तेजस्वी सौन्दर्य और दिव्य आभा का मेल ही सही स्वरूप है योगिनी का। तनुकाय और शरीर पर अवलोकित स्वर्णिम आभा उनका विन्यास रच देता है किसी स्वर्णिम मूर्ति का। उनकी शांत किन्तु तीखी काली आभा से युक्त आँखों से ही स्पष्ट होती है उनकी अन्दर छुपी तंत्र की विलक्षण तीव्रता …. अन्दर तक उतरती पैनी दृष्टि, साधनाओं का बल लिए भगवान शिव की साक्षात् कृति, जो काम या उपभोग की वस्तु नहीं है, और इसी से जब किसी साधक ने साधना काल में रखी इनके प्रति कोई कुदृष्टि या कुविचार, तो साधना में असफल होने के साथ मृत्यु तक को भी प्राप्त हो गया… और फिर जुड़ गयी अनोखी कथाएं, वीभत्स कथाएं, विकृत मानसिकताओं की उपज, गढे़-गढ़ाये सनसनी खेज संस्मरण….
‘दीर्घकाय, भीषण आकृति वाली, जिसका वर्ण श्याम है- ऐसी स्थूलकाय जिसके विशाल वक्ष-स्थल पर बाल गज के समान स्तनद्वय शोभायमान है…. जिनकी मुख मुद्रा अत्यंत रक्तिम और नेत्र भयोत्पादक है, ऐसी रक्त-वर्ण वस्त्रों को धारण करने वाली प्रचण्ड योगिनी मातेश्वरी की मैं वन्दना करता हूँ।’’
‘एक हाथ में भाला और दूसरे में खड्ग धारण कर क्रोधातुर हो रही, शेष दोनों हाथों में शत्रु के शव से निकले रक्त को अपने वस्त्रों में विलीन करती देवी! मेरे जीवन में सहायक हों…..’
कई-कई रूप वर्णित है योगिनी के साधकों के मध्य और यह स्वरूप है उनके मातृरूप का। प्रेमिका रूप भी वर्णित है योगिनी का, लेकिन वह सामान्य साधक का रूप भी वर्णित है योगिनी का, लेकिन वह सामान्य साधक-जगत की बात नहीं, क्योंकि वहा वासना के लिए किंचित् मात्र भी स्थान नहीं।
सौम्यतम स्वरूप है योगिनी का भगिनी स्वरूप में, और क्या – क्या नहीं जुड़ जाता साधक के जीवन में योगिनी के भगिनी स्वरूप में सिद्ध हो जाने से, जो आतुर हो अपने साधक को जीवन के सभी सुख देनें में, भले ही वे इच्छा प्रकट करें या न करें। दूर पड़ी किसी वस्तु को उठा लाने जैसी बात हो या धन का भण्डार खोल देने जैसी कृपा, मनोनुकूल, विवाह सम्पन्न कराने या प्रेमिका मिलन कराने जैसी घटना…….. योगिनी से तो कुछ भी गोपनीय रह ही नहीं जाता। पग-पग पर अपना स्नेह और मार्ग दर्शन के साथ-साथ वह करती रहती है साधक की प्रतिफल रक्षा और सचेत कर देती है किसी भी षड़यंत्र या धोखे के प्रति पहले से ही……।
पूरे-पूरे तंत्र शास्त्र को अपने में आत्मसात् किये, कपिला योगिनी में आत्मसात् किये वह कपिला योगिनी अपने सिद्ध साधक में भर देती है ऐसा तेज, बल और उत्साह जो केवल तंत्र के द्वारा ही संभव हो…. आकाश में गिरी कड़कती बिजली जैसा यौवन या आँखों में मस्ती के वे लाल डोरे, जो सही अर्थो में किसी पुरूष के यौवन का प्रमाण हो या फिर तना हुआ सीना, सब कुछ उतार देती है यह योगिनी, जिससे साधक छा जाए सारे वातावरण में ……।
ऐसी वरदायक और भगिनी स्वरूपा कपिला योगिनी को अपने जीवन में सादर निमंत्रित करने का, क्योंकि योगिनी तो एक ही आधार ढूंढती है कि जहां उसे सही साधक मिले, स्नेह पूर्ण वातावरण मिले, वहां वह अपनी शक्तियां प्रकट कर दें। उन्हें जीवन का समस्त सुख वैभव और आनन्द दे दे। अन्य देवी-देवताओं की अपेक्षा कपिला अपना प्रभाव देती है तीक्ष्ण बल देकर, जिससे साधक में भर जाता है और संघर्ष शीतलता । जीवन में ऐसा अवसर बार-बार उपस्थित नहीं होता। जीवन में साधना ऐसी वस्तु नहीं होती कि जिसे जब चाहें तब बाजार में जाकर पैसे देकर खरीद लें या तेज बल सौन्दर्य आकर्षण पैसों से प्राप्त कर लें। इसके लिए तो आधार लेना पड़ता है ऐसी वरदायक साधनाओं का, और जो चूक जाते है उन्हें फिर प्रतीक्षा करनी पड़ती है एक लम्बे समय तक।
