इसके लिये पांच चिन्तन स्पष्ट है- 1. दीक्षा यदि नहीं ली हुई हो तब भी साधना में सफलता संदिग्ध रहती है, 2. दीक्षा के उपरान्त भी यदि गुरू के प्रति आलोचना उनके प्रति भ्रम और संशय रहता है, तो भी सफलता नहीं मिल पाती 3. जो साधना काल में अपने इष्ट और गुरू में अन्तर समझता है, या पूर्ण हृदय से गुरू पूजा अथवा गुरू मंत्र जप नहीं कर पाता है, तब भी साधना में सफलता नहीं मिल पाती। 4. गुरू के बताये हुए कार्यो में शिथिलता बरतना या आज्ञा पालन में न्यूनता रखने से भी साधना में सफलता संदिग्ध हो जाती है 5. और पिछले जीवन के अथवा इस जीवन के पाप, दोष अधिक हो, तब भी प्रयत्न करने पर सफलता नहीं मिल पाती।
उपरोक्त पांच कारणों में से प्रथम चार या पहली चार बाधाएं तो गुरू की सेवा करने से उनके सानिध्य में रहने से अथवा उनकी आज्ञा का पालन करने से और निरंतर गुरू मंत्र जप करने से इन चारों दोषों का शमन हो जाता है, पांचवा दोष गंभीर होता है क्योंकि मन से वचन से और कर्मगत किये गये कार्यो से दोष व्याप्त हो जाता है, अतः इस पांचवे प्रकार के दोष को दूर करने के लिये अर्थात् पिछले जीवन के दोषों को और वर्तमान जीवन के दोषों को समाप्त करने के लिए यह साधना अपने आप में अत्यन्त सशक्त, महत्त्वपूर्ण और दुर्लभ है।
यह साधना गुरूवार को की जाती है और आठ गुरूवार तक यह साधना सम्पन्न होती है। गुरूवार के दिन साधक स्नान कर पीली धोती धारण कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाए, सामने पूज्य गुरूदेव का अत्यन्त आकर्षक और सुन्दर चित्र स्थापित करे, तथा उनकी भक्तिभाव से पूजा करे। उन्हें नैवेद्य समर्पित करे, सुगन्धित अगरबत्ती प्रज्जवलित करे, घी का दीपक लगावें।
इस साधना में ‘रूद्र मंत्र प्राण प्रतिष्ठा युक्त निखिलेश्वर यंत्र’ तथा ‘गुरू रूद्राक्ष माला’ धारण हेतु है तथा यंत्र का नियमित पूजन आवश्यक है, यंत्र पूजन गुरू पूजन के अनुसार ही करना है।’
साधक तीन बार दाहिने हाथ में जल लेकर पी लें और उसके बाद हाथ धो कर प्राणायाम करें और फिर दाहिने हाथ में जल कुंकुम, पुष्प लेकर संकल्प करें।
ऐसा कह कर हाथ में लिया हुआ जल सामने रखे हुए पात्र में छोड़ दें और गले में पहनी हुई रूद्राक्ष माला से गुरू मंत्र जप करें-
एक माला मंत्र जप करने के बाद उस रूद्राक्ष माला को गले में धारण कर ले और पूर्व दिशा की ओर मुँह कर बैठ जाए, सामने गुरू चित्र लकड़ी के बाजोट पर स्थापित करे, उस पर शुद्ध घृत का दीपक लगावे, और हाथ में जल लेकर संकल्प करें।
इसके बाद पूर्व की ओर मुँह किये किये ही अपने गले में पहनी हुई रूद्राक्ष माला से निम्न मंत्र गुरू मंत्र की एक माला मंत्र जप करें-
इसके बाद साधक अग्निकोण की ओर मुँह कर बैठ जाए सामने गुरू का चित्र स्थापित करे, उसकी संक्षिप्त पूजा करे और सामने घी का दीपक लगाये, इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें-
इसक बाद अग्निकोण की ओर मुँह किये किये ही अपने गले में पहनी हुई रूद्राक्ष माला से निम्न मंत्र की एक माला मंत्र जप करें-
इसके बाद साधक दक्षिण दिशा की ओर मुँह कर बैठ जाए, सामने लकड़ी के बाजोट पर श्वेत वस्त्र बिछा कर गुरू चित्र स्थापित करें, उसकी संक्षिप्त पूजा करे और घी का दीपक लगावे इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें-
इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुँह किये हुये ही अपने गले में पहनी हुई रूद्राक्ष माला से गुरू मंत्र की एक माला मंत्र जप करें-
इसके बाद नैऋत्य दिशा की ओर मुँह कर सामने लकड़ी के बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछा कर गुरू का चित्र स्थापित करें, उनकी संक्षिप्त पूजा करे और घी का दीपक जलावे इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें-
