अन्य दिनों में साधक, साधना करने में जितना प्रयास, जितना तपोबल, जितना मंत्र जप करता है, उसका शतांश भी इन दिनों में उपयोग करता है तो, उसे सिद्धि प्राप्त करने से कोई रोक नहीं सकता।
भगवती दुर्गा की साधना का स्वरूप ठीक उसी प्रकार है, जिस प्रकार एक श्रेष्ठ भवन की मजबूत नींव स्थापित करना। यह साधना, जीवन निर्माण की साधना है, जो यदि पूर्ण रूप से मजबूत है तो चाहे कितने भी तूफान क्यों न आयें, झटके लगें, विपरीत स्थितियां आये, जीवन रूपी भवन को कोई क्षति नहीं पहुंच सकती, क्योंकि इसका आधार साधक ने भगवती दुर्गा साधना से स्थापित किया है।
एक साधना प्रारम्भ की और सफलता मिल गई, तो वह सफलता स्थायी नहीं रह सकती, कुछ तात्कालिक प्रभाव तो मिल सकता है, लेकिन स्थायित्व प्राप्त नहीं हो सकता, लेकिन यदि आपने भगवती दुर्गा की साधना पूर्ण रूप से सम्पन्न की है और मां दुर्गा का आशीर्वाद तथा वरद्हस्त आपको प्राप्त होता ही है, इससे प्रत्येक साधना अपने आप सिद्ध होती चली जायेगी, क्योंकि साधना के लिए भीतर से शक्ति प्राप्त होना आवश्यक है और शक्ति केवल मां जगदम्बा की साधना से ही प्राप्त हो सकती है, चाहे शिव की साधना करें, अथवा विष्णु की साधना करें, अथवा लक्ष्मी उपासना करें सबसे पहले तो मां का आह्नान करना ही पडे़गा।
आदि शक्ति भगवती की आराधना करते हुए श्री कृष्ण कहते हैं, ‘तुम्हीं विश्वजननी मूल प्रकृति ईश्वरी हो, जो सृष्टि के प्रारम्भ से आद्या शक्ति के रूप में विराजमान हो, देवी तुम त्रिगुणात्मक स्वरूपा हो, सगुण-निर्गुण दोनों तत्व तुम में समाहित हैं, तुम्हीं परब्रह्म स्वरूप सत्य, नित्य एवं सनातनी परम तेज स्वरूपा तथा अपने भक्तों पर कृपा हेतु शरीर धारण करती हो, तुम सर्व स्वरूपा, सर्वेश्वरी सर्वाधार, सर्व बीज स्वरूपा, सर्व पूज्या हो, तुम सर्वज्ञ, सब प्रकार से मंगल करने वाली तथा सर्व मंगलों की मंगल हो।’ आदि शक्ति से ब्रह्मा, विष्णु व रूद्र की उत्पति हुई, उसी से मरूद्गण, गन्धर्व, अप्सराएं, किन्नर, अश्विनीकुमार, मित्र, वरूण, इन्द्र, अग्नि उत्पन्न हुए जो भोग्य और अभोग्य, दृश्य और अदृश्य हैं, सभी की उत्पत्ति आद्या शक्ति से हुई है।
जगदम्बा-आराधना, शक्ति की आराधना है और शक्ति का तात्पर्य केवल बल ही नहीं है और न ही शक्ति प्राप्त कर दूसरों के ऊपर दमन करना है, शक्ति तो एक भाव है, जो आपके सामर्थ्य को प्रगट करता है, शक्ति और शक्तिमान अलग-अलग नहीं किये जा सकते, जिस प्रकार चन्द्रमा का सम्बन्ध चांदनी से है, दीपक का सम्बन्ध प्रकाश से है, यदि दीपक नहीं, तो प्रकाश ही नहीं, इसी प्रकार शक्ति नहीं तो शक्तिमान भी नहीं, अतः यदि शक्तिमान होना है तो शक्ति की आराधना तो करनी ही पड़ेगी और इसे सिद्ध करने के लिए विशेष प्रयास, साधना आवश्यक ही है।
जो दुर्बल है उसका जीवन तो व्यर्थ है, जो अपने सामर्थ्य से शक्ति-आराधना करता है, उसका घर धन-धान्य, पुत्र, स्त्री, लक्ष्मी से कभी रिक्त नहीं हो सकता, इसी प्रकार शक्ति तो सबल के घर पराक्रम रूप में, विद्वानों के हृदय में बुद्धि रूप में, सज्जन लोगों में श्रद्धा के रूप में, कुलीनों में यश रूप में निवास करती है, शक्ति का साकार रूप सब जगह, सबमें है। इसकी साधना-आराधना ही आपके भीतर, आपके घर में, इसकी स्थिति को, इसके स्वरूप को प्रबल अथवा निर्बल करती है।
नवरात्रि का यह विशेष पर्व अपने भीतर से अज्ञानता, दोष, कमियां निकाल बाहर कर अपने भीतर शक्ति भरने का पर्व है। यदि संसार विपत्ति सागर है, तो उसमें से पूर्ण रूप से बाहर निकलने के लिए शक्तिवान होना ही पड़ेगा, अपने भीतर शक्ति सामर्थ्य भरनी पड़ेगी, यह शक्ति ही अपने अलग-अलग रूपों में विद्यमान हो कर साधक के कार्य सम्पन्न करती है।
