चैत्र नवरात्रि ऋतुओं का संगम है, और शक्ति उपासकों के लिये यह महापर्व है। नवरात्रि को महोरात्रि अर्थात् महोत्सव स्वरूप में सम्पन्न करने की प्रथा वेदोत्तफ़ काल से चली आ रही है। देवी भगवद् के अनुसार महाशक्ति ही शारीरिक विकार मोह, अंधकार, आलस्य, राग, द्वेष तथा वासना के प्रतीक मधु-कैटभ, महिषासुर, शुंभ-निशुंभ, धूम्र विलोचन, चण्ड-मुण्ड, रक्तबीज का नाश धर्मरूपी सिंह पर आरूढ़ होकर प्रभुत्व स्थापित करने वाले विभिन अस्त्र शस्त्रों से लक्ष लक्ष दुष्प्रवृत्ति रूपी असुरों का विनाश कर देती है। भगवाती जगदम्बा ही तृतीय नेत्र से ज्ञान की वर्षा करती है। भगवती जगदम्बा रूप का विस्तृत विवेचन मार्कण्डेय पुराण में आया है और इसमें भगवती दुर्गा स्वयं कहती है कि जब-जब संसार में दानवी बाधा उपस्थित होगी तब-तब अवतार लेकर मैं शत्रुओं का संहार करूंगी।
मनुष्य जीवन में अज्ञान रूपी अन्धकार फैला हुआ ही है। इसमें शारीरिक विकार मोह, अन्धकार, आलस्य, राग-द्वेष, अंहकार, वासना भरी पड़ी है इनका नाश कर जीवन में चेतना प्राप्त करने हेतु नवरात्रि सर्वोत्तम पर्व है। इस वर्ष विक्रम संवत् 2071 में नवरात्रि 31 मार्च चन्द्रोदय दिवस से प्रारम्भ हो रही है और इसकी पूर्णता 8 अप्रैल राम जन्मोत्सव, दुर्गा नवमी को हो रहा है। इन नौ दिनों में आप साधक है या शिष्य है तो शक्ति आराधना पूर्ण विधि विधान सहित नित्य सम्पन्न करें।
त्रैलोक्य पाविनी मां भगवती जगदम्बा का मातृ स्वरूप भी अपने अन्दर शक्ति की कैसी चैतन्यता समाहित किए है, इसे इस सामान्य बुद्धि और इन सामान्य चर्म चक्षुओं से जाना भी कैसे जा सकता हैं? मां भगवती जगदम्बा के भीतर कैसा वरदायक रूप और प्रभाव छुपा है और कैसा ममतामय अनुग्रह, इसका सहज अनुमान लगाना कठिन है। पग-पग पर जीवन में सहायक बनती भगवती जगदम्बा को पहिचानने के लिए ही पूरे वर्ष में नवरात्रि के पर्व रचे गए, साधनाओं को सम्पन्न कर उनकी कृपा का प्रत्यक्ष फल प्राप्त करने का मुहूर्त चैत्र नवरात्रि एवं आश्विन नवरात्रि, इन दो प्रगट नवरात्रियों के अतिरिक्त दो गुप्त नवरात्रियां माघ शुक्ल पक्ष और आषाढ़ शुक्ल पक्ष भी होती है किन्तु सभी नवरात्रियों में चैत्र नवरात्रि की महत्ता सर्वोपरि है, यह देवी के प्रकट होने का उत्सव जो है।
इस चराचर जगत के मूल में मां भगवती जगदम्बा की ही शक्ति सर्वत्र क्रियाशील है। वे ही आनन्दरूपा हैं, वे ही पालनकर्ता हैं और वे ही अपने भक्तों का उद्धार करने में समर्थ हैं, केवल इस धरा के भक्तों का ही नहीं वरन् रुद्र, वसु, मित्र, वरुण अग्नि, अश्विनी, कुमारी, विष्णु, ब्रह्मा और प्रजापति का भी पोषण करने वाली आद्या शक्ति मां भगवती जगदम्बा ही है।
कहीं महाकाली के रौद्रा स्वरूप में अशुभ का विनाश कर सहायक होती हुई, कहीं महालक्ष्मी के विविध आभूषणों से युक्त श्रृंगारमय स्वरूप में ऐश्वर्य देती हुई और कहीं महा सरस्वती के पावन स्वरूप में जीव को आध्यात्मिक उच्चता की और ले जाती हुई, पल-पल गतिशील रहती हुई, पल-पल मुखरित और चैतन्य रूपा बन कर। जिस प्रकार यह प्रकृति प्रतिपल नूतन होती हुई सौन्दर्यमयी है, पालन करने में समर्थ है। तभी तो प्रकृति को भी स्त्री रूपा ही माना गया।
चैत्र नवरात्रि मां भगवती के विशेष उल्लास का पर्व है क्योंकि यह महाशिवरात्रि के ठीक बाद पड़ने वाला महापर्व है, शिवमयता से युक्त पर्व है। नवरात्रि का तात्पर्य ही है साधक या भक्त के जीवन में नवरसों का संचार हो सके, विविधता का सही अर्थ है। साधक का भी जीवन भगवान शिव के समान ही निर्द्वन्द्व एवं वैभवशाली बन सकें। इस वर्ष की चैत्र नवरात्रि का महत्व इस बात से और भी अधिक बढ़ गया है, कि यह पूरे नौ दिवसों की पूर्ण नवरात्रि घटित हो रही है, जिसमें तिथियों का क्षय नहीं है, अतः साधक इस चैतन्य काल का प्रत्येक क्षण को उपयोग में लातें हुए वह प्रत्येक दिवस को एक नए ढंग से साधना के साथ जोड़ते हुए न केवल अपने भौतिक जीवन को वरन् शक्ति प्राप्ति के द्वारा आध्यात्मिक जीवन को भी ऊंचाइयों तक ले जा सकता है।
