रुद्राक्ष की उत्पत्ति
शास्त्रों के अनुसार पूर्वकाल में दैत्यों का राजा त्रिपुर बड़ा दुर्जेय एवं पराक्रमी हो गया था और उसने सभी देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था, तब देवताओं ने त्रिपुर का वधा करने हेतू भगवान शिव से प्रार्थना की, तो भगवान शिव ने महाघोर रूपी अघोर अस्त्र का चिन्तन किया और एक हजार वर्ष तक नेत्र बन्द करने पर, जो जल बिन्दु पृथ्वी पर गिरे, उनसे रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए। इसके पेड़ मुख्यतः नेपाल, इण्डोनेशिया, भारत के उत्तराखण्ड के कुछ क्षेत्र तथा दक्षिण भारत के कुछ भागों में होते है।
रुद्राक्ष के लाभकारी प्रभाव रुद्राक्ष के कई लाभकारी गुण पाए जाते है, इसका विवेचन इस प्रकार है-
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से
आयुर्वेदिक चिकित्सा के दृष्टिकोण से
रक्तचाप के रोगियों के लिए यह प्राणदायक माना गया है। यदि रुद्राक्ष की माला धारण की जाए, तो उच्च रक्तचाप के रोगियों का रक्तचाप सामान्य हो जाता है। यदि रक्तचाप अधिक बढ़ा हुआ हो, तो रुद्राक्ष के 2 दानें शाम को जल में भिगो लें और प्रातः उस जल को खाली पेट पी लें। ऐसा एक सप्ताह करने से रक्तचाप कम हो जाता है और नियमित सेवन करने से रक्तचाप सामान्य हो जाता है। हृदय रोगी यदि इसकी माला धारण करें, तो उनका हृदय रोग ठीक हो जाता है। इसके धारण करने से मानसिक तनाव भी समाप्त होता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से रुद्राक्ष भगवान शंकर का प्रिय आभूषण है, जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करता है वह स्वयं रुद्रतुत्य हो जाता है। यह दीर्घायु प्रदान कर अकाल मृत्यु का निवारण करता है। इसके दर्शन करने से ही पापों का क्षय प्रारम्भ हो जाता है, जो व्यक्ति, भोग और मोक्ष समान रुप से पाना चाहता हैं, उनके लिए रुद्राक्ष अत्यन्त अनुकूल कहा गया है। रुद्राक्ष की माला धारण करने से व्यक्ति भय रहित होता है और उसे मंत्र जप में भी सिद्धि मिलती है। ‘शिव पुराण’ में कहा गया है, कि कोई व्यक्ति धर्महीन तथा कुकर्मी हो, परन्तु रुद्राक्ष से प्रेम करता हो या धारण करता हो, तब भी उसके समस्त पाप कट जाते है। रुद्राक्ष किसी भी वर्ण या जाति का व्यक्ति धारण कर सकता है।
रुद्राक्ष पर पड़ी सीधी व खड़ी धारियों को रुद्राक्ष का मुख कहा जाता है। रुद्राक्ष पर जितनी खड़ी धारियां होती है, उसे उतने ही मुखी कहा जाता है। इन मुखों के अनुसार ही रुद्राक्ष का महत्व होता है। एक से लेकर इक्कीस मुखी रुदाक्ष का अलग-अलग महत्व होता है। विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार इनके मुखों का महत्व अत्यन्त सौभाग्यदायक एवं जघन्य पाप दोष को समाप्त करने वाला होता है। एक से इक्कीस मुख तक के रुद्राक्षों को अलग-अलग मंत्रों से अभिमंत्रित करना चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने के निम्न मंत्र है-
एकमुखी रुद्राक्ष – ऊँ ऐं ह्रं आं ऐं ऊँ
द्विमुखी रुद्राक्ष – ऊँ श्रीं ह्रीं क्षीं व्रीं ऊँ
त्रिमुखी रुद्राक्ष – ऊँ रं इं ह्रीं हूं ऊँ
चतुर्मुखी रुद्राक्ष – ऊँ वां क्रां तां ह्रां ड्रं
पंचमुखी रुद्राक्ष – ऊँ हां आं क्षम्यौ स्वाहा
षण्मुखी रुद्राक्ष – ऊँ वृं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं
सप्तमुखी रुद्राक्ष – ऊँ ह्रीं क्रीं ग्लौं स्रौं
अष्टमुखी रुद्राक्ष – ऊँ ह्रां ग्रीं लं आं श्रीं
नवमुखी रुद्राक्ष – ऊँ ह्रीं वं यं रं लं
दशमुखी रुद्राक्ष – ऊँ ह्रीं क्लीं व्रीं
एकादशमुखी रुद्राक्ष – ऊँ रं क्षूं मूं यूं ऊँ
द्वादशमुखी रुद्राक्ष – ऊँ ह्रीं क्षौं घृणीः श्रीं
त्रयोदशमुखी रुद्राक्ष – ऊँ ड्रं यां आपः ऊँ
चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष – ऊँ औं हस्फ्रैं स्वबफ्रैं हस्रौं हस ब्फ्रौं
पंचदशमुखी रुद्राक्ष – ऊँ हैं सं ह्रीं ऐं ऊँ
षोडशमुखी रुद्राक्ष – ऊँ वां क्रां तां ह्रां ऐं श्रीं
सप्तदशमुखी रुद्राक्ष – ऊँ ह्रां क्रां क्षौं स्वाहा
अष्टादशमुखी रुद्राक्ष – ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं सौं ऐं ह्रीं
एकोनविंशति रुद्राक्ष – ऊँ हं सं ऐं ह्रीं श्रीं
विशंति रुद्राक्ष – ऊँ ज्ञां ज्ञीं लं ऐं ह्रीं श्रीं
एकविंशति रुद्राक्ष – ऊँ एं ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं ऐं
1- सभी वर्ण के लोग रुद्राक्ष धारण कर सकते है।
2- रुद्राक्ष धारण करते समय ‘ऊँ नमः शिवाय’ का जप करना चाहिए तथा ललाट पर भस्म लगानी चाहिए।
3- अपवित्रता के साथ रुद्राक्ष को धारण नहीं करना चाहिए अपितु भक्ति-भाव से गुरु एवं भगवान शिव का ध्यान करते हुए धारण करें।
4- इसकी माला लाल धागे अथवा सोने या चांदी के तार में पिरोकर धारण करनी चाहिए।
5- कोई भी पुरुष गले में अथवा हाथ पर रुद्राक्ष को धारण कर सकता है।
6- शिव भक्तों को अपने हाथ में रुद्राक्ष का कड़ा धारण करना चाहिए, जिसमें रुद्राक्षों की संख्या यदि विषम हो, तो अधिक उपयुक्त रहता है।
7- जो नित्य रुद्राक्ष पूजन या रुद्राक्ष धारण करता है, वह राजा के समान धनवान होता है।
8- शिव को प्रसन्न करने के लिए तथा शिव साधना में सफ़लता प्राप्त करने के लिए रुद्राक्ष धारण करना श्रेष्ठ माना गया है।
9- प्रत्येक रुद्राक्ष को सदैव सोमवार के दिन प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर शिव मन्दिर में बैठकर गंगाजल या कच्चे दूध में धोकर वर्णित मंत्रों के उच्चारण के साथ धारण करना चाहिए।
शिव पुराण में कहा गया है-
रुद्राक्ष मालिनं दृष्टवा शिवो विष्णु: प्रसीदति।
छेवी गणपतिः सूर्यः सुराश्चान्येऽपि पार्वति।।
रुद्राक्ष की माला धारण किए व्यक्ति को देखकर शिव, विष्णु, देवी, गणेश, सूर्य तथा अन्य समस्त देवगण प्रसन्न होते है।
सब मालाओं में सर्वश्रेष्ठ माला रुद्राक्ष माला मानी गई है। रुद्राक्ष की माला पर अंगुलियां फ़ेरने से मन एकाग्र रहता है। माला में रुद्राक्ष के दानों की संख्या का भी महत्व होता है। अलग-अलग कार्यों के लिए एक निश्चित संख्या निर्धारित है –
1- सर्वकार्य सिद्धि के लिए 108 दानों की माला सर्वोत्तम है।
2- स्वास्थ्य लाभ के लिए 104 दानों की माला उपयुक्त रहती है।
3- मोक्ष प्राप्ति के लिए 100 दानों की माला प्रयुक्त होती है।
4- यदि माला में 57 दानें हो तो वह सिद्धिदायक मानी गयी है।
5- तंत्र में सफ़लता के लिए 27 दानों वाली रुद्राक्ष माला का प्रयोग किया जाता है।
6- लक्ष्मी प्राप्ति हेतू 32 दानों की माला श्रेष्ठ है।
महत्वपूर्ण पंचमुखी रुद्राक्ष यह रुद्राक्ष शिव का मिश्रित स्वरूप माना जाता है और अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है, जो व्यिक्त एक मुखी रुद्राक्ष न धारण कर सके, उनको यह रुद्राक्ष धारण करना चाहिए या घर में पूजा स्थान में रखना चाहिए।
इसे शिवलिंग से स्पर्श कराकर धारण करना चाहिए। इसे धारण करते समय ‘‘ऊँ नमः शिवाय’’ मंत्र का जप करना चाहिए।
पंचमुखी रुद्राक्ष को किसी भी सोमवार की प्रातः किसी पात्र में स्थापित कर उसे जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद से स्नान कराकर पुनः जल से धोकर स्वच्छ कपड़े से पोछ लें और फि़र केशर का तिलक कर एक पुष्प भेंट करें और इसके पश्चात् निम्न मंत्र का जप करें –
इस मंत्र का जप 35 मिनट तक पंचमुखी रुद्राक्ष के सामने 11 सोमवार तक करें। आखिरी सोमवार को जब प्रयोग समाप्त हो जाए, तब उस पंचमुखी रुद्राक्ष को किसी धागे में पिरोकर गले में धारण कर लें।
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