भगवान बुद्ध को विष्णु जी का नौंवा अवतार माना जाता है। भगवान विष्णु के बुद्ध अवतार की कथा कई महत्वपूर्ण धर्म ग्रंथ जैसे विष्णु पुराण, भागवत पुराण, कल्कि पुराण, ललित विस्तार, श्री नरसिंह पुराण में उल्लेखित हैं। इन्हें बुद्धदेव के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने कलयुग में पौष मास की शुक्ल सप्तमी के दिन कीकट, बिहार में जन्म लिया था। इनके पिता (अजन) हेमसदन व माता अंजना थीं। बुद्ध अवतार में भगवान विष्णु का शांत स्वरूप है और उस रूप के द्वारा उन्होंने सम्पूर्ण संसार को मोहित कर लिया।
भागवत में एक स्थान पर बुद्ध के बारे में वर्णन है कि :-
अपना स्थिर साम्राज्य स्थापित करने हेतु कलयुग में दैत्यों को पूजा-पाठ, हवन, दान आदि के महत्व व इनमें व्याप्त शक्तियों का ज्ञान हो गया परिणामतः दैत्यों ने वेद पठन करना, हवन-यज्ञ, भगवान की पूजा करना, दान करना आरंभ कर दिया। उन्होंने जनेऊ धारण कर स्वयं को ब्राह्मण घोषित कर दिया। दैत्यों ने वेद विहित आचरण करना भी आरंभ कर दिया। इससे दैत्यों की शक्ति अत्यधिक हो गई। यह देख इन्द्र आदि सभी देव विचलित हो उठे, उन्हें असुरों की बढ़ती शक्तियों का भय होने लगा। इससे मुक्ति के लिये सभी देवगण भगवान विष्णु के समीप गये। तब भगवान विष्णु दैत्यों को मोहित करने के लिये कीकट क्षेत्र (वर्तमान में गया, बिहार में है) में बुद्ध रूप में अवतरित हुये।
एक बार जब सभी दैत्य इकट्ठे होकर महायज्ञ कर रहे थे तब वहां भगवान बुद्ध आये, उनके हाथ में मार्जनी रहती थी और वे सदा मार्ग को बुहारते हुये चलते थे। इस प्रकार भगवान बुद्ध दैत्यों के पास पहुंचे और उन्हें उपदेश दिया कि यज्ञ से जीव हिंसा होती है। यज्ञ की अग्नि से कितने ही प्राणी भस्म हो जाते हैं। भगवान बुद्ध के उपदेश से दैत्य प्रभावित हुये। उन्होंने यज्ञ व वैदिक आचरण करना छोड़ दिया। इसके कारण उनकी शक्ति भी क्षीण हो गई, समस्त देवता भी चिन्तामुक्त हो गये। इस प्रकार भगवान विष्णु ने बुद्ध का अवतार धारण कर दैत्यों को धर्म से विमुख किया और देवताओं के मान-सम्मान की रक्षा की तथा दैत्यों द्वारा धर्म से अनुचित लाभ प्राप्त करने के प्रयास को समाप्त किया।
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