वर्तमान समय में सम्पूर्ण संसार आर्थिक धरातल पर ही अवस्थित है, जीवन के सारे कार्य अर्थ के चारों ओर ही सिमटे हैं। सम्पूर्ण जीवन अर्थ प्राप्ति रूपी स्थितियों पर ही निर्भर है या यों कहें अर्थ है तो जीवन है। बिना अर्थ के सांसारिक जीवन में कुछ भी नहीं है। इसलिये अर्थ की महत्ता प्रत्येक व्यक्ति बड़ी गभीरता से जानता और समझता भी है। आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति का अधिकांश चिंतन व कर्म अर्थ अर्थात् धन संग्रह कर उसके माध्यम से सभी भौतिक सुखों को भोगा जाये। यही कारण है कि सांसारिक जीवन में महालक्ष्मी की सर्वाधिक महत्ता है और वे ही सर्वदा पूजनीय हैं।
आज का मनुष्य अनेक विकट समस्याओं से घिरा है, उससे निवृत्ति हेतु प्रतिस्पर्धा रूपी स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस संसार में जीवन सुचारू रूप से गतिशील करने के लिये अधिक क्षमता से संघर्षं करना पड़ रहा है। जिसके कारण मनुष्य शारीरिक और मानसिक रूप से जर्जर होता जा रहा है।
जीवन की आवश्यकताओं ने उसे इस प्रकार जकड़ा हुआ है कि प्रयास करके भी वह इस जकड़न से मुक्त नहीं हो पा रहा है। इन कारणो से धीरे-धीरे उसका साधनाओं और ईश्वर से विश्वास उठता जा रहा है। जबकि यही नास्तिकता उसे और अधिक पतन की ओर ले जाती है। ईश्वरीय शक्ति से दूरी ही अधोगति की प्राप्ति होती है। क्योंकि कर्मफल की सफलता व असफलता साधक के भाव, श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर होती है। कोई भी कार्य बोझ समझकर करने से अनुकूलमय सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है। इसलिये हमारा प्रयास अटूट श्रद्धा से युक्त होना चाहिये, मन में संशय कदापि हमें उच्चता नहीं प्रदान कर सकता है। छोटी-छोटी बरसात की बूंदे भी कुछ समय में ही विशाल नदी का स्वरूप ले लेती हैं।
इसी तरह हमारे निरंतर प्रयास करने पर हम एक दिन अवश्य अपनी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से तो कार्य करता ही है, किन्तु वह यदि दैवीय शक्ति और कृपा प्राप्त कर ले तो उसके अभीष्ट सरलता से पूर्ण होने लगते हैं और मार्ग की बाधायें समाप्त हो जाती हैं। जीवन के सभी कार्यों में शीघ्र व पूर्ण सफलता प्राप्त कर लेने के लिये क्रमबद्ध रूप से बढ़ना होता है। आध्यात्मिक क्षेत्र में साधनाओं को भावना से जोड़कर देखना चाहिये। भावना अपने इष्ट के प्रति सम्मान और प्रेम की स्थिति है। साधक को भावना प्रधन होकर निरन्तर साधनात्मक क्रियाओं का आश्रय लेना चाहिये।
शास्त्रोक्त दृष्टि से धन आगमन के साथ ही साथ अनेक कर्म दोष भी हमारे जीवन में आते हैं। जब ये कर्म दोष इकठ्ठे हो जाते हैं, तो जीवन में विस्फोटक क्रियायें होती है और सब कुछ तहस-नहस हो जाता है। आपने अपने आस-पास देखा होगा कि कोई व्यक्ति सभी तरह के सुख-सौभाग्य, धन, वाहन, भवन से पूर्ण है और अचानक ऐसी विषम घटनायें उसके सामने घटित होने लगती हैं कि उसके जीवन का परिदृश्य ही परिवर्तित हो जाता है। कल धनवान कहा जाने वाला व्यक्ति एक-दो साल में ही निर्धनमय स्थितियों में आ जाता है।