इसी शक्ति का सबसे श्रेष्ठ स्वरूप महालक्ष्मी है, जो सीमा-रहित, नित्य निवासिनी विष्णु की नारायणी शक्ति हैं और इसी शक्ति के स्वरूपों में- लक्ष्मी, श्री, पद्मा पद्मालिनी इत्यादि है, इस ‘अहन्ता’ शक्ति की सिद्धि ही इस शारदीय नवरात्रि में सम्पन्न करना है।
मां दुर्गा के तीनों महान स्वरूपों बारे में ‘श्री देव्यर्थवशीर्ष’ में लिखा है कि ‘हे देवी! आप चित्त स्वरूपिणी महालक्ष्मी हैं तथा आनन्दरूपिणी महाकाली हैं, पूर्णत्व पाने के लिए हम सब तुम्हारा ध्यान करते हैं, हे महाकाली, महासरस्वती, महालक्ष्मी स्वरूपिणी चण्डिके, आपको बारम्बार नमस्कार है। मेरे अविद्या, अज्ञान, अवगुण रूपी रज्जु की दृढ़ ग्रन्थी का निराकरण कर मुझे शक्ति प्रदान करें।
नवरात्रि की मूल भावना इन्हीं तीनों शक्तियों की आराधना, साधना एवं इससे भी अधिक उनके वरदायक प्रभाव की प्राप्ति की कामना ही है। इसे दूसरे शब्दों में इस प्रकार भी कह सकते हैं कि प्रत्येक पुरूष के अंदर जो त्रिगुणात्मिका प्रकृति सुप्त रूप में है, उसे जाग्रत करने का उचित अवसर ही नवरात्रि है। वस्तुतः प्रकृति पुरूष से अभिन्न ही होती है, साधना के द्वारा बाहर से लाकर कुछ भी नहीं स्थापित किया जाता, वरन जो कुछ साधक के शरीर में छिपा होता है उसे ही जाग्रत किया जाता है। प्रत्येक साधक, प्रत्येक साधना कर सकता है और हमारी जीवन परम्परा, साधना पद्धति व सनातन धर्म में जिस प्रकार जीवन के प्रत्येक अंग को महत्व दिया गया है, नवरात्रि का पूजन इसी का स्पष्ट प्रमाण है, जिसमें जहां एक ओर शत्रु-नाश, रोग-नाश, भय-बाधा नाश जैसी स्थितियों के लिए महाकाली की साधना का विधान रख गया है, वहीं ऐश्वर्य-प्राप्ति, धन-सुख, आयु-सुख, परिवार-सुख आदि की प्राप्ति के लिए महालक्ष्मी पूजन को भी वर्णित किया गया। इनके साथ ही साथ जीवन को उन्नति की ओर ले जाने वाली, पवित्रता, शांति, विद्या, कला, सम्मान आदि प्रदान करने वाली देवी के रूप में महासरस्वती को भी वन्दनीय माना गया। इनमें से किसी भी पक्ष की उपेक्षा करके सम्पूर्णता नहीं प्राप्त कर सकते हैं और जब तक सम्पूर्णता नहीं प्राप्त होती तब तक जीवन अधूरा व व्यर्थ सा ही होता है। नवरात्रि के पर्व की यही भावना है कि कोई भी अपने जीवन में अधूरा अथवा पीडि़त न रहे और कदाचित इसी बात का स्मरण कराने के लिए वर्ष में दो बार शक्ति पर्व के द्वारा व्यक्ति को चैतन्यता प्रदान करने का विधान रखा गया।
शक्ति को उत्पन्न करने के लिए एक विस्फोट करना पड़ता है और वह पूर्ण रूप से सम्भव है शक्ति साधना द्वारा। नवरात्रि का यह शक्ति-महोत्सव उसी शक्ति का जागरण उत्सव है, श्रद्धा से तो अवश्य सब कुछ सम्भव हो पाता है। चै= नवरात्रि, आषाढ़ शुक्ल पक्ष, शारदीय नवरात्रि, माघ शुक्ल पक्ष इस तरह वर्ष में चार बार नवरात्रि शक्ति पर्व आता है। आद्याशक्ति को हम पूर्णरूपेण आत्मसात कर अपने भौतिक जीवन में आ रही निरन्तर कष्ट-बाधाओं और परेशानियों को समाप्त कर अपने आपको आर्थिक उन्नति की ओर अग्रसर कर सकते हैं। इसी हेतु तीन पत्रिका सदस्य बनाने पर आपको त्रि-पिण्ड शक्ति दीक्षा उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी।
प्रयाग तीर्थराज कहलाता है क्योंकि समस्त तीर्थों के ये अधिपति हैं।
सातों पुरियाँ इनकी रानियाँ कही गयी हैं। पुराणों के अनुसार प्रयाग में गंगा-यमुना के संगम में स्नान करके प्राणी पापों से मुक्त होकर सभी सुखों से आपूरित होता है। ऐसी ही दिव्य भूमि पर सद्गुरुदेव के सानिध्य में नवरात्रि के आद्या-शक्ति दिवसों में शक्ति को पूर्णरूपेण आत्मसात करने और अपने जीवन के समस्त पाप-ताप, दोषों के शमन हेतु, पूर्ण चैतन्य शक्ति से ओतप्रोत होने, नवरात्रि के दिवसों में शारदीय नवरात्रि अमृत सिद्धि साधना महोत्सव 27,28 सितम्बर 2014, त्रिवेणी संगम तट, इलाहाबाद (उ- प्र-) में सम्पन्न होगा।
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