भगवान श्री कृष्ण के अग्रज श्री बलराम को विष्णु जी के आठवें अवतार माना जाता है। भगवत पुराण, विष्णु पुराण में इन्हें महाविष्णु के दशावतारों में से एक माना गया है। हरिवंश पुराण में इन्हें संकर्षण नाम से भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में दर्शाया गया है। वहीं कई अन्य हिन्दू पुराणों में इन्हें श्री विष्णु के शेषनाग जिस पर वे सदा विराजमान रहते हैं, उनका अवतार माना गया है। श्री बलराम अपने शारीरिक बल एवं कर्त्तव्य निष्ठा के लिये अत्यन्त प्रचलित हैं। इन्हें बलदेव, बलभद्र, हलधर आदि नामों से बोधित किया जाता है। प्रतिवर्ष इनकी जयन्ती को हलषष्ठी के रूप में मनाया जाता है।
महाभारत ग्रंथ में श्री बलराम के जन्म का वर्णन करते हुये बताया गया है कि जब इन्द्रादि देवताओं ने भगवान विष्णु से धरती पर क्रूर शासक कंस की अनीति का अंत करने के लिये सहायता मांगी तब भगवान विष्णु ने अपने सिर से एक सफेद बाल व एक काले वर्ण का बाल निकाल कर देवताओं को शीघ्र ही कंस की अनीति का अंत करने के लिये आश्वस्त किया था।
इस प्रकार पहले सफेद केश के वर्णानुसार बलराम इसके पश्चात् काले केश यानि कि भगवान कृष्ण माता देवकी की कोख में प्रविष्ट हुये। इसी कारण से बलराम जी गौर वर्ण व श्री कृष्ण श्याम वर्ण थे। भगवान बलराम के जन्म की कथा भी अद्भुत एवं अलौकिक है। कंस पहले ही माता देवकी की छः संतानों की निर्मम हत्या कर चुका था। इसलिये जब बलराम जी उनके गर्भ में थे तब श्री विष्णु के निर्देश पर देवी योगमाया ने अपनी शक्ति से उनका संकर्षण कर वासुदेव की दूसरी अर्धांगिनी रोहिणी की कोख में स्थानांतरित कर दिया। माँ रोहिणी उस समय गोकुल में रह रही थी और उनके द्वारा उत्पन्न संतान से कंस के प्राणों को कोई खतरा नहीं था, इसलिये उन्हें कारागार में नहीं रखा गया था। इस प्रकार बलराम जी का जन्म माँ रोहिणी द्वारा अत्यन्त शुभ मंगल बेला भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि पर हुआ। श्री कृष्ण एवं अन्य उन्हें दाऊ के नाम से बोधित करते थे।
श्री बलराम ने कई भीषण युद्ध लड़े। बहुत कम उम्र में ही बलराम जी ने श्री कृष्ण के साथ मिलकर धेनुकासुर का वध कर दिया था। मथुरा जाकर बलराम जी एवं कृष्ण जी ने मिलकर कंस का अंत किया था। उसके पश्चात कंस के पिता राजा उग्रसेन को बंदीगृह से मुक्त कर पुनः मथुरा का राज्यपद उन्हें सौप दिया था। भगवान बलराम शौर्य एवं बल के प्रतीक हैं। अपने जीवनकाल में इन्होंने एक आज्ञाकारी पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति एवं आदर्शवादी पुरूष का उदाहरण प्रस्तुत किया। ये हमें जीवन में कर्तव्य निष्ठा भाव से सत्य के मार्ग पर निडर होकर चलने की प्रेरणा देते हैं। साथ ही सरलता से व सज्जनता से जीवन मार्ग पर प्रशस्त होने की शिक्षा देते है।
इनके दर्शन मुख्यतः बलदेवज्यु जी मन्दिर इच्छापुर केन्दरापारा, उड़ीसा में, दाऊजी मन्दिर मथुरा में, अनंत वासुदेव मन्दिर भुवनेश्वर में किये जा सकते हैं जहां ये सात सर्प के मुकुट धारण किये हुये हैं। वहीं जगन्नाथ पुरी में भी भगवान बलराम के दर्शन किये जा सकते हैं। इनके दर्शन मात्र से ये अपने भक्तों को भयमुक्त कर बल एवं पराक्रम प्रदान कर अभिप्रेरित कर देते हैं। जगन्नाथ की रथयात्रा में इनका भी एक रथ होता है।
सांसारिक मनुष्य यदि रेवति नक्षत्र से रोहिणी नक्षत्र के मध्य संकल्प के साथ इनका विशेष ध्यान व पूजन करता है तो वह भी जीवन संग्राम में श्री बलराम की भांति श्रेष्ठता एवं शक्ति सम्पन्न बन जाता है।
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