घर में पूजन कक्ष बनाने या देव विग्रह स्थापित करने का अर्थ हमारे घर में पावन देवमय चेतना युक्त, परिवार में सुखमय स्थितियों का विस्तार हो व आस्थामय सुसंस्कारो की वृद्धि हो। जहां नकारात्मक विकार उत्पन्न न हो, अगर घर के पूजा स्थान या मंदिर में देवी-देवता या गुरू कि प्रतिमा या विग्रह स्थापित करते हैं तो हमारा यह कर्तव्य बनता है की नित्य सुबह-शाम हम उस स्थान की साफ-सफाई व आर्त भाव से मंत्र जप, पूजन, साधना व आरती सम्पन्न करें। क्योंकि हमने उन्हें अपने घर में विराजमान किया है, परिवार के सदस्य की भाँति हमें ज्ञान, ऊर्जा, सद्मार्ग की प्राप्ति होती है। सुबह-शाम जो भी हम अपने घर में भोजन बनाते है उसका भोग अपने पूजन स्थान में विराजमान देवी-देवताओं को लगाने के बाद ही हमें स्वयं ग्रहण करना चाहिये।
आपको कैसा लगेगा अगर आपको कोई मान-सम्मान से अपने घर में आमंत्रित करें परन्तु आपको कई दिनों तक खाने और पीने के लिये कुछ नहीं पूछें तो कैसा लगेगा? जो देवी देवताओं की फोटो या प्रतिमा आपके पूजा स्थान में है, वह भी आपके परिवार का ही सदस्य है, उनका सम्मान करें। इससे पूरे परिवार में एक-दूसरे के प्रति सम्मान भावना की वृद्धि होगी ।
नियमित रूप से सुबह-शाम दीपक, धूपबत्ती, आरती, पूजन की क्रिया अवश्य करें व रात्रि में सोने से पूर्व अपने गुरू या इष्ट को प्रणाम करके ही विश्राम करें। किसी भी कार्य के लिये घर से बाहर जाये तो आपका दिन मंगलमय हो व कार्य सही रूप से सफल हो, ऐसी प्रार्थना करें। वापस घर आने पर प्रणाम कर उनका धन्यवाद करें। अपने इष्ट अथवा देवी-देवताओं का विग्रह या चित्र स्थापित करने से सपन्नता नहीं आयेगी। सपन्नता निरन्तर उनका सम्मान व सम्मान के साथ-साथ निरन्तर सुकर्म करने से आयेगी।
सावन मास में सद्गुरू देव जी का सन्यास निखिलमय विग्रह अपने घर में अवश्य स्थापित करें। सोमवार को इसका अभिषेक व चरण पूजन सम्पन्न करने से परिवार में शिवमय स्थितियां आ सकेंगी। अभिषेक और चरण पूजन की विधि कैलाश सिद्धाश्रम जोधपुर से प्राप्त करें।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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