हे करूणा रूपिणी माते! आपके करूणा के अमृतपान से सभी शिष्य जीवनी शक्ति से अभिभूत होते हैं, माँ आप ही के वात्सल्य, प्रेम से मेरा जीवन गतिशील है, मैं आपकी किन शब्दो से अभ्यर्थना करूं, सृष्टि के सभी शब्द आपके विराट स्वरूप के सामने बौने प्रतीत होते हैं, मैं तो माँ शब्द के सिवा कुछ और जानना ही नहीं चाहता, हे माँ! मुझे इतनी शक्ति दो कि निर्विकार भाव से आपकी स्तुति कर सकूं।
हे आद्या शक्ति स्वरूपिणी माँ! आपका धयान, चिंतन, स्तुति, उपासना कर मैं आपकी कृपा प्राप्त कर सकूं, बस इतनी ही मेरी अभिलाषा है।
माँ शब्द का उच्चारण करते ही, मेरा रोम-रोम प्रफुल्लित हो जाता है, जीवन के सभी कष्ट तुम्हारा स्नेह पाते ही समाप्त हो जाते हैं, जिस तरह शिशु अपनी माँ का सानिध्य पाते ही, भय मुक्त हो जाता है, उसी मातृ शक्ति स्वरूप में मुझे अपना सानिध्य दो माँ!!!
माँ आपको पास ना पाकर मेरा गला रूंधने लगता है, फि़र दूसरे क्षण ही मुझे भान होता है, आप तो सर्वज्ञ विद्यमान हो, आपके ममत्व की वर्षा निरन्तर मुझ पर हो रही है।
हे माँ सिद्धाश्रम वासिनी! सिद्धाश्रम में आपके आगमन पर उल्लास, उत्सव का वातावरण होगा, माँ मैं तो केवल इतना ही चाहता हूं, आप सदा मुझ पर अपनी दृष्टि बनाये रखना। इन्हीं भावों के साथ मैं आपकी पूजा, स्तुति, अर्चना, प्रार्थना, वन्दना करता हूं, आपको कोटि-कोटि नमन माँ—!!!!
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