संसार में जितने भी ईश्वर के अवतरण स्वरूप ऋषि, सन्यासी, गुरु, सद्गुरु, महान दिव्य पुरूष स्वरूप में आदर्शवादी व्यक्तित्व का जन्म हुआ, सबने एक ही बात कही कि मनुष्य अपने जीवन को परमार्थ तक कैसे पहुचा सके ? लेकिन एक ज्वलंत प्रश्न हमारे सामने यह है कि उन महान गुरुओं के ज्ञान को आत्मसात कर कितने लोग आनन्द को, परमार्थ को प्राप्त कर पाये? आखिर में वह कौन सा कारण है, कि इतनी दिव्य आत्माओं के अवतरण होने के बाद भी यह धरती संतप्त है। मैं आपके सामने घिसे-पिटे प्रवचनों को लेकर नहीं आया हूं, ना ही मेरा उद्देश्य ही ऐसा है, मैं तो केवल इतना ही जानना चाहता हूं, कि जिस ज्ञान, चेतना से आप परिचित हो, उसे क्रियात्मक रूप में किस तरह से पूर्णतः धारण करेंगे।
ऐसी कोई बात है नहीं, जिससे आप परिचित ना हो, आपको ज्ञान है, आप में चेतना है, आप जीवन के अच्छे-बुरे कर्मों से परिचित हो, कुछ बताने की आवश्यकता है नहीं, आपने गीता भी पढ़ी है, आपने रामायण को भी जाना है, मंत्र से भी परिचित हो, तंत्र को भी जानते हो, साधनाओं को भी करीब से देखा है।
यह सब हमें प्राप्त हुआ, हमारे महानतम् ऋषि- मुनियों से, सद्गरुदेव से लेकिन सिर्फ ज्ञान प्राप्त हुआ है, उस ज्ञान को जीवन में उतार कर सार्थक स्वरूप में सिद्ध नहीं कर पाये अपने जीवन में, इसमें सद्गुरु का कोई दोष नहीं है, बुद्ध, महावीर, सुकरात, शंकाराचार्य का कोई दोष नहीं है, वे आये अपना कार्य सम्पन्न किये और चले गये, लेकिन प्रश्न यह है कि शंकराचार्य आये तो फिर बुद्ध को क्यों आना पड़ा? महावीर आये तो सुकरात को क्यों आना पड़ा? यह क्रम क्यों चलता रहा, हम एक के आने पर ही क्यों जाग्रत नहीं हुये और उससे भी ज्वलंत प्रश्न है, झकझोर देने वाला कि यह क्रम कब तक चलेगा? आखिर में हम कब जाग्रत होंगे, वह कौन सा क्षण है, जब हम वास्तविक जीवन की ओर गतिशील होने का प्रयास करेंगे। सब के पास कोई ना कोई समस्या है, एक कहानी है, मेरे पास भी है, राम के पास भी थी, कृष्ण के पास भी थी, लेकिन उन्होंने अपने जीवन के उद्देश्यों को नहीं बदला।
और हम पिछले हजारों-हजारों वर्षों से इन्द्रिय सुख में लगे हुये हैं, फिर भी हमारी इन्द्रियां तृप्त नहीं हुयीं और आगे भी होने की कोई संभावना नहीं है, आगे हजारों वर्ष और प्रयास करके देख लो, इन्द्रियां तृप्त होंगी ही नहीं। मेरे कहने से तृप्ति भाव आपके जीवन में नहीं आयेगा, करना तो आपको ही है, आपकी विचारधारा परिवर्तित तो होगी नहीं और यदि परिवर्तित होती तो शंकराचार्य के बाद किसी और को आने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती, लेकिन अवसरों का क्रम समाप्त भी हो सकता है।
इसलिये मैं आपसे यही कहूंगा कि अब तो ऐसा प्रयास करें कि किसी और बुद्ध, महावीर, दयानन्द सरस्वती, सुकरात को इस धरती पर जन्म ना लेना पड़े व कब तक आप राम, कृष्ण, बुद्ध को बुला-बुला कर गालियां और जहर देते रहेंगे। कब तक किसी के कान में कुण्डल, किसी को वनवास भेजते रहेंगे, इसका अंत भी होगा या नहीं, आये तो सब मानव कल्याण के लिये ही थे, लेकिन मिला क्या उन्हें, यह आप अच्छी तरह जानते हो।
आप लोग एक बार अवश्य चिंतन करें कि आखिर में जीवन की गति क्या है? किस ओर जाना है? सद्गुरुदेव निखिल हमें क्या प्रदान करने आये थे और हम किस ओर जा रहें हैं——-
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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