यह एक मिथ्या धारणा है कि आध्यात्मिक सफलता की प्राप्ति के लिए गतिशील साधक को जीवन में शक्ति साधना की आवश्यकता नहीं पड़ती और वहीं दूसरी ओर गृहस्थ साधक शक्ति प्राप्ति को केवल साधु, संन्यासियो के जीवन की ही विषय वस्तु मानता है। इस विरोधाभास का सहीं हल यही है, कि प्रत्येक साधक अपने जीवन में शक्ति-साधना को एक महत्वपूर्ण स्थान दें तथा स्वयं अनुभव कर सके कि किस प्रकार शक्तिमयता के द्वारा ही जीवन में समस्त सुख-वैभव और भोग-विलास प्राप्त किए जा सकते हैं।
जहां भौतिक जीवन एवं आध्यात्मिक जीवन, दोनों को ही सन्तुलन में रखते हुए जीवन को सफल बनाने की बात आती है, वहां स्वयमेव त्रिपुर सुन्दरी साधना का महत्त्व निर्विवाद रूप से सर्वोच्च सिद्ध है ही-
यत्रास्ति भोगो नहि तत्र मोक्षो
यत्रास्ति मोक्षो नहि तत्र भोगः।
श्री सुन्दरी साधन तत्पराणां
भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव।।
अर्थात् भोग प्राप्ति के इच्छुक को आध्यात्मिक उपलब्धि कहां और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के इच्छुक साधक के लिए भोग कहां, किन्तु श्री सुन्दरी साधना के साधक हेतु भोग व मोक्ष दोनों ही सुलभ हैं।
सृष्टि के प्रारम्भ में अद्वैत रूप से परम ज्योति ही अस्तित्व में थी और यही ज्योति दो रूपों में परिणित होकर शिव-शक्ति बनी। जगत की रचना का आधार अव्यवह्यत जिस रूप मे बना वही श्री यंत्र है। श्री यंत्र का अर्थ लक्ष्मी प्रदायक यंत्र तक ही सीमित करना उचित नहीं। श्री यंत्र अपने आप में सम्पूर्ण विश्व व्यवस्था का प्रतीक है। साधक का स्वयं का शरीर एवं नवयौवनात्मक श्री चक्र वास्तव में एक ही है, जिसके तादात्म्य से इस लोक एवं आध्यात्मिक जगत की सफलता प्राप्त होती है।
षट्कोणों से युक्त एवं नौ आवरणों वाला श्री यंत्र ही मां भगवती जगदम्बा की उपस्थिति का प्रतीक है, उनकी अनन्त शक्तियों का एक सिमित रूप में अंकन करने का प्रयास है। तभी तो ऐसे यंत्र एवं उसके पादोदक पान को भी पुण्य कहां गया है।
‘तीर्थ स्थान सहस्त्र कोटि, फलदम् श्री चक्र पादोकम्’। नौ आवरणों से युक्त श्रीयंत्र की स्थापना और साधना ही नवरात्रि पूजन की, पराम्बा की कृपा प्राप्त करने की प्राचीन व शास्त्रीय परम्परा रही है, जिसे विंध्या साधना की संज्ञा से विभूषित किया गया।
यद्यपि श्री विधा- साधना गूढ़ और जटिल है, मूलतः ब्रह्म साक्षात्कार की विधा है, किन्तु इसके सुलभ रूपों में एक सामान्य गृहस्थ व्यक्ति भी साधना करते हुए न केवल अपनी दैनिक समस्याओं से मुक्त होकर भौतिक जीवन सुव्यवस्थित कर लेता है वरन् और आगे बढ़कर उन आध्यात्मिक लाभों को प्राप्त करने का पात्र भी बन सकता हैं। शक्ति साधना का यही तो तात्पर्य है कि जो कुछ भी सामान्य प्रयासों से न प्राप्त कर रहे हो, उन्हें पराम्बा शक्ति के स्पर्श से प्राप्त कर लें। इसी वजह से नवरात्रि साधक के जीवन में सर्वाधिक महत्व युक्त है।
श्री विद्या साधना विशिष्ट रूप से त्रिपुर सुन्दरी की ही साधना है, इन्हीं की संज्ञा षोडशी एवं ललिता भी हैं। ये ही शक्ति हैं, और ऐसा जानने वाला समस्त शोक से पार हो जाता है।
एषा आत्मशक्ति। एषा विश्वमोहिनी।
एषा श्री महाविद्या। य एवं वेद स शोकं तरति।
वास्तव में ये सभी मां भगवती जगदम्बा के ही रूप हैं किन्तु जीवन की विभिन्न स्थितियों के साथ-साथ उनका स्वरूप भी बदलता रहता है। देवी के किसी विशिष्ट रूप की साधना करने पर तदनुकूल ढंग से लाभ भी विशिष्ट ही मिलता है। जहां मां भगवती जगदम्बा की साधना मूलतः भावना -प्रधान है वहीं षोडशी त्रिपुर सुन्दरी एवं ललिताम्बा की साधना प्रबल तांत्रेक्त है। इस वर्ष देवी के इन तीव्रतम किन्तु अभीष्ट वरदायक स्वरूपों की साधना दी गई है, क्योंकि जिस प्रकार से सामाजिक और राष्ट्रीय परिवेश की परिस्थितियां बदल रही हैं उसमें व्यक्ति को एकदम से चैतन्य होना होगा। आने वाले वर्ष तीव्र उथल-पुथल के सिद्ध होंगे और उनसे सामन्जस्य स्थापित करने हेतु व्यक्ति को अभी से प्रयास प्रारम्भ करने होंगे।
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