मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः। स्थिरासनो महाकायः सर्वकर्मविरोधाकः।।1।।
ग्रह राज मंगल जिनका नाम है भूमिपुत्र, ऋणहर्ता, धन प्रदान करने वाला, एक आसन पर स्थिर रहने वाला, भीमकाय तथा सभी कार्यों में अवरोध पैदा करने वाला है।
लोहिता लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः। धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः।।2।।
रक्त वर्ण युक्त, लाल नेत्रों वाला, गन्धर्व विद्या में रूचि रखने वाला, भूमि पुत्र, कुबड युक्त भौम नाम वाला, भूतिदाता तथा भूमि नन्दन कहा जाता है।
अंगारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः। वृष्टि कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफ़लप्रदः।।3।।
अंगारक, यम, सर्व रोग अपहारक, दृष्टि कर्ता, अपहर्ता, सर्व मनोकामना को देने वाले।
एतानि कुजनामानि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्। ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्।।4।।
ग्रह राज मंगल के इन नामों का जो व्यक्ति नित्य श्रद्धा पूर्वक पाठ करता है उसे ऋृणबाधा नहीं होती तथा वह धनधान्य से युक्त होता है।
धारणीगर्भसंभूतं विद्युत्कांन्तिसमप्रभम। कुमारं शक्तिहस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम्।।5।।
भूमि पुत्र मंगल विद्युत के समान कांति युक्त नूतन आयु से युक्त शक्ति हाथ में लिए मंगल देव को मैं प्रणाम करता हूं।
स्तोत्रमंगारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः न तेशां भौमजा पीड़ा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्।।6।।
ग्रह राज मंगल के इस स्तोत्र का नित्य पाठ करना चाहिए इसके पाठ से मंगल जनित पीड़ा कभी भी नहीं होती है।
अंगारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल त्वां नमामि ममाशेशमृणमाशु विनाशय।।7।।
हे अंगारक, हे महाभाग, आप भक्त वत्सल है, आप मेरे समस्त ऋण बाधा को दूर करें आपको मैं बारम्बार नमस्कार करता हूं।
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये हृापमृत्यवः भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा।।8।।
जो भी ऋण, रोग तथा दरिद्रता, अकाल मृत्यु भय, कलेश मानसिक सन्ताप है मेरे सभी रोगों को दूर कर दें।
अतिवक्र दुराराधय भोगमुक्तजितात्मनः। तुष्टो ददासि साम्राज्यं रूष्टो हरसि तत्क्षणात्।।9।।
वक्र गति वाले कठिनाई से प्रसन्न होने वाले, भोगों में आसक्त न होने वाले, मन को वश में किये हुए ग्रहराज मंगल प्रसन्न होने पर साम्राज्य प्रदान करते है और अप्रसन्न होने पर तुरन्त ही सब कुछ हरण कर लेते है।
विरंचिशक्र विष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा। तेन त्वं सर्वसत्वेन ग्रहराजो महाबलः।।10।।
ब्रह्मा, इन्द्र, विष्णु, मनुष्य इन सभी का कहना सभी शक्ति से सम्पन्न ग्रह राज मंगल बहुत ही बलशाली है।
पुत्रन्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रुणां च भयात्तत।।11।।
हे ग्रह राज मंगल मैं आपकी शरण में हूं, मुझे पुत्र तथा धन आदि प्रदान करें ऋण दरिद्रता तथा शत्रुओं के भय से मेरी रक्षा करें।
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतं महतीं श्रियमाप्नोति हृापरो धनदो युवा।।12।।
इन बारह श्लोकों से युक्त मंगल के श्लोकों का सदैव जो पाठ करता है वह अनन्त ऐश्वर्य को प्राप्त करता है तथा अद्वितीय धन प्रदान करने वाला और निरन्तर युवा ग्रह राज की कृपा को प्राप्त करता है।
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