संसार में दुःख है, हर दुःख का कारण है और हर दुःख का निवारण भी है…….. सद्गुरू की कृपा प्राप्त करने का सरल उपाय ही दीक्षा है….. और शिष्य का धर्म यही है, कि पुनः पुनः गुरू चरणों में उपस्थित होकर दीक्षा द्वारा अपने अभीष्ट की सिद्धि करे। सद्गुरू करूणा करके भले ही शिष्य को कुछ प्रदान कर दे, यह उनकी कृपालुता है, परन्तु शिष्य का धर्म तो यही है, कि वह प्रार्थना कर गुरूदेव से दीक्षा प्राप्त करे। भगवान शिव पार्वती को शिष्य के इस धर्म के बारे में दीक्षा के महत्त्व को इस प्रकार से स्पष्ट किया है-
दीक्षाविधिं प्रवक्ष्यामि साधकानां हितेच्छया।
विधाय विधिवद् दीक्षां पशुत्वात् स विमुच्यते।।1।।
शास्त्रोक्त विधि द्वारा दीक्षा ग्रहण के बाद साधक पशुत्व भाव से मुक्त होकर विशिष्ट भाव में प्रवेश करता है।
दीयते परमा सिद्धिःक्षीयते कर्मवासना।
आप्यते परमं धाम तेन दीक्षा स्मृता शिवे।।2।।
हे पार्वति जिस क्रिया के माध्यम से सांसारिक भोग वासना की समाप्ति व परम तत्व की प्राप्ति संभव होती है, उसे दीक्षा कहते है।
बह्मादिकीटपर्यन्तं जगत्सर्वं महेश्वरि।
पशुत्वं मोहितं देव्यास्तस्माद् दीक्षां चरेत् कलौ।।3।।
हे महेश्वरि! ब्रह्मा से लेकर कीट पर्यन्त समस्त प्राणि पशु भाव से आवेष्ठित है, उससे मुक्त होने के लिये दीक्षा ग्रहण करना चाहिये।
दीक्षितो याति शरणं दीक्षाहीनो भवेत् पशुः।
दीषितस्तु भवेज्ज्ञानी पशुभावोज्झितो विभुः।।4।।
दीक्षा के बिना पशुभाव की समाप्ति हो ही नहीं सकती, दीक्षा के बाद पशुभाव से मुक्त होकर वह साधक ज्ञान एवं ब्रह्मत्व को प्राप्त कर सिद्धि पुरूष बन जाता है।
सर्वपातकमुक्तो हि लभेत् स परमां गतिम्।
यस्य दीक्षा शिवे! नास्ति जीवनान्तं च जन्मिनः।।5।।
दीक्षित साधक सभी पापों से मुक्त होकर परम स्थिति को प्राप्त करता है। हे पार्वती! जिस व्यक्ति की दीक्षा नही हो पाती, उसका जीवन व्यर्थ होता है।
अन्ते पशुर्मनुष्यः सन् पशुयोनिं व्रजेच्छिवे।
पूर्व पुण्यार्जितां प्राप्यं वासनां परमार्थदाम्।।6।।
दीक्षा के बना व्यक्ति के अन्दर परमार्थ की ओर जाने की भावनाएं नहीं आती है और अंत में पशुयोनि को वह प्राप्त होता है।
गुरू कुलीनं तंत्रज्ञं सर्वाग्डैः सुमनोहरम्।
लब्ध्वा भक्तया प्रणम्यादौ तोषयित्वा विशेषतः।।7।।
सत्कुल में उत्पन्न, सुन्दर शरीर वाले गुरू की शरण में जाकर, उन्हें प्रणाम करे, सेवा से प्रसन्न करे, गुरू दक्षिणा देकर सुनिर्णीत मुहूर्त में साधक श्रद्धापूर्वक दीक्षा ग्रहण करें।
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