प्रातः स्मरामि ललितावदनारविन्दं
विम्बाधरं पृथुलमौक्तिकशोभिनासम।
आकर्णदीर्घनयनं मणिकुण्डलाढ्यं।।1।।
मन्दस्मितं मृगदोज्ज्वल भालदेशम
प्रातःभजामि ललिता भुजकल्पवली
रक्ताड्गलीय सदाड्गुलि पल्लवइढयाम।।2।।
माणिक्य हेमवलयाड्गदशोभमानां
पुण्डे क्षुचाप कुसुमेषुसृणीदधानाम
प्रातःनमामि ललिता चरणाविन्दं।।3।।
भक्तेष्ट दाननिरतं भवसिन्धुपोतम।
पद्मासना दिसुरनायक पूजनीयं
पद्माडकूश ध्वज सुदर्शन लाञ्छनाढयम्।।4।।
प्रातः स्तुवे परशिवां ललितां भवानीं
त्रय्यत वेद्यविभवां करूणानवद्याम्
विश्वस्य सृष्टि विलय स्थितिहेतुभूतां।।5।।
विद्येश्वरीं निगमवाड् मनसातिदूराम्
प्रातर्वदामि ललिते तव पुण्यनाम
कामेश्वरीति कमलेति महेश्वरीति।।6।।
श्रीशाम्भवीति जगतां जननी परेति
वाग्देवतेति वचसा त्रिपुरेश्वरीति।।7।
शिवप्रिया शिवपरा शिष्टेष्टा शिष्टपूजिता।
अप्रमेया स्वप्रकाश मनोवाचा मगोचरा।।8।।
चिच्छक्तिश्चेतनारूपा जड शक्तिर्जडात्म्किा।
गायत्री व्याह्रतिः सन्ध्या द्विजवृन्द निषेविता।।9।।
तत्त्वासना तत्त्वमयी पञ्चकोशान्तरस्थिता।
निः सीमामहिमा नित्ययौवना मदशालिनी।।10।।
मदधूर्णितरक्ताक्षी परपाटलगण्डभूः।
चन्दन द्रवदिग्धाड्गी चाम्पेयकुसुपप्रिया ।।11।।
कुशला कोमलाकारा कुरूकुल्ला कुलेश्वरी।
कुलकुण्डालया कौलमार्ग तत्परसेविता।।12।।
कुमारगणना थाम्बा तुष्टिः पुष्टिर्मतिर्घृतिः।
शान्तिः स्वास्तिमती कान्तिर्नन्दिनी विघ्ननाशिनी।।13।।
तेजोवती त्रिनयना लोलाक्षी कामरूपिणी।
मालिनी हंसिनी माता मलयाचलवासिनी।।14।।
सुमुखी नलिनी सुभ्रूः शोभना सुरनायिका।
कालकण्ठी कान्तिमती क्षोभिणी सूक्ष्मरूपिणी।।15।।
वज्रेश्वरी वामदेवी वयोऽवस्थाविवर्जिता।
सिद्धेश्वरी सिद्धविद्या सिद्धमाता यशस्विनी।।16।।
विशुद्धि चक्रनिलयाऽऽ रक्तवर्णा त्रिलोचना।
खट्वाड्गा दिप्रहरणा वदनैक समन्विता।।17।।
पायसान्नप्रिया त्वक्स्था पशुलोकभयंकरी।
अमृततादि महाशक्तिसंवृता डाकिनीश्वरी।।18।।
अनाहताब्जनिलया श्यामाभा वदनद्वया।
दंष्ट्रोज्ज्ला क्षमालादिधरा रुधिर संस्थिता।।19।।
आयुष्करं पुष्टिकरं पुत्रदं वश्यकारकम्।
विद्याप्रदं कीर्त्तिकरं सुकर्मत्वप्रदायकम्।।20।।
सर्वसम्पत्प्रदं सर्वसिद्धिदं सर्वसौख्यदम्।
सर्वाभीष्टप्रदं चैव देवीनामसुमनोहरम्।।21।।
मैं प्रातः काल भगवती ललिताम्बा के कमल सदृश मुख मण्डल का स्मरण करता हूं, जिनके बिम्ब फल के समान लाल-लाल अधर, बड़े-बड़े मोती के नथूनी से शोभित नासिका, कर्ण पर्यन्त फैले हुए विशाल नेत्र तथा जो मणि जटित कुण्डल युक्तकान मन्द मुस्कान से युक्त हैं।।1।।
जिनका मस्तक कस्तूरी के तिलक से सुशोभित है मैं प्रातः काल ललिताम्बा के भुजारूपी कल्पलता का स्मरण करता हूं, जो लाल-लाल अंगूठी से सुन्दरतम तथा कोमल अंगुली रूपी कोपलों से युक्त हैं तथा जो भुजाएं रत्न मण्डित सोने के कंकण तथा बाहुबन्ध से शोभित हैं।।2।।
