प्रिय आत्मन,
ऋग्वेद के नवम मंडल का यह मन्त्र, जिसका भावार्थ है कि जहां अखंड ज्योति जलती है, जो ज्योति कभी क्षीण नहीं होती, जिस लोक में, जिस संसार में आनन्द बसता है, जहां आनन्द का अमृत है, हे परमेश्वर परमात्मा जीवो को पवित्र करने वाले, मुझे उस लोक में ले चल, अपने अमृत के लोक में ले चल, वहां ले जाकर मुझे बैठा देना, जहां तेरे अमृत कोष का कभी क्षय नहीं होता।
इन्द्रा, इन्द्रो परश्रिवः अर्थात् मेरे मन को, मेरे आत्म स्वरूप को अपनी तरंग से जोड़कर आनन्दित कर दे, हम एक ऐसे पक्षी की तरह हैं, जो हरियाली से भटक कर रेगिस्तान की तरफ आ गिरा है, इसलिये यह प्रार्थना है, कि हे ईश्वर! हमें वहीं ले चल जहां आनन्द है, प्रकाश है, उस लोक में हमे ले चल जहां हर क्षण ज्योति जगमग है, प्रकाश है, आनन्द ही आनन्द है। जिसे ज्योति जले अगम की कहा गया है, परमेश्वर की ज्योति जहां लगातार जल रही है। एक ऐसी ज्योति जो बुझती नहीं, जिसे हवा नहीं बुझा सकती, आंधियां जिसको मिटा नहीं सकती, वक्त का प्रभाव जिस पर नहीं पड़ता, जिसकी ऊर्जा कभी कम नहीं होती, उस प्रकाश लोक से हम भटक गये हैं।
यह भटकाव समाप्त करने की प्रार्थना, विनय जब हमारे हृदय में जागती है, तो हृदय विरह से भर जाता है और फिर आंखो से जो प्रेम अश्रुओ की वर्षा होती है, वही वास्तविक प्रेम है, आत्मीय लगाव है। जब कभी भी हृदय ऐसे भावों से भर जाये, तो देर मत लगाना जो कुछ भी है, जिन शब्दो में कह सको, अपना सर्वस्व व्यक्त कर देना सद्गुरुदेव नारायण के समक्ष, माँ भगवती के समक्ष, तब शब्दो की ओर ध्यान मत देना, शब्द तो केवल इंगित करते हैं, इशारा करते हैं, शब्द के मूलभूत तथ्य पर अपना ध्यान केन्द्रित करना, प्रेम भावना तो केवल अनुभव की जा सकती है, उसे शब्दो के माध्यम से व्यक्त नहीं किया जा सकता है।
आपका और सद्गुरुदेव का सम्बन्ध आत्मा का है, प्राणों का है, यह अक्षुण्ण है, युगो युगो से है, हां भटके अवश्य हैं और एकाकार भी होंगे, अवश्य होंगे, यह भावना आपके भीतर जाग्रत होनी चाहिये, प्रेम का दीपक हृदय में प्रज्ज्वलित होना चाहिये, इस अग्नि को ज्वाला बनने दो, अग्नि के माध्यम से भीतर की गन्दगी साफ होगी, हृदय स्वच्छ व पवित्र होगा और जब भी अवसर मिले हृदय को स्वच्छ करने की क्रिया छोड़ना मत, इसे स्वच्छ बार-बार करिये। जब कभी स्वयं के लिये, अपनी आत्मा के लिये समय मिले ईश्वर रूपी सद्गुरुदेव से यह विनय कर ही लें, जीवन में ना समस्यायें समाप्त होगी, ना ही संघर्ष, कभी ये मत सोचना कि फुर्सत के समय प्रार्थना करुंगा, जहां भी हो, जिस हाल में भी हो, यदि अन्तर मन में भाव जाग्रत हो जायें तो देर मत करना, उसी क्षण अपनी भावनायें व्यक्त कर दें ईश्वर से, ईश्वर भी आपके लिये उतना ही चिंतित है, जितना कि आप उसके लिये व्याकुल हैं–!!!
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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