इस सृष्टि में अनन्त ब्रह्माण्ड हैं। प्रत्येक ब्रह्माण्ड में अनन्त भू-भाग हैं। उन समस्त भू-भागों में भारतवर्ष ही ऐसा पावन देश है, जहां की सरिता, तीर्थ, शक्तिपीठ, आर्य संस्कृति, नदियां, सरोवर, वन और पर्वतादि भी अपनी गुण-गरिमा एवं पावनता से विश्व के समस्त प्राणियों का कल्याण करने में समर्थ हैं। इसी कारण आर्य भूमि का प्रत्येक प्राणी स्वाभिमान से भर जाता है।
अर्थात् जिसके द्वारा मनुष्य इस अपार संसार से तर जाये, उसी को तीर्थ की संज्ञा प्राचीन धर्माचार्यो ने दी है। वे तीर्थ अलौकिक हैं, भारतीय महर्षियों के तपः शक्ति द्वारा उस भूमि की रज के कण-कण में पावन तत्वों का समाविष्ट है। अर्थात् उनकी चेतना, तपस्यांश शक्ति से युक्त है। उस रज (मिट्टी) को मस्तक पर धारण करने मात्र से सम्पूर्ण पाप-ताप उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे भगवान सूर्य के उदय होने पर अन्धकार नष्ट हो जाता है। तीर्थ यात्रा से जनमानस को महान पुण्य की प्राप्ति होती है। व्यक्ति तीर्थों पर दर्शन, साधना, दीक्षा, हवन, रूद्राभिषेक, पूजा, अर्चना, आराधना सम्पन्न कर स्वयं शिवमय हो जाता है, शिवत्व से युक्त हो जाता है।
जिस प्रकार शरीर के कुछ अंग पवित्र तथा श्रेष्ठ माने जाते हैं, सम्पूर्ण पृथ्वी के कुछ विशेष भाग महत्वपूर्ण और देव शक्तियों के चेतना व महर्षियों के तपस्या के तपस्यांश से परम पवित्र और फलदायी हैं। इन सभी दृष्टियों से भारतवर्ष के स्थल विशेष तेजपुंज शक्ति से युक्त है। ऐसे ही स्थलों को महर्षियों ने ‘तीर्थ’ की उपमा दी है। संसार से विरक्त हुये महापुरूष, ऋषि, अवतरित देवता प्रकृति के एकान्त और शान्त स्थानों में श्रेष्ठ पर्वत मालाओं, मनोरम गुफाओं, नदियों, समुद्री वातावरण के निकट और घनिष्ट वनों में जाकर जीवन के प्रत्येक सुख का त्याग करके, परमेश्वर की ध्यान, तपस्या, पूजा, साधना, अभिषेक, हवन व देव स्थापन आदि क्रियायें करते रहें हैं।
और अन्त में कर्म शत्रुओं (राग-द्वेषादि) का नाश करके परमार्थ को प्राप्त करते हैं। इस प्रकार आत्म सिद्धि प्राप्त करके वे स्वयं तो तारण-तरण होते ही हैं, साथ ही उस क्षेत्र के सम्पूर्ण वातावरण, वायुमण्डल में भी चेतना, ज्ञान और तप शक्ति संस्कारित कर देते हैं। ऐसे ही दिव्य भूमि को तीर्थ अथवा पवित्र स्थान कहा जाता है। ऐसे ही महान तीर्थों में रामेश्वरम् तीर्थ भगवान राम और प्राचीन ऋषियों की तप स्थली रही है। जिस भूमि पर भगवान राम ने शिव आराधना की और रामेश्वरम् शिवलिंग की स्थापन कर वंश नाश के पाप-दोष से मुक्त हुये।
पारिवारिक कलह के कारण भगवान राम पत्नी सीता व भाई सहित दंडकारण्य वन की ओर चौदह सालों के लिये निकल गये। एक राजकुमार पुत्र के लिये वन का जीवन कितना कष्टदायक होता है यह सामान्य कल्पना से परे है। जब वे पंचवटी आश्रम में थे, तब रावण ने छल से सीता का हरण कर लिया और उन्हें लंका के अशोक वाटिका में रखा। राम और लक्ष्मण सीता को ढूंढ़ते हुये किष्किन्धा पहुंचे और वहां पर उन्हें हनुमान और सुग्रीव मित्र के रूप में मिले। राम ने बाली वध कर सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा बनाया और इस उपकार हेतु सुग्रीव ने भगवान राम की मदद करने का वचन