शिष्य का और गुरू का संबंध जीवन में सबसे श्रेष्ठतम संबंध माना गया है। इन संबंधों को संसार की किसी भी तराजू में तोला नहीं जा सकता एक श्रेष्ठ शिष्य में निम्न गुण अवश्य ही होने चाहिये। इन गुणों से ही विश्वास, निष्ठा बढती है।
शिष्य वह है जिसकी हर समय मन में इच्छा होती है कि दौड़ कर गुरू के पास जाऊं। गुरू से प्राणागत संबंध होना चाहिये, देहगत नहीं, गुरू जानता है शिष्य को जीवन की पगडंडी पर कहाँ और कब खड़ा करना है और जहाँ खड़ा करना है उसके लिए क्या आज्ञा देनी है। इसलिये शिष्य को आज्ञा पालन में विलंब नहीं करना चाहिए।
शिष्य के पास जो भी चिंताएं हैं दुःख हैं, परेशानियां हैं, बाधाएं हैं उन सबको गुरू चरणों में समर्पित कर देना है।
कोई आवश्यक नहीं कि समस्या होने पर ही गुरू से मिला जाए। गुरू के दर्शन मात्र से ही शिष्य का सौभाग्य एवं पुण्य जाग्रत होते हैं। इसलिए शिष्य निरंतर गुरू से संपर्क बनाए रखे।
गुरूदेव की सेवा किए बिना जो शिष्य कुल धर्म का पालन करते हैं उनसे मंत्र तथा देवता कभी प्रसन्न नहीं होते। अंतरवाणी, मन और शरीर तीनों से ही सदा गुरू कार्य में तत्पर रहें।
शिष्य के पास केवल तीन रास्ते हैं जिनसे वह लोहे से कुंदन बन सकता है – सेवा, समर्पण एवं श्रद्धा और इन सबका समन्वय है प्रेम। गुरू से प्रेम द्वारा ही शिष्य सब प्राप्त कर सकता है।
गुरू ईश्वर का प्रतिबिंब है जिसे शिष्य साकार अपनी आँखों से देख सकता है। ईश्वर को शिष्य ने भले ही न देखा हो पर गुरू के माध्यम से ईश्वर के हृदय में प्रेम की धारा हो, आँखों में प्रेम के अश्रु हों।
जब आँखों से प्रेम के आँसू बहने लगे तब शिष्य को समझना चाहिये कि गुरू के दर्शन कर लिए।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,