इसके बाद नैऋत्य कोण की ओर मुँह किये-किये ही अपने गले में पहनी हुई रूद्राक्ष माला से निम्न मंत्र की एक माला मंत्र जप करें-
इसके बाद साधक उत्तर दिशा की ओर मुँह कर सामने लकड़ी के बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछा कर गुरू का चित्र स्थापित करे, उसकी संक्षिप्त पूजा करें और घी का दीपक लगाये इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें-
इसके बाद उत्तर दिशा की ओर मुँह किये किये ही अपने गले में पहनी रूद्राक्ष माला से निम्न गुरू मंत्र की एक माला मंत्र जप करें।
इसके बाद वायव्य दिशा की ओर मुँहकर सामने लकड़ी के बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछा कर गुरू का चित्र स्थापित करें, उनकी संक्षिप्त पूजा करें और घी का दीपक जलाये इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें-
इसके बाद वायव्य कोण की ओर मुँह किये किये ही अपने गले में पहनी हुई रूद्राक्ष माला से गुरू मंत्र जप करें।
इसके बाद साधक पश्चिम दिशा की ओर मुँह कर सामने लकड़ी के बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछा कर गुरू चित्र स्थापित करें, उसकी संक्षिप्त पूजा करें और घी का दीपक लगाये, इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें-
इसके बाद पश्चिम दिशा की ओर मुँह किये किये ही अपने गले में पहनी हुई रूद्राक्ष माला से निम्न गुरू मंत्र की एक माला से मंत्र जप करें।
इसके बाद साधक ईशान दिशा की ओर मुँह कर सामने लकड़ी के बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछा कर गुरू का चित्र स्थापित करें, उनकी संक्षिप्त पूजा करें और घी का दीपक जलावे इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें-
इसके बाद साधक ईशान कोण की ओर मुँह किये किये ही अपने गले में पहनी हुई रूद्राक्ष माला से निम्न गुरू मंत्र की एक माला मंत्र जप करें-
इसके बाद ऊपर आकाश (अनन्त) दिशा की ओर मुँह कर सामने लकड़ी के बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछा कर गुरू का चित्र स्थापित करें, उनकी संक्षिप्त पूजा करें और घी का दीपक जलाये इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें-
इसके बाद साधक ऊपर आकाश की ओर मुँह किये किये ही अपने गले में पहनी हुई रूद्राक्ष माला से निम्न गुरू मंत्र की एक माला से मंत्र जप करें-
इसके बाद भूमि की ओर नीचा मुँह कर सामने लकड़ी के बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछा कर गुरू का चित्र स्थापित करें, उनकी संक्षिप्त पूजा करें और घी का दीपक जलावे इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें-
इसके बाद साधक भूमि की ओर मुँह किये किये ही अपने गले में पहनी रूद्राक्ष माला से निन्म गुरू मंत्र जप करें-
इसके बाद साधक इस प्रकार दोनों दिशाओं से संबंधित प्रयोग सम्पन्न कर पुनः मूल गुरू मंत्र की एक मंत्र जप पूर्व दिशा की ओर मुँह कर करें।
इस प्रकार एक गुरूवार का प्रयोग सम्पन्न होता है। इस प्रकार साधक आठ गुरूवार इसी प्रकार से प्रयोग सम्पन्न कर लें, तो यह दुर्लभ और अद्वितीय साधना सम्पन्न हो जाती है और इसके बाद साधक पूर्णतः पवित्र, दिव्य, तेजस्वी, प्राणश्चेतना युक्त एवं सिद्धाश्रम का अधिकारी होता हुआ, गुरू का अत्यन्त प्रिय शिष्य हो जाता है, और साथ ही साथ उसके पिछले जीवन और इस जीवन के सभी प्रकार के पाप दोष समाप्त हो जाते है।
यह दुर्लभ साधना प्रत्येक साधक के लिये अपने आप में अद्वितीय है और साधकों को इससे अवश्य ही लाभ उठाना चाहिये।
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