भैरव का एक गोपनीय पक्ष यह भी है कि जहां वे एक उग्र देव हैं, वहीं अन्तर्मन में पूर्ण शांत व चैतन्य देव भी हैं, जिनकी यथेष्ट रूप में उचित उपासना करने पर यह संभव ही नहीं कि साधक के जीवन में बाधाओं का अस्तित्व बचें, इसके साथ जीवन में सुख-समृद्धि, तेजस्विता, मानसिक शांति, निश्चिंतता और स्थायी आभायुक्त जीवन पूर्णता स्वरूप से प्राप्त होता है।
काल कराल विकराल तीव्र कपाल मोचन भैरव की आराधना तांत्रिक अवश्य ही सम्पन्न करते हैं, जिससे उनके नेत्रों में वशीकरण की महान् शक्ति आ जाती है, सामान्य साधक तंत्र की अन्य विशेष साधनाओं से भयभीत रहता है, सोचता है कि ऐसी तीव्र साधना करने से जीवन में उसका कोई अनिष्ट ना हो जाये और उच्च कोटि के तांत्रिकों ने इसे तामसी तीव्र विद्या के रूप में प्रचार कर इस शक्ति से गृहस्थ साधकों को वंचित रखा। लेकिन जो भी साधक शिव भक्त हैं, शिव साधना, अभिषेक करते हैं, जो गुरु की उपासना शिव रूप में करते हैं, उन्हें किसी भी साधना से डरने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि भैरव शिव के अंश रूप हैं।
भैरव शिव के अंश हैं और उनका स्वरूप चार भुजा, खड्ग, नरमुण्ड, खप्पर और त्रिशूल धारण किये हुये गले में शिव के समान मुण्ड माला, रूद्राक्ष माला, सर्पो की माला, शरीर पर भस्म, व्याघ्र चर्म धारण किये हुये, मस्तक पर सिन्दूर का त्रिपुण्ड, ऐसा ही प्रबल स्वरूप है, जो कि दुष्ट व्यक्तियों को पीड़ा देने वाला और अपने भक्तों, साधकों के हर प्रकार के संकट दूर कर, उन्हें अपने आश्रय में अभय प्रदान कर, बल, तेज, यश, सौभाग्य प्रदान करने में पूर्ण समर्थ देव हैं, भैरव शिव समान ऐसे देव हैं, जिनकी आराधना साधक किसी भी रीति से, विधान से पूजा करे, वे प्रसन्न होकर अपने भक्त को पूर्णता प्रदान करते ही हैं।
जीवन को जो अपनी इच्छा अनुसार जीने, अपने पराक्रम से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने, अपने उत्साह से शत्रुओं पर वज्र की तरह प्रहार करने की चेतना को पूर्णता से आत्मसात करना चाहते हैं, उन्हें महाकाल भैरव दीक्षा अवश्य ही ग्रहण करनी चाहिये, जिससे जीवन में निरंतर उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो, आप अपने बलबूते अपनी श्रेष्ठता स्थापित कर सकें साथ ही जीवन के सभी विघ्न-बाधाओं का प्रचण्डता से शमन होता है, इस शक्ति के माध्यम से जीवन की प्रत्येक स्थिति पर साधक का नियंत्रण होता है, उसके जीवन की बागडोर स्वयं उसके हाथ में होती है।
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