दिया। एक विशाल सेना की मदद से सीता की खोज प्रारम्भ हुई। हनुमान जब सीता को ढूंढते हुये रामेश्वरम् के पार लंका पहुंचे। वहां उन्होंने माता सीता को अशोक वाटिका में देखा। उन्हें देख कर हनुमान ने माता को अपना परिचय दिया और कहा कि भगवान राम उनकी खोज कर रहे हैं और उन्हें भगवान राम द्वारा दी गई चूड़ामणि दिखाई, जिसे देख कर सीता को हनुमान की बातों पर पूर्ण विश्वास हुआ। वापस आकर हनुमान ने भगवान राम को सीता के बारे में खबर दी और फिर राम, लक्ष्मण, सुग्रीव, जामवन्त, हनुमान आदि वानर सेना रामेश्वरम् के तट पर पहुंचे।
राम ने अपने समक्ष विशाल समुद्र को देखा तो थोड़ा निराश हुये। उन्होंने समुद्र देवता की आराधना प्रारम्भ की ताकि वह उन्हें व उनकी सेना को लंका जाने का मार्ग प्रदान करें। जब तीन दिन की उपासना के बाद भी समुद्र देव प्रसन्न नहीं हुये तो भगवान राम के क्रोध की कोई थाह न थी। उन्होंने अपना तीर निकाल कर धनुष पर चढ़ाया ही था कि समुद्र देवता प्रकट हुये व अपनी गलती की क्षमा मांगी। फिर उन्होंने भगवान राम को आश्वस्त किया कि वो सेतु के कार्य में उनकी पूर्ण मदद करेंगे। भगवान राम की सेना के ही दो योद्धा नल व नील ने सेतु बंधन का कार्य प्रारम्भ किया और उन्होंने शीघ्र ही इस कार्य को पूर्ण किया।
इसके उपरान्त भगवान राम ने शिव पुत्र गणपति की साधना-आराधना की जिससे कि मार्ग के सभी विघ्नों का नाश हो सके और नवग्रह यज्ञ भी सम्पन्न किया। जिससे सभी नवग्रह उनके अनुकूल और सहयोगी बने और वे विजय श्री को प्राप्त कर सके।
लंका विजय के बाद जब राम-सीता वापस पहुचें तो उनका स्वागत महामुनियों ने किया। महामुनियों के आदेशानुसार भगवान राम ने सीता के साथ भगवान शिव की पूजा करने का निश्चय किया। महामुनियों ने शिवलिंग पूजन व स्थापन का एक श्रेष्ठ मुहुर्त बताया और भगवान हनुमान को कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव से उनके लिंग स्वरूप विग्रह लाने का आदेश दिया। आज्ञानुसार हनुमान कैलाश पर्वत पर गये। हनुमान जी कैलाश पर्वत पर पहुंचकर भगवान शिव को ढूंढने लगे। जब उन्हें भगवान शिव कहीं नजर नहीं आये तो उन्होंने भगवान शिव की स्तुति करनी प्रारम्भ कर दी। सदाशिव महादेव तीन दिनों के उपरान्त प्रकट हुये और उन्होनें रामेश्वरम् लिंग प्रदान किया। हनुमान द्रुत गति से रामेश्वरम् पहुंचे। उससे पूर्व ही माता सीता जी ने वहां पर रेत का ही शिवलिंग बना कर शिव पूजन सम्पन्न किया।
रूद्राभिषेक के लिये कोटि तीर्थ जल का प्रयोग किया गया। हनुमान ने देखा कि उनके आने में जो विलम्ब हुआ उस कारण से श्रेष्ठ मुहुर्त पूर्ण हो गया। भगवान राम ने जब देखा कि हनुमान उनके द्वारा लाये गये शिवलिंग का प्रयोग न होने के कारण थोड़ा मायूस हो गये हैं तो उन्होंने हनुमान जी को यह वचन दिया कि पहले हनुमान द्वारा लाये गये शिवलिंग का पूजन करने के बाद ही माता सीता द्वारा स्थापित शिवलिंग का पूजन फलप्रद होगा और ऐसा कह कर उन्होंने हनुमान जी द्वारा लाये गये शिवलिंग को भी वहीं पर स्थापित किया।
