उस पशु जीवन से केवल गुरू ही ऊपर उठा सकते हैं। मनुष्य जीवन का क्या उद्देश्य है, इसे देवता भी नहीं बता सकते, क्योंकि जिन्होंने जन्म लिया ही नहीं वे इस मर्म को नहीं समझ सकते। परन्तु गुरू ने जन्म लिया है और जन्म लेकर पूर्णता तक पहुँचे हैं।
गुरू तुम्हें मात्र दीक्षा ही नहीं देता है, वह तुम्हारे रक्त को शुद्ध करता है, जिसमें पीढ़ी दर पीढ़ी का छल, कपट, असत्य, व्याभिचार समाया हुआ है। गुरू तुम्हें एक चिंगारी देता है, एक क्रान्ति देता है, एक विस्फोट देता है और अमृत्यु की ओर ले जाने की क्रिया देता है।
माँ-बाप ने जन्म दिया, वह तो एक स्वाभाविक क्रिया थी, परन्तु गुरू शिष्य को वापस नये सिरे से एक नया जन्म देता है, उसे चेतना प्रदान करता है, इस नये जीवन का लक्ष्य होता है, धारणा होती है, एक आगे बढ़ने की क्रिया होती है।
मनुष्य की दुर्धर्ष प्रवृतियां स्वतः अपने आप जन्म लेती है, उनको समाप्त करने के लिये सिद्धाश्रम कुछ विशिष्ट योगियों, कुछ विशिष्ट महात्माओं को संसार में भेजता है, जो अपनी पवित्रता और दिव्यता के संदेश के माध्यम से उन लोगों में भौतिक व आध्यात्मिक चेतना पैदा करते हैं।
समर्पण के पहले गुरू सैकड़ों बार उसकी परीक्षा लेता है, जैसे सोने का मुकुट बनाने से पहले सोने को सैकड़ों बार तपाया जाता है, उसे आग में झोंका जाता है, कूटा जाता है, बार-बार उसको तोड़ा जाता है, खींच कर तार बनाया जाता है, मगर फिर भी वह सोना उफ भी नहीं करता है, क्योंकि उसने समर्पण कर दिया है स्वर्णकार के हाथों। फिर स्वर्णकार उसे टंच-टंच कर मुकुट बना देता है, जो मनुष्य नहीं देवताओं के सिर पर शोभायमान होता है। सद्गुरू भी शिष्य को इसी तरह तपा कर कुंदन बना देते हैं।
अर्जुन, कृष्ण को एक सामान्य आदमी ही समझ रहा था। मगर कृष्ण ने अर्जुन को जब ध्यानस्थ चेतना प्रदान की, तब अर्जुन समझ सका कि ये सामान्य मनुष्य नहीं है। इसी प्रकार सद्गुरू यदि चाहे तो किसी भी शिष्य या साधक को ध्यान की उस अवस्था तक पहुँचा सकते हैं।
हजारों-लाखों व्यक्तियों में से कोई एक बिरला व्यक्ति ऐसा निकल पाता है, जो सद्गुरू की उंगली पकड़ कर आगे बढ़ने की क्रिया प्रारम्भ करता है। हजारों-लाखों व्यक्तियों में से किसी एक में ही ऐसी चेतना प्राप्त होती है, जो उनकी वाणी को समझ सकता है। हजारों-लाखों व्यक्तियों में से किसी एक में ही भाव जाग्रत होते हैं, जब वह सद्गुरू के पास रह सकता है… उनके साथ चलने की क्रिया प्रारम्भ करता है, वह पहचान लेता है, उसकी आँखे पहचान लेती है-कि व्यक्तित्व साधारण नहीं है।
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