जिन भुजाओं में धनुष, पुष्पमय बाण, अंकुश तथा अभयदान सुशोभित हैं, मैं प्रातःकाल भगवती ललिताम्बा के चरण कमलों का स्मरण करता हूं, जो अपने भक्तों के अभीष्ट मनोकामनाओं को पूर्ण करती है।।3।।
संसार सागर से पार उतरने के लिए नौका के सृदश हैं, कमल के आसन पर विराजमान, ब्रह्मा आदि देवताओं द्वारा पूजित हैं, जो चरण, पदम, अंकुश, ध्वज एवं सुदर्शन चक्र के चिन्हों से युक्त हैं।।4।।
मैं प्रातःकाल परम कल्याणमयी भगवती ललिताम्बा का स्मरण करता हूं, जिनका वैभव वेदान्त प्रतिपादित है, जो करूणामयी और परम शुद्ध स्वरूपा हैं।।5।।
जो संसार के उत्पति नाश एवं स्थिति के लिए कारण स्वरूपा हैं, जो समस्त विद्याओं की अधिष्ठात्री देवी हैं, जो वेद, वाणी तथा मन की गति से अगम्य हैं।।6।।
हे भगवति ललिताम्बा! मैं प्रातःकाल आप के पावनतम नाम का उच्चारण करता हूं, कामेश्वरी, कमला, माहेश्वरी, शाम्भवी, जग् जननी, परा, वाग्देवी तथा त्रिपुरेश्वरी आदि आप के ही नाम हैं।।7।।
हे भगवती ललिताम्बा आप शिव की प्यारी, शिव में लीन रहने वाली, ज्ञानियों द्वारा पूजा की गई तथा ज्ञानियों की परमाराध्य हैं। आप अपराजेया, मन वाणी से अगमया एवं प्रकाशमयी हैं।।8।।
आप ही चित्त शक्ति हैं, चेतन रूप में रहने वाली हैं, तथा जड़ शक्ति के लिए जड़ रूप धारण करने वाली हैं, गायत्री, व्याह्रतियां तथा संध्या हैं। आप द्विजों द्वारा निरन्तर उपासनीय हैं।। 9।
तत्व के आसन वाली, तत्व स्वरूपा, पांच कोशों के अन्दर रहने वाली, सदा यौवन युक्त, मद से पूर्ण रहने वाली आपकी महिमा अन्नत हैं।।10।।
अपनी मस्ती के कारण रक्त नयनों से युक्त, रक्त वर्ण के चरणों और कपोलों से युक्त, चंदन के समान सुकोमल तथा शीतल अंगों वाली और चंपा के पुष्प के समान अनुराग देने वाली हैं।।11।।
हे भगवती आप सर्व शक्ति सम्पन्न सुकोमल अंगों वाली, शक्ति देने वाली शक्ति की स्वामिनी हैं। उत्पत्ति स्थान में रहने वाली और शक्ति मार्ग के उपासकों की मनोकामना को पूर्ण करने वाली हैं।।12।।
आप कार्तिक और गणेश की जननी हैं। तुष्टि, पुष्टि मति और धृति रूपा है, शांति स्वरूपा कल्याण देने वाली, कांतिमयी आनन्द देने वाली तथा सभी विघ्नों को नष्ट करने वाली हैं।।13।।
सर्व तेजोमयी, तीन नेत्रों वाली, चंचल नेत्र युक्त, अपनी इच्छा अनुसार अपना रूप धारण करने वाली, दिव्य माला धारण करने वाली, हंस स्वरूपा, सर्वजननी तथा मलय पर्वत पर निवास करने वाली हैं।।14।।
आपका मुख मण्डल अत्यन्त सुन्दर है तथा कमल के समान सुकोमल है। सुन्दर तथा शोभा युक्त विष को कण्ठ में धारण करने वाली कांतिमयी तथा सूक्ष्म रूप से सर्वत्र विचरण करने वाली हैं।।15।।
