





सत्यनारायण के प्रकट होने का पहला विस्तृत विवरण स्कंद पुराण में मिलता है, विशेष रूप से रेवा खंड में, जहाँ कहा गया है कि सत्यनारायण की पूजा कलियुग में प्रमुख हो गई, जो हिंदू ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार वर्तमान युग है। कलियुग में सत्य और सदाचार प्रायः अस्पष्ट हो जाते हैं, और इसी युग में सत्य और विष्णु की भक्ति के महत्त्व को पुनः स्थापित करने के लिए सत्यनारायण पूजा की शुरुआत की गई थी।
भविष्य पुराण की एक कथा में, सत्यनारायण के रूप में विष्णु जी संसार को सत्य का महत्त्व सिखाते हैं। अपने सत्यनारायण रूप में भगवान विष्णु जीवन के सभी पहलुओं में धार्मिकता, सत्य और भक्ति के महत्त्व को रेखांकित करते हैं। इस प्रकार, विष्णु जी मुख्य रूप से कलियुग के दौरान लोगों को सत्य की पूजा के माध्यम से आध्यात्मिक विकास की ओर मार्गदर्शन करने में सहायता के लिये यह रूप धारण करते हैं।
सत्यनारायण भगवान विष्णु के एक अवतार हैं, जिन्हें मुख्यतः आशीर्वाद प्रदान करने, विघ्नों को दूर करने और अपने भक्तों को समृद्धि प्रदान करने की क्षमता के लिये पूजा जाता है। सत्यनारायण नाम का अर्थ अक्सर सत्य के स्वामी या सत्य का साकार रूप समझा जाता है। विष्णु के इस रूप की पूजा आमतौर पर सत्यनारायण पूजा के माध्यम से की जाती है, जो विभिन्न कार्यों, विशेष रूप से करियर, व्यवसाय, स्वास्थ्य और रिश्तों में सफलता के लिये आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु किया जाने वाला एक अनुष्ठान है। सत्यनारायण की अवधारणा इस विश्वास पर आधारित है कि सच, या ‘सत्य’, ब्रह्मांड का आधार है। भगवान सत्यनारायण का आह्वान करके, भक्त सत्य, व्यवस्था और धार्मिकता के परम स्रोत से जुड़ते हैं।
सत्यनारायण की पूजा में, भगवान विष्णु के दिव्य स्वरूप को शाश्वत सत्य और न्याय के स्रोत के रूप में रेखांकित किया जाता है। सत्यनारायण के रूप में उनके स्वरूप को प्रायः एक शांत और दयालु देवता के रूप में दर्शाया जाता है, जो दिव्य शांति और सुरक्षा का प्रतीक है। विशिष्ट मिथकों या किंवदंतियों से जुड़े विष्णु के अन्य रूपों के विपरीत, सत्यनारायण की पूजा सार्वभौमिक है, जो समय और भौगोलिक सीमाओं से परे है। सत्यनारायण सत्य, प्रेम और धार्मिकता के गुणों का प्रतीक हैं, जिन्हें मानव जीवन के मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि उनके आशीर्वाद से समृद्धि, सुख और दुर्भाग्य का नाश होता है। सत्यनारायण का स्वरूप व्यक्ति, परिवार और समग्र रूप से समाज के कल्याण से भी जुड़ा है, जो उन्हें आध्यात्मिक और भौतिक कल्याण चाहने वालों के लिये एक प्रिय देवता बनाता है।
भगवान सत्यनारायण की चेतना को आत्मसात कर विष्णु-लक्ष्मी स्वरूप की अभ्यर्थना करने से गृहस्थ जीवन में सुख-समृद्धि और परिवारिक स्थिरता प्राप्त होती है। यह साधना पूर्व और वर्तमान जन्म के दोषों को दूर करती है, व्यक्तित्व में तेजस्विता लाती है और नेतृत्व क्षमता में सुधार करती है। इसके अतिरिक्त, यह पारिवारिक शांति और उन्नति को बढ़ावा देती है, जिससे समस्याओं और बाधाओं का अंत होता है।
