समय के अनुसार बहुत कुछ बदला, प्रत्येक व्यक्ति के लिये यह सम्भव नहीं है कि अपने घर परिवार को पूर्णतः त्याग कर जंगलों, वनों और हिमालय की ओर प्रस्थान कर जाय, उसके लिये तो जीवन घट चक्र के सारे नियमों का पालन करना है, और इस पालन में अपने लक्ष्य का ध्यान रखते हुये पूर्णता प्राप्त करनी है। गुरु भी शिष्य को जब दीक्षा देते हैं तो उसे केवल एक मंत्र देते हैं, इस मंत्र में सारे रहस्य छिपे रहते है और उसे परम तत्व की पहिचान का एक मार्ग दे देते हैं। जब शिष्य जान लेता है कि जो भी सिद्धि है, वह गुरु कृपा से है और मुझे इसका धन्यवाद देना ही है।
गुरु सन्तोष मात्रेण सिद्धिर्भवति शाश्वती।
अन्यथा नैव सिद्धिः स्यादभिचारव कल्पते।।
शिष्य के लिये गुरु पूर्णिमा से बढ़कर कोई महान उत्सव नहीं है अन्य उत्सवों में तो वह अपने सांसारिक क्रिया कलाप की प्रक्रिया में श्रेष्ठता लाने हेतु कार्य करता है, गुरु के आदेश से साधनायें करता है और गुरु पूर्णिमा गुरु कृपा प्रसाद का जो फल मिला है। उसे समर्पण करने का अवसर है।
सही अर्थों में यह पर्व गुरू का पर्व है ही नहीं, यह तो शिष्य पर्व है, शिष्य पूर्णिमा है, क्योंकि यह शिष्य के जीवन का एक अन्तरंग और महत्वपूर्ण क्षण है, यह उसके लिये उत्सव का आयोजन है, यह मन की प्रसन्नता को व्यक्त करने का त्यौहार है, यह एक ऐसा पर्व है, जो जीवन की प्रफुल्लता मधुरता और समर्पण के पथ पर गुरू के चरण चिन्ह अंकित कर, जीवन को सौभाग्यशाली बनते है।
यदि तुम मेरे आत्मीय हो, मेरे प्राणों के घनीभूत स्वरूप हो, मेरे जीवन का रस और चेतना हो तो यह निश्चय ही तुम्हारे लिये उत्सव, आनन्द और सौभाग्य का पर्व है, क्योंकि शिष्य अपने जीवन की पूर्णता तभी पा सकता है, जब वह गुरू-ऋण से उऋण हो जाय, मां ने तो केवल तुम्हारी देह को जन्म दिया, पर मैंने उस देह को संस्कारित किया है, उसमें प्राणश्चेतना जागृत की है, उस तेज तपती हुई धूप में वासन्ती बहार का झोंका प्रवाहित किया है, मैंने उस तपते हुये भूखण्ड पर आनन्द के अमिट अक्षर लिखने की प्रक्रिया की है, और मैंने तुम्हें ‘पुत्र’ शब्द से ‘आत्मीय’ शब्द से ‘प्राण’ शब्द से सम्बोधित किया है। और यह सब ऋण तुम्हारे ऊपर है, इस जन्म का ही नहीं, पिछले कई जन्मों के ऋण तुम्हारे ऊपर है और यह पर्व उस गुरू ऋण से उऋण होने का पर्व है, यह पर्व सही आर्थों में आनन्द प्राप्त करने का पर्व है, सही अर्थों में गुरू के चरणों में नमन होने का पर्व है, और पिछले कई जन्मों से जो कुछ ऋण तुम्हारे ऊपर हो गया है, उससे पूर्णतः मुक्ति पाने का, उऋण होने का पर्व है।
मैंने तुम्हें अपना नाम दिया है, और इससे भी बढ़कर मैंने तुम्हें अपना पुत्र और आत्मीय कहा है, अपना गोत्र तुम्हें प्रदान किया है और अपने जीवन के रस से सींच-सींच कर तुम्हारी बेल को मुरझाने से बचाने का प्रयास किया है, तुम्हारी सूखी हुई टहनियों में रस प्रदान करने का सफ़लतापूर्वक प्रयास किया है, और मेरा यह प्रयत्न रहा है, अपनी जवानी को, हिमालय के पत्थरों पर घिस-घिस कर तुम्हें अमृत पिलाने का प्रयास किया है, तुम्हारे प्रत्येक जन्म में मैंने चेतना देने की कोशिश की है, और हर बार तुम्हारे मुरझाये हुये चेहरे पर एक खुशी, एक आनन्द एक चमक प्रदान करने का प्रयास किया है।