हे जगदम्बे! आप वज्र के समान कठोर भी हैं, अवस्था भेद से रहित हैं, यश देने वाली हैं, सिद्धों की माता हैं, सिद्ध विद्या तथा सिद्धों की स्वामिनी हैं।।16।।
आप त्रिनेत्र हैं, लाल वर्ण की सम्पूर्ण शरीर वाली विशुद्ध चक्र में निवास करने वाली, एक मुख वाली तथा परशु खड्ग आदि शस्त्रों से दूसरों पर प्रहार करने वाली हैं।।17।।
हे जगदम्बे आप खीर से प्रसन्न होने वाली हैं, अज्ञानियों के लिए भयंकर रूप धरने वाली, अमृत स्वरूपा महान शक्ति से युक्त तथा डाकिनी की स्वामिनी हैं।।18।।
अनाहत चक्र में निवास करने वाली श्याम वर्ण की दो मुखों वाली, चमकते हुए दातों वाली, रूद्राक्ष आदि मालाओं को धारण करके रक्त के मध्य निवास करने वाली हैं।।19।।
यह स्तोत्र आयु प्रदान करने वाला, पुष्टि देने वाला, पुत्र, पौत्र प्रदान करने वाला, शत्रुओं को वश में करने वाला, विद्या और बुद्धि देने वाला, यश देने वाला एवं शुभ कर्मों की ओर प्रेरित करने वाला है।।20।।
हे भगवती! आपका यह स्तोत्र सब सम्पति को देने वाला, सभी सिद्धियों को देने वाला, सम्पूर्ण सुख प्रदान करने वाला, समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला, भगवती जगदम्बा का यह स्तोत्र नित्य पाठ करने से अभिष्ट फल को देने वाला है।।21।।
इसके जप या पाठ करने पर प्रसन्न हुई भगवती जगदम्बा भक्तों की मनोकामनाओं को निश्चित रूप से पूर्ण करती हैं।
स्तोत्र से लाभः- ललिताम्बा स्तोत्र का नित्य हिन्दी या संस्कृत में पाठ बालकों और विद्यार्थियों के लिए सर्वथा अनुकूल हैं। इससे उनका मस्तिष्क उर्वर और तीव्र रहता है, उनकी प्रतिभा का विकास होता है। ललिताम्बा को श्री विद्या भी कहते हैं। यह ज्ञान की देवी हैं तथा इसे राजराजेश्वरी भी कहते हैं। यह धन और विद्या दोनों ही देती हैं जिससे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है। ललिताम्बा देवी की उपासना से व्यक्ति के अन्दर समस्त ऊर्जायें स्फ़ुरित हो जाती हैं तथा मूलाधार से सहस्त्रार तक समस्त चक्र उदभूत हो जाते हैं। आत्मज्ञान की कामना करने वाले व्यक्ति को भगवती शक्ति ललिताम्बा की उपासना अवश्य ही करनी चाहिए क्योंकि यह तो विद्या और राज की देवी हैं। इसीलिए इसे राजराजेश्वरी देवी भी कहते हैं।
स्तोत्र सिद्धि विधि – किसी भी सोमवार से इस स्तोत्र साधना को प्रारम्भ करें। अपने सामने गुरु चित्र और भगवती ललिताम्बा का चित्र रख लें, संक्षिप्त पूजन के बाद ललिताम्बा के चित्र पर चन्दन का तिलक, अक्षत और सफ़ेद पुष्प अर्पित करें, अगरबत्ती जला दें। अपने मस्तक पर चन्दन का तिलक अवश्य करें। फि़र ‘ललिताम्बा स्तोत्र’ का 21 दिन तक नित्य हिन्दी या संस्कृत में एक पाठ करें। इसके पाठ से साधक की समस्त मनोकामना शीघ्र ही पूरी हो जाती है और उसे हर कार्य में सफ़लता मिलती रहती है।
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