कल्कि भगवान श्री विष्णु के दसवें अवतार माने जाते हैं, जिनका अवतरित होना अभी शेष है। भागवत के बारहवें स्कंध के द्वितीय अध्याय में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार का विस्तरित वर्णन है। उसके अनुसार श्री विष्णु सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर जब गुरू, सूर्य एवं चन्द्रमा एक साथ पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेंगे तब कल्कि के रूप में अवतरित होंगे। उनके जन्म स्थान का उल्लेख भी एक श्लोक में मिलता हे-
अर्थात सम्भल गांव में विष्णुयश नामक श्रेष्ठ ब्राह्मण के पुत्र के रूप में भगवान कल्कि का जन्म होगा। पुराणों में यह भी वर्णित है कि इनकी माता का नाम सुमति होगा, इनके माता-पिता भगवान विष्णु के परम भक्त एवं वेदों के ज्ञाता होंगे। इनके सभी भाई देवताओं के अवतार होंगे और धर्म की स्थापना में इन्हें सहयोग देंगे। भगवान विष्णु के श्री कल्कि अवतार 64 कलाओं से युक्त होंगे। इनके गुरू चिरंजीवि परशुराम जी होंगे जो वर्तमान में महेन्द्र पर्वत पर ध्यान मग्न हैं। गुरू परशुराम जी इन्हें युद्ध कलाओं में निपुण बनायेंगें तथा इनके निर्देश पर ही कल्कि भगवान शिव की तपस्या करेंगे और दिव्यशक्तियों को प्राप्त कर अधर्म का अंत करेंगे।
भगवान कल्कि हिन्दु धर्म के वे पहले देवता व भगवान विष्णु के ऐसे पहले अवतार हैं जिन्हें अवतरित होने से पहले ही पूजा जाने लगा है। इनके कई मंदिर है और इनकी शांति स्थापित कराने वाले संधाता के रूप में पूजा एवं साधना कई वर्षों से की जाती आ रहीं है। अग्निपुराण में कल्कि भगवान का वर्णन तीर कमान धारण किये, हाथ में तलवार लिये, श्वेत अश्व पर सवार के रूप में मिलता है। भगवान का रंग गोरा है, परन्तु क्रोध में काला भी हो जाता हैं। इन्होंने पीले वस्त्र धारण किये हैं। इनके हृदय पर श्री वत्स का चिन्ह अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि है। स्वयं इनका मुख पूर्व की ओर है तथा अश्व दक्षिण में देखता प्रतीत होता है। श्वेत अश्व श्री कल्कि के आक्रमण में शांति एवं शक्ति दोनों को दर्शा रहे हैं। युद्ध के समय उनके हाथों में दो तलवारें होती हैं। धनुष और तलवार का हथियार के रूप में उपयोग आसपास और दूरगामी दोनों तरह की दुष्ट प्रवृत्तियों के निवारण के प्रतीकात्मक हैं।
पुराणानुसार भगवान कल्कि का यह प्रभावशाली एवं भावपूर्ण चित्रण उनकी सक्रियता और गति की ओर संकेत करता है।
श्रीमद् भगवत् पुराण के बारहवें स्कन्द में यह भी लिखा है कि भगवान विष्णु कल्कि अवतार के रूप में कलियुग के अंत और सत्ययुग के संधि काल मे प्रकट होंगे।
भगवान राम और श्री कृष्ण के अवतार भी अपने-अपने युगों के अंत में अवतरित हुये थे। इसलिये जब कलयुग का अंत निकट आ जायेगा तब भगवान कल्कि जन्म लेंगे।
कल्कि पुराण के अनुसार कलयुग में पाप की सीमा पार होने पर जब लोग धर्म का अनुसरण करना पूर्णतः बन्द कर देंगे तब कल्कि अवतार प्रकट होंगे। ये पापियों का संहार करेंगे और साधु-संतो एवं पवित्र मन वालों की रक्षा करेंगे। राक्षसी प्रवृति वाले लोगों का विनाश होगा, पुनः धर्म की स्थापना होगी व सतयुग का आरंभ हो जायेगा। श्री कल्कि अवतार समाज के विचारों, मान्यताओं और गतिविधियों की दिशाधार में बदलाव लायेंगे। वे असुरों एवं दुष्टों के संहार के साथ ही उनके मन मानस विचार-धारा को अपने विधान से बदलेंगे।
निधि श्रीमाली
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