और यह हर बार हुआ है, मेरा जीवन अपने स्वयं के लिये या परिवार के लिये नहीं है, मेरा जीवन तो शिष्यों के लिये है, मेरे जीवन का उद्देश्य तो शिष्यों को पूर्णता देने का प्रयास है, और इसके लिये मैंने सिद्धाश्रम जैसा आनन्ददायक और अनिवर्चनीय आश्रम छोड़ा, और तुम्हारे इस मैले-कुचैले, गलियारों में आकर बैठा, जो वायुवेग से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिये सक्षम था, उसने तुम्हारे लिये अपने आप को एक छोटे से वाहन में बन्द कर लिया, जिसका घर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड था, और किसी भी ग्रह या लोकों में विचरण करता हुआ निरन्तर आनन्दयुक्त था, उसने तुम्हारे लिये वह समाज से जूंझा, आलोचनायें सुनी, गालियां खाई, और कई प्रकार के कुर्तको का सामना किया, यह सब क्यों? क्या जरूरत थी उसे यह सब सहन करने की, झेलने की, भुगतने की? यह सद्गुरु का प्रेम था जो निरन्तर निरन्तर अपने शिष्यों के प्रति रहा है।
गुरू पूर्णिमा तुम्हारे आनन्द और सौभाग्य का पर्व है, यह आनन्द और सौभाग्य प्राप्त करने का अवसर है, यह एक ऐसा क्षण है, जहां से गुजरने पर सब कुछ प्राप्त हो सकता है, यह एक ऐसा त्यौहार है, जब तुम अपने जीवन की गहराई में उतर सकोगे, अपने प्राणों से एकाकार हो सकोगे और देख सकोगे कि पिछलें कई-कई जन्मों से इन्हीं प्राणों से एकीकृत हो, पहली बार अनुभव कर सकोगे कि इस क्षण से तुम, निर्मल पवित्र और दिव्य बन कर समाज से ऊपर उठकर अपना व्यक्तित्व स्पष्ट कर सकोगे।
मैं इस गुरू पूर्णिमा पर यह सब कुछ करने के लिये कृत संकल्प हूं, इस गुरू पूर्णिमा पर तुम्हारी हथेलियां मोतियों से भरने के लिये उद्यत हूं, मैं इस गुरू पूर्णिमा पर दुर्गन्ध युक्त विषैले वातावरण से बाहर निकाल कर आनन्द के उद्यान में खड़ा करने के लिये प्रयत्नशील हूं, जहां तुम गुरु की सुगन्ध से आप्लावित हो सको, गहराई के साथ सांस ले सको, अपने प्राणों में आनन्द की प्राणवायु भर सको, अपने रक्त को नई चेतना दे सको, अपने जीवन को नये ढंग से आवाज दे सको, तुम्हारे चेहरे पर दृढ़ता और आंखों में एक नयी चमक आ सके, तुम्हारा सिर गर्व से ऊंचा उठ सके, तुम सही अर्थों में राजहंस बन सको, तुम सही अर्थों में इस नीले आकाश में पूरी क्षमता के साथ उड़कर समस्त ब्रह्माण्ड को अपनी बाहों में समेट सको।
मैं इन सब के लिये ही गुरू पूर्णिमा पर आवाज दे रहा हूं, क्योंकि यह तुम्हारा स्वयं का पर्व है, यदि शिष्य सही अर्थों में शिष्य है, यदि सही अर्थों में वह मेरी आत्मा का अंश है, यदि सही अर्थों में मेरी प्राणश्चेतना है, तो उसके पांव किसी भी हालत में रूक नहीं सकते, समाज उसका रास्ता रोक नहीं सकता, परिवार उसके पैरों में बेडि़यां डाल नहीं सकता, वह तो हर हालत में आगे बढ़ कर गुरू चरणों में, सद्गुरु में एकाकार होगा ही, क्योंकि यह एकाकार होना ही जीवन की पूर्णता है, और यदि ऐसा नहीं हो सका तो वह शिष्यता ही नहीं है, वह तो कायरता है, बुझदिली है, कमजोरी है, नपुंसकता है, और मुझे विश्वास है, कि मेरे शिष्यों के साथ इस प्रकार के घिनौने शब्द नहीं जुड़ सकते।
आपका अपना कैलाश चन्द्र श्रीमाली
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,