योगिनी की साधना करने का अर्थ अपने जीवन में हटा देना सभी अनिष्टों को, चाहे वे वर्तमान में साथ चल रहे हों अथवा काल के गर्भ में पल रहे हो। ऋण, चोर्य, भय, आकस्मिक दुर्घटना, गुप्त-घात या जीवन के छोटे-छोटे अनेक विवाद, जो जीवन में विष लेते रहते है, उनका निराकरण पूर्णता से होता है योगिनी साधना से।
मात्र एक दिवस की साधना, लेकिन उस रूप में चमत्कार प्रधान या अनुभूति प्रधान नहीं, जैसा कि योगिनी से जुड़ी विचित्र कथाओं और कामोत्पादक स्वरूप का वर्णन पढ़कर मानस में चित्र बनता है…. एक सौम्य साधना …… मन में पूर्ण आह्लाद और आत्मीयता की भावना लेकर की जाने वाली साधना। इस साधना का प्रभाव दूसरे दिन प्रातः से ही साधक को मिलना प्रारम्भ हो जाता है और यदि साधक कुछ समय तक नियम – बद्ध ढंग से साधना में रत रहे तो उसे साक्षात योगिनी-मिलाप भी संभव होता है।
यों तो विधान है कि इस साधना को घने जंगल में जाकर किया जाता है लेकिन उसके प्रतीक रूप में साधक वट वृक्ष की डाल प्रातः काल ही लाकर अपने पूजा स्थान में गीली मिट्टी के एक ढेर में गाड दे। रात्रि में वस्त्र आसन लाल रंग को रखते हुए दक्षिण मुंह होकर बैठें और तांबे के पात्र में ‘कपिलेश्वरी यंत्र’ स्थापित कर उसका पूजन कुंकुम, अक्षत, सिन्दूर एवं तेल के दीपक से करें। जिस डाल को प्रातः स्थापित किया है उसका भी पूजन इसी प्रकार से करें तथा इस यंत्र पर चौंसठ लाल रंग के पुष्प, चौंसठ योगिनियों के पूजन रूप में अर्पित करें। यंत्र पर ‘दस योगिनी कृतवाह’ अर्पित करें और प्रार्थना करें कि कपिला योगिनी अपनी समस्त शक्तियों के साथ दशों दिशाओं से मेरी रक्षा करें। एक बड़ा फल बलि रूप में समर्पित करें। वातावरण को धूप अथवा लोबान की सुगंध से भरा रखे। इसके पश्चात् ‘रक्तवर्णीय माला’ से निम्न मंत्र का 21 माला मंत्र जप करें। मंत्र जप काल में दृष्टि दीपक की लौ पर एकाग्र रहे।
यह एक दिवस की साधना है, लेकिन साधक की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह आगामी कितने दिनों तक इस साधना को करें। यदि साधक को दूसरे दिन से ऐसा अनुभव हो कि कोई उसके साथ प्रतिक्षण रहता है या अपने आस-पास किसी स्त्री का आभास अनुभव करें तो न आश्चर्य-चकित हो न भयभीत। इस इस घटना की चर्चा तो भूल कर भी किसी से न करे। यदि उसके जीवन में कोई आकस्मिक संकट आ जाय या शत्रु बाधा उत्पन्न हो जाय तो उपरोक्त मंत्र का 21 बार उच्चारण कर यंत्र के समक्ष अपनी समस्या स्पष्ट कहें। यो भी उच्चारण करने से तत्काल सुरक्षा चक्र प्राप्त होता ही है। यदि साधक किसी समस्या का हल जानना चाहता है तो रात्रि में उपरोक्त मंत्र का एक माला जप करके प्रश्न को सिरहाने रख कर सो जाए तो उसे अपने प्रश्न का उत्तर स्वप्न के माध्यम से प्राप्त हो जाता है।
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