शुभाशीर्वाद !
दुनिया में ऐसी कोई वस्तु नहीं जो प्रयत्न और प्रयास से प्राप्त न की जा सके। प्रयत्न और प्रयास से ही वैज्ञानिकों ने भौतिक जीवन की अनेक सुख-सुविधाएं प्रदान की हैं। प्रयत्न और प्रयास से ही सामान्य व्यक्ति सन्त पुरूष अथवा देवतुल्य बन सकता हैं। प्रयत्न और प्रयास से ही पुरूष से पुरूषोतम बनने की क्रिया प्रारम्भ हो पाती हैं। इसीलिए प्रत्येक कार्य करने के लिए सम्यक्-प्रयास अनिवार्य है। प्रयत्न प्रयास से ही साधक को साधना में सिद्धि प्राप्ति होती है अर्थात् प्रयास करते हुए साधक ध्यान के माध्यम से अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है।
इसके लिए गुरु कृपा अत्यावश्यक हैं, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं की शिष्य निठल्ला होकर बैठा रहे, उसे जीवन में परिश्रमी तथा आध्यात्मिक अभ्यासी बनना होगा। पुरुषार्थ तो शिष्य को स्वयं करना होगा। आजकल लोग तथाकथित अनेक-अनेक गुरुओं से आशीर्वाद लेकर तत्काल पूर्णत्व की प्राप्ति चाहते है। वे न तो मानसिक शुद्धि के लिए न ही साधना करने को तैयार होना चाहते है। वे तो चाहते है कि जादू की तरह समाधि लग जाये। यदि आपका ऐसा ही भ्रम हो तो उसे मन से अति शीघ्र निकाल दें।
एक चिकित्सक से तो उपचारार्थ नुस्खा मिलता हैं। दो डॉक्टरों से परामर्श लिया जाता हैं, परन्तु तीन डॉक्टरों से तो हम अपनी मृत्यु स्वयं निमंत्रित करते है, अतः अनेक-अनेक गुरुओं के चक्कर में पड़कर हम किसी तरह की उन्नति प्रगति या जीवन में चेतना का भाव नहीं आ पाएगा, न ही सही दिशा जान पायेंगे, और हम भ्रमित हो कर ही रह जायेंगे। और भ्रम भ्रम में ही पूरा जीवन समाप्त हो जायेगा। जीवन में कोई मर्म, चिंतन और उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पायेंगे। हमें ध्यान रखना चाहिए कि संकल्प में तो वह शक्ति होती है जो पत्थर में भी परमात्मा प्रकट कर लेता है, फिर आत्मा में सद्गुरु प्रकट करना कौन-सी बड़ी बात है। संकल्प शक्ति से ही एकलव्य ने मिट्टी की मूर्ति से धनुष विद्या में पारंगता प्राप्त कर सर्वश्रेष्ठ धर्नुधर बन पाया। संकल्प शक्ति से ही राम ने बलशाली रावण को परास्त कर दिया था। संकल्प शक्ति से ही सभी कार्य पूर्ण सफल होते हैं। इसलिए किसी भी कार्य को करने के पूर्व संकल्प होना अनिवार्य है। लेकिन इतना ध्यान रखना कि जो संकल्प करो उसे पूरा अवश्य करना।
जीवन में संकल्प शक्ति के स्वरूप ही आपने सद्गुरुदेव का जन्मोत्सव स्थानीय क्षेत्र में हृदय भाव से आयोजित किया निश्चय ही आपने सद्गुरु कार्य हेतु अवश्य ही संकल्प लिया होगा। उस संकल्प के बारे में प्रत्येक गुरुवार को विचार करे की कितना मैं उस संकल्प में आगे ओर कदम बढ़ाया कहीं मैं संकल्प धारण करने के बाद भी उस क्रिया में कदम पीछे तो नहीं रह गए अथवा पाँव ठिठक तो नहीं गए हैं। यह विचार करने पर स्वयं ही आपको एहसास हो पाएगा आप अपने परमेश्वर रूपी गुरु से कितना प्यार करते हैं और जो पूजा अर्चना करते हैं उसमें कितना समर्पण और आत्मीय भाव हैं इस पर निरन्तर-निरन्तर विचार करने से ही आप स्वयं अपने आप को अपने इष्ट के कितना नजदीक पाते हैं। यह आपकी स्वयं की मन स्थिति आपको बता देगीं। क्योंकि मन और आत्मा ही हर साधक और भक्त का दर्पण होता हैं और मन में जैसे अंतशः भाव होते हैं वैसी ही प्रतिक्रिया जीवन में बनती हैं। इसीलिए इस जन्मोत्सव पर जो-जो संकल्प लिए हैं उन्हें स्वयं की क्रियाओं से ही पूर्ण कर सकेंगे तब ही सही रूप में आप अपने इष्ट की सामीप्यता और पूर्ण वरद हस्त प्राप्त कर सकेंगे।
सिद्धाश्रम शक्ति साधना महोत्सव ज्ञान संस्कृति और अध्यात्म से सिंचित मिथिलांचल भूमि पर तथा नेपाल की तराई क्षेत्र में जहाँ शिव-शक्ति स्वरूप में भगवान उगना महादेव और माता भगवती छिन्नमस्ता चैतन्य रूप में विराजमान हैं। ऐसी सिद्ध तपो भूमि पर छिन्नमस्ता शक्ति साधना में आकर साधक जीवन में संन्यस्त भाव को आत्मसात कर पाता हैं जिससे की जीवन कि मलिनता, जीर्ण-शीर्ण स्थितियां और दरिद्रता से परे होकर पुरूष से पौरूषमय बनने की ओर अग्रसर हो पाता हैं। सही अर्थों में संन्यस्त भाव की जाग्रति के बाद ही साधक सिद्धाश्रम को पूर्णता से साक्षीभूत रूप में आत्मसात कर पाता हैं। इस छिन्नमस्ता नारायण सिद्धाश्रम शक्ति साधना शिविर का आयोजन 21-22 मई 2013 लौकहा जिला मधुबनी (बिहार) में सम्पन्न होगा।
अपने जीवन की मलिनता और जीवन की विविध चिंताओं और जीवन की प्रगति में आने वाले अवरोधों को समाप्त करने के लिए किसी विशिष्ट शक्ति की आराधना वंदना संकल्प शक्ति के साथ परिक्रमा और पूजा अर्चना सम्पन्न की जाती हैं। वही वास्तव में तीर्थ यात्रा कहलाती हैं।
सद्गुरु मंजुल महोत्सव पर पंजीकृत साधकों को ही महाकाली, महासरस्वती महालक्ष्मी से युक्त त्रि-शक्ति दीक्षा माता वैष्णों देवी जम्मू के मंदिर प्रागण में और भैरवनाथ मंदिर में शत्रुसंहारक काल पर विजय श्री प्राप्ति हेतु काल भैरव शक्ति दीक्षा प्रदान की जाएगी साथ ही विश्वामित्र प्रणीत स्वर्ण खप्पर युक्त महालक्ष्मी माला जो साधक के स्वयं के नाम से मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त कर गुरुदेव द्वारा धारण कराई जाएगी।
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