जन्म से मनुष्य को जो जीवन मिलता है, वह भौतिक जीवन है, जिसमें संसार में ही सांसारिक जीवन जीने का रास्ता मिलता है। जब से बालक का जन्म होता है, तभी से उसका जीवन बाहर संसार में ही बहता रहता है। क्योंकि उसकी पांचों ज्ञानेन्द्रियां- आंख, कान, नाक, जिह्वा और त्वचा बाहर की तरफ ही अग्रसर होती हैं। वह इन इन्द्रियों से बाहर ही सबको पहचानता, देखता और सुनता है।
इसलिये बाहर के प्राणी एवं पदार्थों को सब जानते हैं, परंतु उनको अन्दर के बारे में कुछ पता नहीं है अर्थात् मनुष्य के अन्दर जो चेतना शक्ति है, उसका ज्ञान नहीं होता। अधिकांश व्यक्तियों को इसी अज्ञानतावश जीवन में असफलता, रोग, शोक, व्याधियां घेरती हैं।
प्रारम्भ से ही जीव इस संसार के क्रिया-कलापों में इतना संलग्न हो जाता है कि उसे भीतर की खबर ही नहीं होती है। उसके मन में कभी यह विचार भी नहीं आता कि जिस संसार में वह इतना रमा है, उसका अन्तिम परिणाम क्या होगा?
मनुष्य अपने जीवन की असफलताओं से संघर्ष करने के लिए बाहरी चुनौतियों का पूरी क्षमता से सामना करता है। परन्तु फिर भी वह इच्छा अनुसार सफल नहीं हो पाता, क्योंकि उस पर अज्ञानता का पर्दा पड़ा हुआ होता है, जिससे उसे यह ज्ञान नहीं होता कि अर्न्तः मन के भीतर भी एक शक्ति, ऊर्जा का एक ड्डोत है, चेतना का एक बिम्ब है, जिसे स्पर्श करते ही भीतर और बाहर के सभी स्विच ऑन हो जायेंगे और जीवन प्रकाश से युक्त हो जायेगा। चेतना का वह बिम्ब सभी मनुष्य में समान रूप से विद्यमान हैं। उस चेतना का, उस प्रकृति का जिसे ज्ञान हो जाता है, जो अपनी प्रकृति से परिचित हो जाता है और उससे सामंजस्य स्थापित कर लेता है, वह व्यक्ति जीवन में उच्चता प्राप्त करता रहता है।
भीतर जो ऊर्जा विद्यमान है, आपकी जो प्रकृति है निश्चित रूप से उसमें कोई ना कोई विशेषता है, सभी की प्रकृति भिन्न- भिन्न हो सकती है। परन्तु प्रत्येक की प्रकृति में विशेषता निश्चित है और यही विशेषता व्यक्ति को सफल और श्रेष्ठ बनाती है।
अपनी क्षमता पहचानने के लिए मनुष्य यदि थोड़ा विचार करे, थोड़ा ध्यान लगाये। दिन भर के किये गये कर्मों को देखने लग जाये कि मैं क्या कर्म करता हूं एवं मुझे कैसे कर्म करने चाहिये, मैं किस प्रकार से संसार में अपना जीवन व्यतीत कर रहा हूं, मैं कितना भोजन खाता हूं एवं कितना मुझे खाना चाहिए आदि। यह भी विचार करे कि किन आदतों के कारण मेरे द्वारा ऐसे कर्म हुये, जिसके कारण जीवन में प्रतिकूल परिणाम भुगतने पड़े और यदि बुरे हुये हैं, तो यह संकल्प करे कि भविष्य में मुझे ऐसे अनर्गल कर्मों से सुरक्षित रहना है।
केवल संकल्प लेकर आदतों के रास्ते नहीं बदले जा सकते, इसके लिए साहस की आवश्यकता होती है और यह साहस प्राप्त होता है, जब हमारा सम्पर्क हमारी मूल प्रकृति से हो जाता है और जब हमारा परिचय मूल से हो जाता है तो भीतरी की जीवट शक्ति में वृद्धि होने लगती है और यही जीवट शक्ति हमें आत्मबल प्रदान करती है असफलताओं से संघर्ष करने की, हानि पहुंचाने वाली आदतों, प्रवृत्तियों से बचने का मार्ग प्रशस्त करती है।
भीतर की तंत्र में क्रियाएं होने पर अन्दर की सुप्त चेतना जाग्रत हो जाती है और यही चेतना अविद्या (अज्ञान) को समाप्त करती है। जिस अज्ञानता ने प्रकृति को छिपा रखा था, चेतना जाग्रत होने पर उसी मूल प्रकृति पर पकड़ मजबूत बनने लगती है और तब व्यक्ति को यह ज्ञान होने लगता है कि उसे संसार में किस प्रकार चलना है, मुझे बाहर के क्रिया-कलाप किस प्रकार करने हैं, भविष्य में किन आचरणों को विकसित करना है। अभी तो आपके पास वह है जो संसार ने दिया है, संसार की क्रिया- कलापों में आपने जो सीखा है, वही कर रहें हैं। आपके पास अपना कुछ है नहीं और वह जो अपना है, वह भीतर मौजूद है।
भौतिक जीवन की अधिकांश व्याधियां और दुःख चाहे वह देह, मन, विचार, कर्म आदि किसी भी रूप में हों, इन सभी का उपचार भीतर के वैद्य द्वारा संभव है। भीतर के वैद्य में क्रियाशीलता उत्पन्न करने का मार्ग सद्गुरु के द्वार से होकर गुजरता है। इसीलिये भीतर के वैद्य को चेतनावान बनाने के लिए मनुष्य सद्गुरु की शरण ग्रहण करते हैं।
जीवन की समस्त व्याधियों का सामना करने की ऊर्जा शक्ति से आपूरित होने के लिए नूतन वर्ष के महापर्व पर आप सभी साधक-साधिकाओं का कैलाश सिद्धाश्रम साधक परिवार हृदय भाव से आह्वान करता है। इस महापर्व पर प्रवचन, पूजन, हवन, अंकन, साधना, दीक्षा के माध्यम से जीवन के सर्वांगीण विकास की साधनात्मक क्रियायें नूतन वर्ष के प्रथम क्षण से परम पूज्य सद्गुरुदेव के सानिध्य में सम्पन्न करने से निश्चित रूप से जीवन में सर्व सफलता प्रदायक की स्थितियां निर्मित होंगी और जीवन सुख- समृद्धि, आरोग्य, यश, सम्मान और नूतन भाव-चिंतन से युक्त होगा।
प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति में कोई ना कोई विशेषता अवश्य होती है। इसी विशेषता के लिए जब व्यक्ति अपनी प्रकृति की भीतरी शक्तियों को जाग्रत भाव प्रदान करने की क्रिया पूर्ण कर लेता है, तो वह सर्व सफ़लता और श्रेष्ठता की ओर अग्रसर होने लगता है।
सफ़लता जीवन में सदा चलती रहती है आज आप जितना सफ़ल हैं उससे अधिक आपको सफ़ल होना है इसका मार्ग अनन्त तक असीमित है जिसकी कोई मंजिल नहीं होती इसे एक यात्रा समझें।
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