पराम्बा शक्ति मां भगवती का सबसे प्रबलतम स्वरूप है – ‘‘मां काली’’ और जब मां काली अपना वरद्हस्त साधक पर रखती है, तो उस शक्ति के माध्यम से साधक के जीवन के पाप, संताप, दोष, छल-झूठ, क्रोध, ईष्या, को तीव्र गति से समाप्त करती है जिससे साधक अपने लक्ष्य की ओर तीव्र गति से जीवन में बढ़ता ही चला जाता है । मां काली की सिद्धि से मार्ग के कांटे बन जाते है – पुष्प और बाधाएं बन जाती हैं – साधारण रेत के कण, शत्रु हो जाते हैं – निर्जीव और उदित होता है – पराक्रम भाव। साधना करनी है महाकाली की, जो कि चामुण्डा हैं, महामाया हैं, अम्बिका, दुर्गा, कालरात्रि है।
शक्ति को आत्मसात करने के लिए स्त्री स्वरूप में दुर्गा, ज्ञान स्वरूप में सरस्वती और धन-धान्य वृद्धि में महालक्ष्मी की ही वंदना की जाती है। संसार में मनुष्यों द्वारा हर तरह की शक्ति से ओत-प्रोत होने के लिए इन्हीं शक्तियों की आराधना से पूर्णता प्राप्त होती है। आध्यात्मिक रूप से आद्या शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति के प्रतीक स्वरूप में इसी की वंदना की जाती है क्योंकि सुखी जीवन के लिए बुद्धि, धन और आरोग्यमय देह की प्राप्ति हेतु माँ शक्ति के तीनों स्वरूपों की वंदना अनिवार्य है।
माता वैष्णो देवी आदि शक्ति का स्वरूप है। इस शक्ति का कोई ओर-छोर नहीं है, इनका अवतरण असुरों के संहार के लिए हुआ था। सृष्टि के रचियता, पालन कर्त्ता और संहार कर्त्ता के सामूहिक शक्तियों से माता को प्रकट किया गया है। इस शक्ति में सृष्टि के निर्माण कर्ता ब्रह्मा ने महा-सरस्वती रूप प्रदान किया, पालन कर्ता विष्णु ने महालक्ष्मी का तथा संहार कर्ता भगवान सदाशिव महादेव ने महाकाली की चेतना का प्रार्दुभाव किया। कटरा जम्मू से 14 कि- मी- की दूरी पर त्रिकूट पर्वत की गुफा में ये तीनों ही देवियां पिण्डी स्वरूप में अवस्थित हैं, सर्व कार्यसिद्धि के लिए तीन रूप धारण किये हुए हैं। ये तीनों ही शक्तियाँ भले ही आदि शक्ति का स्वरूप हैं किन्तु महा-सरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली के स्वरूपों का समवेत नाम ही माता वैष्णों देवी कहलाती है।
एक तरह से देखा जाये, तो मंत्र मानव जीवन की उपलब्धियों का प्रदाता है और साधना इसका सर्वश्रेष्ठ मार्ग। जब साधना और कर्म का समन्वय होता है और वह भी विशेष मुहूर्त में, विशेष व्यक्तित्व के सान्निध्य में, तो साधक के उदात्त जीवन का निर्माण स्वतः ही सम्भव हो जाता है। व्यक्ति में नवीन प्राणश्चेतना जाग्रत करता ही है और एक दिशा निर्देश करके ‘‘असतो मा सद्गमय’’ की ओर उसको सुप्रेरित करता है।
आस्तिक व्यक्ति इन्हीं त्रि-शक्तियों को प्राप्त करने के लिए जीवन में अनेक तरह के व्रत-उपवास, पूजा-अर्चना, ध्यान-साधना अपनी बुद्धि के अनुरूप समय-समय पर करता रहता है और साथ ही अनेक पवित्र नदियों में स्नान-दान, तप आदि की क्रियाएं करता है। इतना सब कुछ करने के बाद भी जीवन में यथार्थ रूप से किसी भी तरह से अनुकूलता नहीं आती और जीवन अनेक-अनेक उलझनों और विसंगतियो से घिरा रहता है। आस्तिक रहते हुए भी वह चिंतन, आत्मिय स्थापित नहीं हो पाती क्योंकि उसे सही सद्गुरु रूपी तपस्वी का सानिध्य और मार्गदर्शन नहीं मिलता। इसीलिए अनेक तरह की क्रियाएं करने के बाद भी जीवन में केवल अवसाद, दुःख, रोग-शोक, दीनता जैसे अन्धकार का भाव स्थायी रूप से बना रहता है। अतः अनेक तरह की तीर्थ यात्राऐं और धार्मिक प्रयोजन मात्र एक भटकाव और समय पूर्ति के चिंतन बन जाते हैं और जीवन में चिंताओं का विस्तार, देह की वृद्धि के साथ-साथ बढ़ता रहता है।