मानव जीवन को सुख-शान्ति एवं समृद्धि का पुंज बनाने के लिये जिन मर्यादाओं के पालन और समावेश करने की आवश्यकता है, उन भारतीय धर्म की मर्यादाओं को बांधकर पालन करने वाले श्रीराम ही सभी कर्तव्यों और मर्यादाओं के मूर्तरूप हैं। उनके अतिरिक्त अभी तक संसार में ऐसा कोई दूसरा व्यक्ति इतिहास नहीं खोज पाया जिसने परिवार, समाज, शासन, शान्ति और संघर्ष की मर्यादाओं का पालन करने के लिये स्वयं घोर कष्ट सहकर परिवार रूपी प्रजा को एक सुख में बांधने में सफल हुये हैं। आर्य मर्यादा के आधार-स्तम्भ श्रीराम ने अपने समय में गिरते हुये मानवीय मूल्यों की अधोगति को रोक, उन्हें पुनः प्रतिष्ठित किया आदर्श ही भारतीय संस्कृति का मुख्य आधार है।
मर्यादा पालन के लिये ही उन्होंने अनेकों कष्ट सहकर ऐसा आदर्श स्थापित किया, जो उन्हें और उनकी कीर्ति को अजर अमर बना दिया। अपने जीवन के आदर्शों से मानवता को प्रेरित-अनुप्राणित करने वाले श्रीराम द्वारा सुस्थापित की जाने वाली मर्यादाओं से ही मानव का कल्याण संभव है। उनका प्रत्येक कार्य वर्तमान मानव के लिये प्रेरणा है। वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विजयी हुये। उन्होंने अपने जीवन में प्रत्येक पक्ष का मर्यादा पूर्ण निर्वाह किया। उनके साथ ही आर्य धर्म, संस्कृति, साहित्य और सामाजिक व्यवहार भी जुड़ा हुआ है।
मानव जीवन यापन के सम्बन्धों को मर्यादा का शिखर प्रदान करने वाले श्रीराम को यदि आज समाज भूल गया तो निश्चित रूप से दिग् भ्रमित होकर नष्ट-भ्रष्ट हो जायेंगे। आज मानव जिस महाविनाश के गर्त की ओर तेजी से चला जा रहा है, उससे बचने के लिये साधकों को महान से महान त्याग करके मर्यादा का निर्वाह करने वाले श्रीराम और उनके आदर्शों की ही आवश्यकता है। क्योंकि जीवन में परिवारिक, सामाजिक कर्तव्यों का पालन त्याग और आदर्शों के कसौटी पर ही संभव है। हमारा दुर्भाग्य रहा है कि मर्यादा पुरूषोत्तम जैसा श्रेष्ठ आदर्श अपने पास होने के बावजूद भी हम अन्धकार में भटकते रहें हैं। जिन लोगों के पास नारायण अवतार व वैष्णव पीठ की अधिष्ठाता के अवतार पुरूषोत्तम श्रीराम और भगवान सदाशिव श्यति पापम् स्वरूप त्रिशक्तियों के अभीष्ट देव हों, वे साधक साधिकायें, शिष्य-शिष्यायें और सम्पूर्ण आर्यावत फिर भी जीवन की आवश्यकताओं को ना पूर्ण कर पायें, तो इससे बड़ी विडम्बना और दुर्भाग्य आपका क्या होगा? समुद्र के पास रहकर यदि आप प्यासे रहो तो इसमें समुद्र का क्या दोष?
आज इस आपा-धापी और प्रतिस्पर्धा के युग में मानवीय मूल्यों का दिन-प्रतिदिन ह्रास होता जा रहा है तथा आसुरी पतन की शक्तियां जीवन की व्यवस्थाओं को धूमिल व खण्डित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। और हम परिवार-समाज, शुभचिंतको व स्वयं की आशाओं के भार से दबे जा रहे हैं, परिवार के प्रति कर्तव्यों का पालन करना ही हमारे लिये संभव नहीं हो पा रहा। अन्य का कहना ही क्या? ऐसे में आवश्यक है कि हम एक ऐसा मार्ग चुनें जो हमें श्रेष्ठता की ओर, मर्यादा की ओर, पुरूषोत्तम की ओर गतिशील होने की ऊर्जा और चेतना प्रदान ही ना करे बल्कि हमारा हाथ थाम कर हमें उस उच्चता तक पहुंचा सके, जो मानव जीवन का अधिकार है। ऐसा श्रेष्ठतम मार्ग तो सिर्फ गुरूदेव के सानिध्य में ही है।
