जब कोई अपनी दोनों हथेलियों से किसी विशिष्ट व्यक्ति का चरण स्पर्श करता है तो कॉस्मिक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगो का एक चक्र उसके शरीर के अग्रभाग में घूमने लगता है, उससे शरीर के विकारों को नष्ट करने वाली ऊर्जा उत्पन्न होती है। चरण स्पर्श करने वालों को नई स्फूर्ति के साथ नई प्रेरणा मिलती है और उसी शक्ति के कारण उसकी नकारात्मक प्रवृत्तियाँ समाप्त हो जाती है। नियमित चरण स्पर्श और दंडवत करने से हमे वज्रासन, भुजंगासन व सूर्य नमस्कार जैसे आसनों की मुद्राओं की स्थिति से गुजरना पड़ता है। इन क्रियाओं का मन, शरीर एवं स्वास्थ्य पर स्फूर्ति रूप में शक्तिदायी प्रभाव पड़ता है।
हमारी भारतीय संस्कृति में अपने से बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना एक सद्गुण माना गया है। प्राचीनकाल से ही माता-पिता, गुरूओं, बड़े-बुर्जुगों आदि के चरण स्पर्श करने की परंपरा रही है। कोई व्यक्ति कितना ही क्रोधी स्वभाव का हो, अपवित्र भावनाओं वाला हों यदि उसके भी चरण स्पर्श किए जाते हैं तो उसके मुख से आशीर्वाद, दुआएँ सद्वचन ही निकलते है। मनुष्य के शरीर में उत्तरी ध्रुव यानि सिर से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव यानी पैरों की ओर प्रवाहित होती है और पैरों में उर्जा का केंद्र बन जाता है। हाथों और पैरों की अंगुलियों और अंगूठों के पोरों में यह ऊर्जा सर्वाधिक रूप से रहती है। सामान्य तौर पर जब हम किसी का चरण स्पर्श करते हैं, उसके हाथ सहज ही हमारे सिर पर जाते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है जिससे ज्ञान, बुद्धि और विवेक का विकास सहज होने लगता है।
गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या श्राप के कारण पत्थर की मूरत बन गई थी और भगवान राम के चरण स्पर्श से श्राप मुक्त होकर वापिस मानव रूप में आई थी। प्रभु के चरणों की महिमा का बखान हर ग्रंथ में है। ‘मनुस्मृति के अनुसार जो व्यक्ति प्रतिदिन अपने बडों के चरण स्पर्श करता है उसकी आयु, बल, विद्या और यश में सदा वृद्धि होती है।’
‘वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत है कि पैर के अंगूठे में ऊर्जा शक्ति के रूप में रहती है और चरण धोने से सामने वाले में समाहित होती है । अंगूठे में कुछ ऐसी ग्रंथियाँ होती है जिनके ऊपर यदि चोट लग जाए तो गंभीर समस्या पैदा हो सकती है।’
चरण स्पर्श से पहले चरण धोने के पीछे यह वैज्ञानिक कारण है कि चरणों में एकत्रित विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा चलकर आने से अत्यधिक तीव्रता से प्रवाहित है और गर्म है। शीतल जल से धोने से यह सामान्य अवस्था में आ जाती है।
चरण स्पर्श करने वाला व्यक्ति अपने सामने वाले व्यक्ति जिसका चरण स्पर्श करता है की सद्भावनाओं को प्रेम भावनाओं को आकर्षित कर स्वयं को ऊर्जावान बना लेता है कभी-कभी कुछ विशेष क्षणों में किये गये चरण स्पर्श से स्वतः ही अचानक वरदान प्राप्त हो जाते है जिससे हम पर आने वाली किसी भी आपदा का निराकरण हो जाता है और हम उन्नति की ओर अग्रसर हो जाते है कोई व्यक्ति यदि हमसे किसी प्रकार का मनमुटाव या द्वेष रखता हो तो उसका भी चरण स्पर्श कर लेने पर वह भावविहवल हो जाता है तथा प्रेम स्नेह करने लगता है यह आपसी परिवार में बड़ों को मनाने मनुहार करने का एक श्रेष्ठ उपाय है कुछ स्थानों पर तो रूठों हुये को मनाने के लिये उनके चरणों को तब तक नहीं छोड़ते जब तक वह उन्हें पूर्णतः क्षमा न कर दे। हमें किसी भी महत्वपूर्ण कार्यों पर जाने से अपने से बड़ों का आदरपूर्वक चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिये जिससे उनके वरदान युक्त आशीर्वाद से पूर्ण सफलता प्राप्त कर सके।
मुख्यतः यह परम्परा केवल हमारे देश की संस्कृति में ही विराजमान है प्राचीन ऋषियों, मुनियों, गुरुओं ने ही हमें यह सब विरासत में दिया है अन्य किसी देश विदेश में यह परम्परा हमें देखने सुनने में नहीं मिलती। इसीलिए हमारे देश में पारिवारिक प्रेम आपसी सौहार्द को जोड़ने का यह नायाब तरीका प्रचलन में है।
और इससे भी बढ़कर दंडवत् प्रणाम करने का तरीका भी है जो अधिकांशतः गुरु शिष्य परम्परा में प्रचलित है यह दण्डवत प्रणाम शिष्य गुरु के समक्ष पूर्णतः लेटकर अपने मस्तक को गुरु चरणों के अगूठे पर स्पर्श करते है जिससे गुरु शिष्य के समर्पण को आंक लेता है तथा शिष्य गुरु की ऊर्जा को उनके अंगूठे से आत्मसात करता है।
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