जगजननी मां दुर्गा अपने आराधकों को अपनी प्राणस्विता, तेजस्विता, ऊर्जास्विता प्रदान कर उनके जीवन को इन स्थितियों से चैतन्य करती है क्योंकि मां अपने पुत्र को कभी असहाय या अशक्त नहीं देख सकती। यदि साधक शक्ति की आराधना करता है, तो मां को सर्व शक्तिदायिनी स्वरूप में उसके हृदय, उसके प्राणों व तन-मन में समाहित होना ही पड़ता है। यदि उस शक्ति को अपने भीतर समाहित करने की प्रक्रिया ज्ञात हो तो, क्योंकि मां करुणा, ममत्व और स्नेह की प्रतिमूर्ति होती है। शक्ति तो वह शस्त्र है जिसके माध्यम से किसी भी महासंग्राम को आसानी से जीता जा सकता है। अगर यह सत्य न होता, तो नवरात्रि रची नहीं जाती, शक्ति साधनाओं का कोई विशेष महत्व ही नहीं होता।
जिस प्रकार परब्रह्म परमात्मा एक होने पर भी प्रयोजन वश ब्रह्मा, विष्णु और शिव, इन तीन रूपों में स्थित हैं, ठीक उसी प्रकार आदिशक्ति भी प्रयोजन वश तीन रूपों वाली है। वे तीनों ही एकाकार स्वरूप में स्थित हैं। जो महाकाली है, वही महालक्ष्मी है और जो महालक्ष्मी है वही महासरस्वती है। हाँ कार्यभेद से नाम और रूप में अन्तर है, संसार में इच्छा ज्ञान और दिव्य चेतना जिसे शारीरिक देह कहा गया है इन तीनों ही स्वरूपों के पूर्ण मिलन से ही सभी कार्य सम्पन्न होते हैं। इसके अतिरिक्त मनोवैज्ञानिक स्वरूप में संसार में सुखी जीवन के लिए बुद्धि, धन और स्वस्थ शरीर की रक्षा तथा निरोगता के लिए महाशक्ति के तीनों रूपों की उपासना करने का विधान बताया गया है।
जगद्गुरु शंकराचार्य, महाराणा प्रताप, छात्रपति शिवाजी, रामकृष्ण परमहंस आदि सभी शक्ति के परम उपासक थे। दशमगुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह जी ने, शक्ति-उपासना से ही मुगल शासकों को परास्त किया। वामन पुराण के जिस प्रसंग में देवी का महिषासुर के साथ हुए युद्ध का वर्णन हुआ है, उस एक ही प्रसंग में देवी को दुर्गा, कात्यायनी, सरस्वती, अम्बिका, भवानी, परमेश्वरी, कौशिकी, विन्ध्यवासिनी, महेश्वरी आदि संज्ञाओं से सम्बोधित किया गया है। वही उमा, गौरी, सती, चण्डी, काली और पार्वती भी हैं।
अनेक-अनेक साधकों का भी भाव चिंतन यही है कि हम अपने साथ परिवार के सदस्यों और बच्चों तथा परिजनों के साथ इस त्रि-पिण्ड शक्ति को श्रेष्ठ गुरु के सानिध्य में इस महाशक्ति की चेतना को पूर्णरूपेण रोम-रोम में स्थापित किया जाये। सद्गुरुदेव की आज्ञा से ही अक्षय तृतीया के पूर्ण फलदायी दिवस और दुर्गासप्तशती के रचियता आद्य शंकराचार्य की जयंती के दिव्यतम अवसर 3-4 मई को गुरुदेव के सानिध्य में पराम्बा शक्ति को साक्षी भूत स्वरूप में आत्मसात करने की क्रिया सम्पन्न की जा सकेगी। सद्गुरुदेव स्वयं मंजुल महोत्सव के अवसर पर दिव्यतम चेतना साधक को प्रदान करना चाहते हैं, जिससे जीवन में हर रूप में अक्षय स्थितियों की प्राप्ति हो सके और पाप, दोष, संताप, दुख, दरिद्रता का पूर्णरूपेण क्षय हो सके।
इसके फ़लस्वरूप अक्षय धन लाभ अखण्ड सौभाग्य और दीर्घायु जीवन की प्राप्ति हो सकेगी। इसलिए यह आवश्यक है कि आप इस मंजुल महोत्सव में अवश्य आयें और पूर्ण रूप से गुरुदेव के ज्ञानरूपी चिंतन और जीवन के मार्ग को निष्कंठक बनाने की क्रिया के साथ-साथ जीवन में आनन्द, हर्ष, प्रसन्नता, उल्लास, की शक्तियों तथा अक्षय धन लाभ से से ओत-प्रोत हो सकेगे।
3 मई 2014 शनिवार को कटरा पहुँचना अनिवार्य है। रात्रि में विश्राम की व्यवस्था की गई है। केवल कटरा में ही पंजीकृत साधकों के लिए ही ठहरने और भोजन की व्यवस्था गुरूदेव द्वारा हॉल (Hall) में संभव हो सकेगी।
