ श्रीं हृीं क्ली श्रीं गी तर्जनीभ्यां स्वाहा।
ऊँ श्रीं हृीं क्लीं ह्रीं गूं मध्यामाभ्यां वषट्।
ऊँ श्रीं हृीं क्लीं ह्रीं गैं अनामिकाभ्यां हुं।
ऊँ श्रीं हृीं ग्लौं गैं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्।
ऊँ श्रीं हृीं क्लीं गं गः करतलकरपृष्ठाभ्यां फट्।
षडंगन्यास
ऊँ श्रीं हृीं क्लीं ओं गां हृदयाय नमः।
ऊँ श्रीं हृीं क्लीं श्रीं गीं शिरसे स्वाहा।
ऊँ श्रीं हृीं क्लीं हृीं गूं शिखायै वषट्।
ऊँ श्रीं हृीं क्लीं क्लीं गैं कवचाय हुं।
ऊँ श्रीं हृीं क्लीं ग्लों गौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ऊँ श्रीं हृीं क्लीं गं गः अस्त्राय फट्।
ध्यान
ध्याये हृदब्जे शोणांगं दामोत्संग विभूषया।
सिद्धलक्ष्म्या समाश्लिष्ट पार्श्वमर्धेन्दु शेखरम।।
वामाधः करतो दक्षाधः करान्तेषु पुश्करे।
परिष्कृतं मातु लुंगं गदा पुण्डेक्ष कार्मकैः।।
शूलेन शंखचक्राभ्यां पाशोत्पल युगेन च।
शालि मंजरिका स्वीय दन्तान्जल मणि घटै।।
स्त्रवन्मदंच सानन्दं श्री श्रीपत्यादि सम्बृतम्।
अशेष विघ्न विध्वंस निघ्नं विघ्नेश्वरं भजे।।
उपयुक्त मंत्र नित्य एक माला मंत्र जप करें। गणपति प्रयोग कई है, तांत्रिक मांत्रिक कार्यो में विविध गणपति स्मरण होते है-
पीतं स्मरेत स्तम्भन कार्य एवं वश्याय मंत्री ह्यरूणं स्मरेत तम्।
कृष्ण स्मरेन्मारण कर्मणीश कृष्णं धूमनिभं स्मरेत तम्।।
बन्धूक पुष्पादि निभं च कृष्टौ स्मरेद धनार्थो हरिवर्णमेनं।
मुक्तों च शुक्लं मनुवित स्मरेत तम्।
एवं प्रकारेण गणं त्रिकालं ध्यांजपन् सिद्धियुतो भवेत सः।।
अर्थात् स्तंभन कार्य में पीत कांति वाले गणेश जी के स्वरूप का ध्यान साधको को करना चाहिये। वशीकरण के लिये अरूण कांतिमय स्वरूप, मारण कार्य के लिए कृष्ण कांति का ध्यान, उच्चाटन में धू्रम वर्ण वाला स्वरूप, आकर्षण कार्य में बन्धुक पुष्पवत स्वरूप, पुष्टि कार्य में लाल वर्ण के गणेश जी का ध्यान करे। लक्ष्मी चाहने वाले हरितवर्ण तथा मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक साधक शुक्ल वर्ण वाले गणेश स्वरूप का ध्यान करें। इस प्रकार से गणेश का ध्यान करने पर ही साधक अपने उदेश्य में सफलता प्राप्त करता है।
लक्ष्मी किस स्वरूप में और कब अपने साधक का उद्धार कर देती है, यह कोई निश्चित रूप से नहीं कह सकता परन्तु इतना निश्चित है कि जो साधक निश्चित रूप से लक्ष्मी साधना करते रहते है, उन पर लक्ष्मी कृपा अवश्य होती है।
एक विशेष प्रयोग पाठकों हेतु स्पष्ट किया जा रहा है, इस प्रयोग के सम्बन्ध में इतना निश्चित है कि साधक को फल किसी ने किसी रूप में अवश्य ही मिलता है।
लक्ष्मी साधना के सम्बन्ध में जो विधियां तंत्र साहित्य में तथा अन्य शास्त्रों में दी गयी है, साधक उनका पालन पूर्णतया नहीं करते, कुछ दिन मंत्र अनुष्ठान करने के पश्चात् उसे छोड़ देते है, कई बार तो साधना में उचित सामग्री अथवा उचित विधि का अभाव होने से ही इस साधना में सफलता नहीं मिलती। लक्ष्मी साधना में कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-
इस विष्टिप्रयोग हेतु केवल श्री कामेश्वरी महालक्ष्मी यंत्र तथा कमल गट्टा माला आवश्यक है।
अर्द्ध रात्रि को स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहिन कर ऊनी आसन पर पीला रेशमी वस्त्र बिछा कर पश्चिम दिशा की ओर मुंह कर साधक अपने पूजा स्थान में बैंठें, अपने सामने एक लकड़ी के बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा कर उस पर चावल की ढेरी बना कर ताम्र कलश स्थापित करें, कलश में जल डालें, तथा इसके साथ ही ग्यारह कमल गट्टा बीज तथा दूव डालें, तत्पश्चात अपने सामने एक तांबे का दीपक जलायें, इस दीपक में जो बत्तियां हो वे कम से कम पांच अवश्य हो, तथा इससे अधिक बत्तियों का प्रयोग करें तो वे विषम संख्या में ही होनी चाहिये। दीपक में शुद्ध घी का ही प्रयोग करें।
अब साधक चन्दन तथा अबीर गुलाल से कलश का पूजन कर दूसरे ताम्र पात्र में श्री कामेश्वरी महालक्ष्मी यंत्र स्थापित करें, चन्दन, गुलाल तथा सिन्दूर से यंत्र का पूजन करें तथा यंत्र के आगे पुष्प स्थापित करें।
अब साधक पद्म मुद्रा में बैठ कर प्रसाद अर्पित करते हुये प्रार्थना मंत्र का 21 बार उच्चारण करें।
अब साधक जल को अपने नेत्रों से लगावें तथा सामान्य मुद्रा में बैठ कर कमल गट्टा माला से इस विशिष्ट कामेश्वरी बीज मंत्र का जप करें।
इस प्रकार मंत्र जप पूर्ण कर प्रसाद ग्रहण करें और जितने दिन भी यह मंत्र जप चल रहा हो उतने दिन तक एक समय भोजन करें।
इस जप की पूर्णता होने पर महालक्ष्मी की पूजा से साधक को निश्चित फल प्राप्ति अवश्य होती ही है, इसमें संदेह रखने वाला जीवन भर दरिद्री ही रहता है।
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