भगवान राम की तरह पुरूषोत्तममय व शिव शक्तियों से युक्त जीवन निर्माण, ऐश्वर्यवान, धान-सुख, समृद्धि, सम्पन्नता के साथ पाप-ताप से मुक्त स्वच्छ, पवित्र जीवन निर्माण की क्रिया पूज्य गुरूदेव के दिव्य सानिध्य में नववर्ष पूर्ण लक्ष्मी वृद्धि साधना महोत्सव 26-27 दिसम्बर को रामेश्वरम् में सम्पन्न होगा। पूर्ण चैतन्य दिव्यता युक्त ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान सदाशिव की नगरी में समुद्र स्नान के बाद सभी चौबीस तीर्थ कुण्ड के जल से साधकों का अभिषेक स्वयं पूज्य गुरूदेव के दिव्य कर कमलों से होगा। साथ ही महामृत्युजंय अभिषेक, दुर्गा सरस्वती के वेदोक्त मंत्रों से नव चण्डी हवन, सर्व काल संहारक हनुमान शक्ति दीक्षा, ज्वाला मालिनी सौभाग्य धनदा लक्ष्मी दीक्षा प्रदान की जायेगी।
जिससे कि दिव्य तीर्थ स्थल पर सद्गुरूदेव के सानिध्य में इस तरह की पूर्ण रूपेण साधनात्मक क्रियायें करने से जैसे वे पूर्णमदः पूर्णमिंद हैं वैसे ही साधक के जीवन में निश्चिन्त रूप से पूर्णता का भाव आता ही है।
पंजीकरण शुल्क न्यौछावर 5100/-
इस हेतु कैलाश सिद्धाश्रम में सम्पर्क करें।
26 दिसम्बर 2015 शनिवार को प्रातः काल तक रामेश्वरम् पहुंचना अनिवार्य है।
26 दिसम्बर 2015 को अपने जीवन को दीर्घायु, आरोग्यमय, धन-वैभव, सम्पन्नता, यश-लक्ष्मी व समृद्धिशाली जीवन से आपूरित करने हेतु प्रत्येक साधक द्वारा रूद्राष्टाध्यायी नवग्रह, शिव शक्ति महामृत्युजंय मंत्रों और त्रिपुरा श्री विद्या मंत्रों से आपूरित स्वः रूद्राभिषेक व हवन सम्पन्न होगा।
27 दिसम्बर 2015 को राज-राजेश्वरी पाटोत्सव दिवस पर समुद्र स्नान व सभी दिव्यतम जलाशयों से स्वः अभिषेक की क्रिया के साथ रामेश्वरम् शिव घाट पर भजन, कीर्तन, नृत्य, आरती व सेतु बन्ध की भांति नूतन जीवन निर्माण की दीक्षायें पूर्ण रूपेण साधक के रोम-रोम में दिव्यतम ज्योतिर्लिंग मंदिर प्रांगण में स्थापित की जायेगी।
रामेश्वरम् में प्रत्येक साधक परिवार के लिये व्यवस्थित व्यक्तिगत कमरों की व्यवस्था की गई है। साथ ही सात्विक प्रसाद और भोजन की व्यवस्था पूज्य गुरुदेव द्वारा प्रदान की जायेगी।
पूर्व में ही रेल आरक्षण की ऐसी व्यवस्था कर के आयें कि 28 दिसम्बर को सीधे अपने घर को प्रस्थान कर सकें जिससे कि गुरुदेव के सानिध्य में पवित्र दिव्य अलौकिक पूर्ण चैतन्य स्थानों पर जो उक्त विशेष क्रियायें सम्पन्न की है उसका पूरा लाभ जीवन भर अक्षुण्ण बना रहे।
गुरूदेव की विशेष अनुकम्पा से प्रत्येक Registered साधकों के लिये व्यक्तिगत रूप से स्वच्छ बाथरूम युक्त कमरों की व्यवस्था की गयी है, अतः आवश्यक है कि पति-पत्नी युगल रूप में आकर भगवान सदाशिव महादेव और माता गौरी का अखण्ड सौभाग्य का आशीर्वाद गुरूदेव के सानिध्य में प्राप्त करेंगे।
पंजीकरण शुल्कः 5100/-
प्रत्येक प्रक्रिया में दीक्षा न्यौछावर सम्मिलित नहीं है।
समय से पंजीकरण करायें जिससे कि आप ही से सम्बन्धित साधना सामग्री मंत्र सिद्ध चैतन्य की जा सकें।
जिससे कि आने वाला नव वर्ष को आप पूर्ण कर्मठता और चैतन्यता से पूर्णरूपेण अपने अनुकूल बना सके।
सम्पर्कः- जोधपुर कार्यालयः- 0291-2517025, 2517028, 07568939648, 08769442398
सभी बड़े शहर से मदुरई और रामेश्वरम् के लिए रेल की सुविधा है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,