बेटियां, माताऐं किसी भी स्थिति में अकेली न आएं। बीमार, असक्त, क्लीष्ट रोगी इस शिविर में भाग नहीं लें।
4 मई 2014 को प्रातः से पूर्व ही भोर काल में माता वैष्णो देवी की पद यात्रा प्रारंभ होगी।
कटरा से माता वैष्णो देवी और भैरव मंदिर तक की यात्रा केवल पैदल ही होगी।
मध्याहन्तः समय पर जब सूर्य पूरी तेजस्विता से साधकों के साथ-साथ माता वैष्णों देवी को आलोकित कर रहा होगा ऐसे शंकराचार्य बोधित्सव दिवस और अक्षय तृतीया के पावन दिवस पर अक्षय धन लक्ष्मी दीक्षा, शंकराचार्य प्रणीत त्रि-पिण्ड शक्ति दीक्षा, प्रदान की जायेगी।
भैरव मन्दिर प्रांगण में सांध्य बेला में पूजा-अर्चना ध्यान के साथ शत्रु पीड़ा हरण संहार दीक्षा और अप्सरा अनंग दीक्षा प्रदान की जायेगी।
दर्शन, पूजा और दीक्षा प्राप्त करने के साथ ही अपनी स्वयं की व्यवस्था से सीधे घर को प्रस्थान करेंगे जिससे की जो दिव्यता आपने प्राप्त की है उसका पूरे जीवन भर श्रेष्ठ लाभ प्राप्त होता रहे।
शुल्क राशि कैलाश सिद्धाश्रम जोधपुर अथवा गुरूधाम दिल्ली में व्यक्तिगत रूप से जमा कराएं अथवा ड्राफ्ट भेजे या सीधे खाता में जमा कर पंजीकरण (Registration) करा सकते है।
(दीक्षा न्यौछावरः 4100/-)
न्यौछावर राशि भेजने के लिए आप ‘प्राचीन मंत्र यंत्र विज्ञान’’Pracheen Mantra Yantra Vigyan’ Jodhpur के नाम का ड्रॉफ्रट अथवा आप चाहे तो उक्त राशि स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, यू-आई-टी-, जोधपुर ‘प्राचीन मंत्र यंत्र विज्ञान’ खाता क्रमांक 31763681638 अथवा स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, यू-आई-टी-, जोधपुर ‘कैलाशचन्द्र श्रीमाली’ खाता क्रमांक 31706102525 में भेज कर भी लाभ प्राप्त कर सकते है। उक्त नाम से अपने वहां की बैंक शाखा में जमा करवा कर PAY IN SLIP की कॉपी भिजवा सकते हैं। पंजीकरण शुल्क आप सीधे अपने वहां के बैंक में जमा करा सकते हैं। बैंक ट्रांसफर का चालान नं- sms अथवा फैक्स करने पर पंजीकरण स्वीकार कर लिया जाएगा।
आप प्राचीन मंत्र-यंत्र विज्ञान जोधपुर कार्यालय के फोन न- 0291-2517025, 0291-2517028 अथवा मोबाइल नं- 07568939648, 08769442398 पर सम्पर्क कर विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
माता वैष्णों देवी की यात्रा में प्रतिदिन साठ से सत्तर हजार भक्त पहुँचते है इसीलिए माता वैष्णो देवी साईन बोर्ड द्वारा केवल ऑनलाईन बुकिंग की ही व्यवस्था निर्दिष्ठ की गई है। इस हेतु मनोकामना भवन में स्वंय भक्त या साधक द्वारा ही इस वेब साईट पर www.matavaishnodevi.org बुकिंग ली जाती है और यह बुकिंग यात्रा दिवस से 30 दिन पूर्व ही खुलती है। आपके स्वयं के द्वारा बुकिंग कराने पर आपको समय पर रहने और सोने की व्यवस्था उपलब्ध हो सकेगी।
साईन बोर्ड द्वारा अनेक स्थानों पर सार्वजनिक शौचालय और स्नानघर बनाये गये है। उनका सही रूप से उपयोग कर माता वैष्णों देवी त्रि-पिण्ड के दर्शन पूर्ण श्रद्धा और आकांक्षा पूर्ति स्वरूप में अपने हृदय भाव में उस शक्ति को आत्मसात कर सके और अपनी कामना लेकर सद्गुरुदेव से दीक्षा प्राप्त करे।
जिससे जीवन का डर-भय और न्यूनतायें समाप्त हो सके। साधकों के भोजन प्रसाद की व्यवस्था निर्धारित भोजनालय में ही प्रदान की जायेगी। माता वैष्णों देवी दर्शन और गुरुदेव द्वारा शक्तिपात दीक्षा के सायुज्य को आत्मसात करने के बाद भगवान श्री भैरव बाबा की आभा को शक्ति स्वरूप में संचित कर सके इस हेतु भैरव दर्शन की व्यवस्था रखी गयी है।
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