सांसारिक मनुष्य कर्म दोष से अधिक पीडि़त है, जीवन में धन के लिये हाय-तौबा न हो, इसलिये यह आवश्यक है कि जीवन आर्थिक सुदृढ़ता से युक्त हो, पर वैध रूप से अर्थात् धन के साथ हम दोष ना अर्जित करें। ऐसे में आवश्यक है कि हम ऐसा उपाय करें, जिससे जीवन में श्रेष्ठ धन अर्जित करने की निरन्तरता तो बनी रहे पर साथ ही कर्म दोष का प्रभाव हमारे जीवन में ना पड़े और हम आर्थिक रूप से सुदृढ़ हों।
अष्ट सिद्धि नवनिधि लक्ष्मी साधना की सबसे अधिक विशेषता यह है कि यह जीवन में दरिद्रता का विनाश जड़मूल से करती है। दरिद्रता का अभिशाप व्यक्ति का सारा व्यक्तित्व इस प्रकार से ग्रसित कर लेता है कि वह असमय ही जीवित रहते हुये मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। दरिद्रता के द्वारा व्यक्ति का जीवन तो अभावग्रस्त होता ही है उसका चिन्तन, आध्यात्मिकता कुंठित और धुंआ देती हुई हो जाती है। यदि ऐसी स्थिति पर समय रहते नियंत्रण न प्राप्त किया जाय तो व्यक्ति का सम्पूर्ण व्यक्तित्व, जीवन व साथ ही उसका परिवार भी असमय समाप्त हो जाने की स्थिति में आकर खड़ा हो जाता है। धन के अभाव में होने वाली नित्य गृह कलह से ग्रसित व्यक्ति जीवन से भी निराश रहता है।
जीवन में ऐश्वर्यवान बनना, सम्पन्न बनना, भौतिक पक्षों से सुखी व सन्तुष्ट होना अति आवश्यक है। किन्तु जीवन में गतिशीलता प्रदान करने व जीविका पार्जन के साथ ही साथ अतुल्य धन प्राप्ति के लिये आवश्यक है कि अष्ट सिद्धि नवनिधि साधना का अवलम्बन धारण किया जाये और विशेष रूप से वहां जहां पर साधक जीवन की अनेक विषमताओं से पीडि़त हो।
जिसके जीवन की दिशा ठीक हो उसकी दशा निश्चित रूप से ठीक होती ही है। जब तक विपरीत परिस्थितियों का शमन नहीं होगा, तब तक प्राथमिक आवश्यकताओं को पूर्ण करना भी दूभर रहेगा। चेतनावान साधक स्थिति का अनुमान लगाकर पूर्व में ही निश्चित धारणा बना लेते हैं और वे ऐसी साधनात्मक क्रियाओं के द्वारा जीवन को पूर्ण लक्ष्मीमय बनाने में समर्थ हो जाते हैं।
इस वर्ष दीपावली पर्व पर इन्हीं भाव चिंतन को साकार रूप देने के लिये अष्ट सिद्धि नवनिधि महालक्ष्मी दीपावली महोत्सव कैलाश सिद्धाश्रम के विशाल आश्रम प्रांगण में 25-26-27 अक्टूबर को सम्पन्न होगा। पूज्य सद्गुरुदेव के व्यक्तिगत दिशा-निर्देश में सिंह लग्न में अष्टसिद्धि नवनिधि श्री विद्या महालक्ष्मी व शत्रु संहारक महाकाली भैरव सम्मोहन सौन्दर्य वृद्धि साधना दीक्षा आत्मसात कर साधक पूर्ण लक्ष्मीमय होकर जीवन के सभी सुख भोग सकेंगे, श्री विद्या, श्री सूक्तम् की चेतना से दीर्घायु, धन, आरोग्य आदि सुलक्ष्मियों से युक्त होगें।
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