एक स्त्री के लिये मातृत्व सुख प्राप्त करना सबसे सुखद अनुभूति है। स्त्री के लिये मातृत्व सुख अमृत समान होता है, जिसमें उसे असीम संतुष्टि प्राप्त होती है, साथ ही नारीत्व की पूर्णता उसके मातृत्व सुख में समाहित है, जब तक नारी मातृत्व सुख पूर्ण नहीं हो जाती, तब तक उसका नारीत्व अधूरा सा होता है। नारी पर अनेक जिम्मेदारियां होती हैं। परिवार के पालन-पोषण के साथ घर के सभी घरेलू कार्यों की जिम्मेदारी नारी पर हमेशा से रही है, उसके जीवन का सार, सुख, आनन्द, उसका संसार उसका घर-परिवार ही होता है और सत्यता यही है कि यदि नारी सुसंस्कारित है, भारतीय नारीत्व विचारों से युक्त है, तो उसे इन सभी कर्तव्यों को पूर्ण करने में आत्म संतुष्टि की अनुभूति होती है। उसे इन जिम्मेदारियों का निर्वहन कर आनन्द की प्राप्ति होती है और वास्तव में पारिवारिक जीवन में कार्यो को सम्पादित करने का भाव कर्तव्य निर्वाह के रूप में हो तो वह आत्म संतुष्टि और आनन्द देता है और यदि यही कार्य बोझ समझ कर किया जाये तो कलह, क्लेश, झुंझलाहट, तनाव का कारण बनता है। हालांकि मैं परिवारिक विषय पर नहीं जाना चाहती, हमारा विषय मातृत्व सुख और शिशु के स्वास्थ से सम्बन्धित है।
नारी जब मां बनती है, तो उसकी जिम्मेदारियां और अधिक हो जाती हैं। क्योंकि छोटा शिशु पूर्णतः माँ का पर निर्भर होता है। मां का स्तनपान ही उसका भोज्य पदार्थ होता है, उसी से उसका पालन पोषण होता है। मां के दूध से शिशु में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। सामान्य रूप से चार माह तक बच्चा केवल माँ के दूध पर ही निर्भर रहता है। चार माह पश्चात उसे गाय का दूध या अर्ध ठोस आहार देना प्रारंभ किया जाता है। केवल स्तनपान पर रहने वाला शिशु कई प्रकार के रोगों से सुरक्षित रहता है, लेकिन जैसे ही उसे ऊपर का दूध या अर्ध ठोस आहार देना प्रारंभ किया जाता है, तो उसे पाचन सम्बन्धी कई तरह की समस्यायें हो सकती है।
छोटे बच्चे की अतडि़यां अत्यंत नाजुक (सेन्सेटिव) होती हैं। थोड़ा सा भी आहार परिवर्तन होने पर बच्चे के पाचन में समस्यायें उत्पन्न होने की संभावना रहती है। इसमें बच्चे का दूध बदलना या दूध में शक्कर अधिक हो जाना अथवा कोई नया खाद्य पदार्थ देना प्रारम्भ कर दिया गया हो, तो उन्हें दस्त की तकलीफ होने लगती है, क्योंकि बच्चों की पाचन शक्ति अत्यंत नाजुक होती है, जिससे संक्रमण होने की संभावना भी अधिक रहती है।
अतिसार (दस्त) पाचन तंत्र से सम्बन्धित विकार है। जो मल का पतले रूप में बार-बार व अधिक मात्रा में निकलना अर्थात् द्रव मल प्रवृत्ति ही अतिसार है। यह तीन वर्ष तक के बच्चों में अधिकांश पाई जाने वाली बीमारी है। गर्मी व बारिश में ये समस्यायें अधिक होती हैं, इस मौसम में दस्त से पीडि़त बच्चें हॉस्फिटल में अधिक संख्या में भर्ती होते हैं।
अतिसार में पतले दस्त बार-बार आते हैं। कभी-कभी बालक का मल आंव या रक्त मिश्रित, झाग युक्त, दुर्गंध युक्त, हरा-पीला रंग का भी हो सकता है। स्थिति तब गंभीर हो जाती है, जब अतिसार के कारण बच्चे के शरीर में पानी की कमी हो जाती है। जिसमें बच्चे का वजन से तेजी से घटने लगता है और कमजोर हो जाता है।
यदि बच्चे में अतिसार के साथ निम्न लक्षण भी हों, तो उस पर विशेष ध्यान दें व चिकित्सक का मार्गदर्शन लें-
दस्त की अवस्था में बच्चे में पानी की पूर्ति के लिये उसे नींबू पानी का घोल बार-बार देते रहें। जिसे इस प्रकार बनायें- 200 से 250 मिली- उबला हुआ ठंडा पानी लें।
जिसमें 3 ऊंगलियों से पकड़कर एक चुटकी नमक पानी में मिलायें। अब इसमें दो चम्मच चीनी मिलायें, 4-5 बूंद नींबू का रस निचोड़ दें। इस घोल को चम्मच से हिलाकर एक बार में चार चम्मच बच्चे को पिलायें। साथ ही बालक को अतिरिक्त पेय पदार्थ अवश्य दें। जैसे दही का छाछ, आरारोट, चावल की कांजी, सेब, चावल का पानी, दाल का पानी, साबूदाने का पानी, नारियल का पानी इत्यादि प्रत्येक दस्त के पश्चात दें। इस प्रकार दस्त के दौरान बालक को हल्का आहार दें।
इस प्रकार बालक का उचित ध्यान रखकर आप अपने बच्चे को संक्रमण व विकारों से बचा सकते हैं। प्रारम्भ के दो वर्ष तक सावधानियां बरतनी आवश्यक है, उन्हें कोई भी नई चीज सोच-विचार कर दें। उनके खाने-पीने सोने इत्यादि का ध्यान रखें। छोटी-छोटी व आवश्यक बातों पर ध्यान न देने से बालक के स्वास्थ्य को खतरा हो जाता है। चूंकि बच्चे बहुत नाजुक, कोमल, प्यारे होते हैं, उनका शरीर बहुत मुलायम होता है, इसी कारण से कोई भी समस्या उनकों अत्यधिक पीड़ा और कष्ट देती है, जो वे बता भी नहीं पाते। इसलिये आप अपने बच्चों का सावधानी पूर्वक ध्यान रखकर उन्हें होने वाली पीड़ा-कष्ट से बचा सकती हैं। आपका मंगल हो—!!!
आपकी माँ
शोभा श्रीमाली
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