जीवन के कुल 16 पक्ष है जिनमें धन प्राप्ति, स्वास्थ्य, पारिवारिक सुख, शत्रु बाधा निवारण, राज्य सम्मान, विदेश यात्रा योग, पुत्र सुख इत्यादि सम्मिलित किये और यह निष्कर्ष निकला कि जीवन में इन सोलह स्थितियों का प्राप्त होना ही जीवन की पूर्णता है, जिसे भाग्योदय के नाम से वर्णित किया गया है।
श्री यंत्र लक्ष्मी जी को अत्यन्त ही प्रिय है, जहां यह यंत्र स्थापित होता है वहां लक्ष्मी स्थायी रूप से वास करती है। ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों ने एक स्वर से यह स्वीकार किया है, कि यह यंत्र अद्भुत धनप्रदायक यंत्र है। जहां यह यंत्र स्थापित होता है, वहां पर दरिद्रता का विनाश होता है, ऋण मोचन में यह यंत्र पूर्ण सफलतादायक है।
मुख्यतः श्री यंत्र आठ प्रकार के होते हैं।
1.मेरूपृष्ठीय श्री यंत्र, 2. कूर्मपृष्ठीय श्री यंत्र, 3. धरापृष्ठीय श्री यंत्र, 4. मत्स्यपृष्ठीय श्री यंत्र, 5. ऊर्ध्वरूपीय श्री यंत्र, 6. मातंगीय श्री यंत्र, 7. नवनिधि श्री यंत्र, 8. वाराहीय श्री यंत्र
इनमें से गृहस्थ व्यक्तियों के लिये कूर्मपृष्ठीय श्री यंत्र ही श्रेयष्कर है, ऐसा श्री यंत्र ही व्यापार वृद्धि, ऋण मोचन, धन लाभ तथा भौतिक उन्नति के लिये अनुकूल है। इसलिये प्रत्येक गृहस्थ व्यक्ति को चाहिये कि वह दरिद्रता नाश, अटूट सम्पत्ति, भौतिक सुख-सम्पदा तथा अद्भूत ऐश्वर्य सिद्धि के कूर्मपृष्ठीय श्री यंत्र को ही अपने घर में, दुकान में या कार्यालय में स्थापित करे।
अतः दीपवाली के शुभ अवसर पर इस विशेष यंत्र को स्थापित कर, यंत्र का पूजन सम्पन्न करने से जीवन में धन-धान्य, यश, कीर्ति, समृद्धि, सम्पत्ति आदि लक्ष्मीमय सुस्थितियों का निश्चित रूप से आगमन होता ही है। साथ ही समस्त वास्तु दोष समाप्त होते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
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