निबौली के भीतर बीज होता है, जिसे तोड़ने पर गिरी निकलती है, इस गिरी से तेल निकाला जाता है, यह तेल स्वाद में तीखा-कड़वा एवं तीव्र गंध वाला होता है। नीम तेल चर्म रोगों के लिये श्रेष्ठ औषधि है, गांव के लोग इस तेल का प्रयोग चर्म रोगों में विशेष रूप से करते हैं। नीम के पुराने वृक्षों से कभी-कभी एक प्रकार का गाढ़ा द्रव निकलता है जो तेज गंध युक्त होता है। इसका भी औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
नीम शीतल, हल्का, ग्राही पाक में चरपरा, हृदय को अप्रिय, अग्नि, वात, तृष, ज्वर, अरुचि, कृमि, व्रण, कफ, वमन, कोढ़ और प्रमेह को नष्ट करता है। नीम के पत्ते नेत्रों के लिये हितकारी, वातकारक, सभी प्रकार की अरुचि, पित्त तथा विषनाशक होते हैं। ये सभी गुण नीम के पत्तों में पाये जाते हैं। नीम की छाल में कई प्रकार के कड़वे तत्व भी पाए जाते हैं, जिनमें मार्गोसीन व निम्बिडिन उल्लेखनीय है, इसके अतिरिक्त इसमें निम्बेस्टेरोल, टैटिन तथा विशेष प्रकार का एक उड़नशील तेल भी पाया जाता है।
नीम की भीतरी छाल मियादी बुखार में विशेष गुणकारी है, यह पौष्टिक, शीतल, चर्मरोग नाशक, सूजन को दूर करने वाला, कृमिनाशक रसायन है। वैज्ञानिक खोजों से पता चलता है कि नीम के वृक्ष के समस्त अंगों में प्रबल जीवाणुनाशक तत्व है।
विषम ज्वर (मलेरिया)- नीम की छाल के काढ़े में धनियां और सोंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करना चाहिये, इससे मलेरिया में बहुत शीघ्र लाभ होता है। नीम के पत्ते जलाकर धुआं करने से मच्छर नष्ट हो जाते हैं, जिससे विषम ज्वर से बचाव होता है। नीम के पत्ते 25 ग्राम, फूली फिटकरी का भस्म साढ़े बारह ग्राम एक साथ खरल में अच्छी तरह घोंटकर 4 घंटे पर मिश्री मिले जल के साथ लें, यह सभी प्रकार के ज्वरों में उपयोगी है।
दाह युक्त सूजन- नीम के पत्तों को पीसकर सूजन वाले स्थान पर लेप करें, इससे रक्त शुद्ध होता तथा सूजन व जलन से राहत मिलता है।
बवासीर- नीम और बकायन के बीजों की सूखी गिरी 25-25 ग्राम, छोटी हरड तथा रसौत 25 ग्राम, घी में भुनी हींग 15 ग्राम, बीज रहित मुनक्के 30 ग्राम, सिल या खरल में अच्छी तरह कूट पीसकर मटर के बराबर गोलियां बना लें, 2-2 गोली सुबह-शाम दूध या पानी के साथ सेवन करें, यह खूनी और बादी दोनों तरह की बवासीर के लिये उपयोगी है।
बाल झड़ना- नीम के पत्तो को पानी में उबाले, ठंडा होने पर इससे बालों को धोएं, कुछ ही दिनों में बाल झड़ने बंद हो जायेंगे और वे मजबूत व काले भी होंगे।
कब्ज- नीम के फलों को सूखाकर इसका चूर्ण बनाकर रख लें, इस चूर्ण को 1-2 ग्राम की मात्रा में रात को गुनगुने जल के साथ सेवन करें, कुछ दिनों तक इसका नियमित सेवन करने से आंतों की शक्ति बढ़ती है और शौच शुद्ध होने लगता है, यह प्रयोग पुराने कब्ज के लिये अत्यंत हितकारी है।
रक्त स्त्राव व प्रदर रोग- नीम की छाल के रस में 1-2 ग्राम जीरे का चूर्ण डालकर सात दिन तक सेवन करने से लाभ होता है।
चेचक के दाग- नीम के पत्तों को पीसकर चेचक के दाग पर कुछ दिन तक लेप करने से दाग मिट जाते हैं।
निम्बादि चूर्ण- 100 ग्राम छाया में सुखाए हुए नीम के पत्ते, 50 ग्राम अजवायन तथा जवाखार, सोंठ, काली मिर्च, पिपली, गुठली रहित हरड, गुठली रहित बहेडे, गुठली रहित आंवले, सेंधा नमक, विड नमक और काला नमक ये सभी 10-10 ग्राम लें, सभी को कूटकर चूर्ण बनाएं, सेवन मात्र 2 से 6 ग्राम तक पानी के साथ दिन में तीन बार।
सभी पित्त ज्वरों में इसके प्रयोग से लाभ होता है। जिगर की कमजोरी, पित्त का अवरोध, आंखों का रंग मैला या पीला रहना आदि अवस्थाओं में इसे कुछ दिन लगातार दो बार देने से जिगर सक्रिय होता है और जिगर तथा पित्ताशय से पित्त का ड्डाव सुचारु रूप से होने लगता है।
नियमित रूप से नीम की डाली से दांतुन करने से दांत व मसूढ़े मजबूत होते हैं व मुख की दुर्गन्ध से निजात मिलती है।
पेट में बार-बार विकार होने, भूख न लगने, मुख का स्वाद खराब रहने आदि में दिन में दो बार इसे लेना चाहिये, यह औषधि पाचन क्रिया को मजबूत करने के लिये अच्छा टॅानिक है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,