ईश्वर ने हमें शरीर और इन्द्रियां प्रदान की हैं। यह सब सक्रियता के लिये ही है, अब तात्पर्य यह है कि हम शरीर और इन्द्रियों द्वारा सभी अच्छे-बुरे कार्य करते हैं। यदि हम संसार की गतिविधियों को देखें तो पायेंगे कि सब लोग सुख की कामना से विभिन्न-विभिन्न कार्यो में लगे हैं। कठोर परिश्रम के पश्चात् मनुष्य को थोड़ा सा सांसारिक सुख मिलता है परन्तु मानसिक शांति नहीं मिल पाती। सत्य भी यही है कि सांसारिक जीवन में मानसिक शांति मिल नहीं सकती और आज का मनुष्य संसार से विरक्त होना नहीं चाहता, विरक्त होने का तात्पर्य है कि संसार में रहते हुये भी प्रभु में, सद्गुरुदेव में लीन होना।
सांसारिक कार्य करते हुये सद्गुरु रूपी प्रभु का ध्यान करते रहने से ही मानसिक शांति मिल सकती है, इसके लिये किसी विशेष क्रिया-कलाप की जरूरत नहीं पड़ती। सिर्फ और सिर्फ एक बार सच्चे मन से निर्धारित करने की आवश्यकता है। लेकिन हम करते हैं, आधे-अधूरे मन से, थोड़ी सी समस्या आयी कि सब साधना, मंत्र जप, पूजा, अर्चना, ईश्वर, गुरु का स्मरण प्रारम्भ कर देते हैं और यह भी पता नहीं है कि समस्या सुलझेगी भी या नहीं, लेकिन सुलझाने निकल पड़े। सत्य कहने में बुराई ही क्या, कोई रूष्ट होता है, तब ही वह सत्य बात के बारे में विचार करता है, तब उसे सही ज्ञान का एहसास होता है, कि बात बिल्कुल खरी-खरी है, सत्य नहीं बदल सकता। मैं तो वही करूंगा, वही कहूंगा जो सत्य है। यदि सत्य से किसी को समस्या है, तो वह अपना जीवन अंधेरे में जी रहा है, पूरा अंधकारमय है वह, मैं तो सिर्फ उसी को ढूढंता हूं, जो सत्य से सरोकार करना चाहता है।
जब गुरु का, परमात्मा का हाथ थाम ही लिया है, तो हो जाने दो, जो होता है, परवाह नहीं करना, गुरु सम्भालेंगे इतना भरोसा तो रखना ही चाहिये और जब तक सद्गुरुदेव के हाथ में जीवन की डोर है, मृत्यु होगी नहीं और यदि होती भी है, तो आपके समस्याओ की, दुखों की होगी। आवश्यक है कि हम अपने ईष्ट, अपने गुरु के प्रति पूर्ण ईमानदार हो, ईमानदार ही नहीं, पूर्ण समर्पण की बात कर रहा हूं मैं, हम निष्ठावान हो, श्रद्धावान हों यह आवश्यक है, निष्ठा और श्रद्धा कहने से आयेगी नहीं, भीतर से जाग्रत करना पड़ेगा, समर्पण स्तुति करने से समर्पण नहीं आता, ना ही समर्पण-समर्पण चिल्लाने से समर्पित हो सकोगे, वह भीतर से जाग्रत होता है, जाग्रत करना पड़ता है, फिर स्वतः स्पष्ट हो जाता है, कि यह शिष्य समर्पित है, उसके कार्यो से, उसकी सेवा से समर्पण स्वतः ही झलकने लगता है, बिल्कुल वैसे ही जैसे आईने में आपका प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखता है और समर्पण आने पर भी बिल्कुल ऐसे ही होता है शिष्य का समर्पण उसके कार्यो, उसकी सेवा के प्रतिबिम्ब रूप में स्पष्ट होने लगता है, दिखावा नहीं करना पड़ता इसके लिये, बहुत से लोग हैं, जो समर्पण का दिखावा करते हैं, गुरु को देखते हैं, कि तुरन्त काम में लग जाते हैं, दौड़ने लगते हैं, उनके सामने क्या दिखावा करना जो तुम्हारे रग-रग से परिचित हैं, उनके साथ कैसा छलावा?
आओ! हम सब मिलकर अपने जीवन में पारदर्शिता लाये, एक सुखी जीवन जीने का प्रयास करें, हमारे भीतर और बाहर का एक ही स्वरूप हो, यदि हम आज से प्रयास करेंगे तो निश्चित ही हम सफल होंगे, ये मुझे विश्वास है, सिर्फ हमें एक कदम आगे बढ़ने की आवश्यकता है, फिर हजारों कदम की यात्रा अपने आप सरल और सुगम हो जायेगी। दिसम्बर अंक के साथ आपको नववर्ष 2017 का कैलेण्डर पत्रिका परिवार द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है। जिसके माध्यम से वर्ष भर के साधनात्मक दिवस का ज्ञान होगा और आप वर्ष 2017 के अनेक सिद्ध, चैतन्य दिवसों पर साधना सम्पन्न व शक्तिपात दीक्षा ग्रहण करने से अक्षुण्ण लाभ प्राप्त कर सकेंगे। जिससे आपका जीवन सभी स्वरूपों में धन-धान्य, आनन्द से परिपूर्ण हो सकेगा।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,