साधना विधान
यह साधना सत्यनारायण व्रत पर्व को या किसी भी चतुर्दशी को प्रारम्भ की जा सकती है। अपने सामने एक बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर “विष्णु शक्ति यंत्र” व “वैभव गुटिका” स्थापित करें, सर्वप्रथम स्नान शुद्धि के पश्चात् अबीर, कुंकुंम, केसर, चंदन, मोली से यंत्र व गुटिका का पूजन करके धूप, दीप, प्रसाद चढ़ायें। पश्चात् तुलसी पत्र लेकर, जल में डुबो कर विष्णु के बारह स्वरूपों का ध्यान करते हुये सभी दिशाओं में जल छिड़के-
ऊँ अम् केशवाय धात्रे नमः।
ऊँ नम् ओम् नारायणाय अर्यम्णे नमः।
ऊँ अंग इम् माधवाय मित्राय नमः।
ऊँ मम् इम् गोविन्दाय वरूणाय नमः।
ऊँ गम् उम् मधुसूदनाय भगाय नमः।
ऊँ तेम् एम् वामनाय इन्द्राय नमः।
ऊँ सुम्ओम श्री धराय पूष्णे नमः।
ऊँ देम् औम हृषीकेशाय पर्जन्याय नमः।
ऊँ वाम् अं पद्मनाभाय त्वष्टे नमः।
ऊँ यम् अः दामोदराय विष्णवे नमः।
श्री विष्णु की साधना में विनियोग, पंचावरण पूजा का विशेष विधान है, सभी दिशाओं में स्थित विष्णु स्वरूपों का पूजन किया जाता है। साधना क्रम में दाहिने हाथ से शरीर के अंगों को स्पर्श करना है साथ ही अर्पण भी दाहिने हाथ से किया जाता है।
विनियोग-
अस्य श्री द्वादशाक्षरमंत्रस्य प्रजापतिऋषिः गायत्री छन्दः वासुदेवः परमात्मा देवता, सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनयोगः।
इसे पढ़कर जल भूमि पर गिरा दें।
ऋष्यादिन्यास-
ऊँ प्रजापति ऋषये नमः शिरसि। गायत्री छन्दसे नमः मुखे। वासुदेव परमात्मा देवतायै नमः हृदि।
विनियोगाय नमः सर्वांगे।
करन्यास-
ऊँ अंगुष्ठाभ्यां नमः ऊँ तर्जनीभ्यां नमः ऊँ भगवते मध्यमाभ्यां नमः ऊँ भगवते अनामिकाभ्यां नमः ऊँ वासुदेवाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
हृदयादिन्यास-
नमः शिरसे स्वाहा। भगवते शिखायै वषट्। वासुदेवाय कवचाय हुं। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय अस्त्राय फट्।
ध्यान-
विष्णु शारद चन्द्रकोटि सद्यशं शंखं रथांग्डं गदाम्।
अम्भोजं दधतं सिताब्जनिलयं कान्त्या जगन्मोहनम।।
आबद्धांगद हारकुण्डल महामौलि स्फुरत्कंकणम्।
श्रीवत्सांकमु दारकौस्तुभधारं वन्दे मनीन्द्रैः स्तुतम्।।
बीज मंत्र की एक माला जप ‘विष्णु शक्ति माला’ से करें, प्रत्येक मंत्र जप पर एक ‘चावल का दाना’ यंत्र पर अर्पित करें।
बीज मंत्र-
।। ऊँ नमो नारायणाय नमः।।
फिर विष्णु शक्ति माला से 5 माला 7 दिन तक जप करें।
ऊँ नमोः भगवते नारायणाय तत्वाय तन्नो नमो नमः
सम्पूर्ण पूजन पश्चात् साधक दोनों हाथों में सुगंधित पुष्प को अंजलि में लेकर भगवान् को अर्पित करें, कि अपने अभीष्ट सिद्धि हेतु अपनी सम्पूर्ण पूजा समर्पित करता हूं। साधना समापन पर गुटिका को धारण कर लें व शेष सामग्री को किसी पवित्र जलाशय में प्रवाहित कर दें। जिससे साधक को सत्यनारायण स्वरूप में मनोवांछित फल की प्राप्ति हो सके। यह साधना तो निश्चय ही सर्वोतम साधना है।
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