सभी सौभाग्यशाली साधक खरंटिया मठ जाने के लिए पहले से ही बुक की गई बसों में सवार हो गए। हम सभी सद्गुरुदेव जी के भजन गाते-गुनगुनाते कब खरंटिया मठ पहुंच गए इस बात का हमें पता ही नहीं चला। वहां पहुंच कर हम सभी ने पाया कि यह स्थान आबादी से दूरस्थ होने के कारण ही अपने आप में पूर्ण सुखद है। ऐसा लग रहा था जैसे हम सभी इस देवभूमि से पहले से ही जुडे़ हुए हैं। शिष्य-शिष्याओं को थोड़ा विश्राम देने के पश्चात सद्गुरुदेव जी ने हम सभी के लिए वहां रूद्राभिषेक का आयोजन करवाया। उस स्थान का महत्व बताते हुए सद्गुरुदेव जी ने यह बताया कि उस स्थान पर करोंड़ों-करोंड़ों मंत्र जप हो चुके हैं, साथ ही उस स्थान पर लाखों बार रुद्राभिषेक भी सम्पन्न हो चुका है। सद्गुरुदेव जी ने स्वयं ही अपने कर-कमलों के द्वारा सभी शिष्य-शिष्याओं को उनके लिए जो भी विग्रह उचित था, वह प्रदान किया।
विग्रह प्राप्त कर मठ के मुख्य मंदिर प्रांगण में प्रविष्ट हुए। वहां का दृश्य अपने आप में ही दुर्लभ था। वहां पर 51 शिवलिंग स्थापित थे, ये दिव्य शिवलिंग अपने आप में ही अद्भुत प्रतीत हो रहे थे। सभी शिवलिंग के पास आसन व पूजा सामग्री रखी हुई थी। हम सभी साधकों ने अपना-अपना आसन ग्रहण किया। तदुपरान्त सद्गुरुदेव जी के निर्देशन में रुद्राभिषेक प्रारम्भ हुआ। हम सभी ने अपने-अपने पारद के विग्रहों को अपने समक्ष रखे हुए शिवलिंग पर स्थापित किया ताकि वह पूर्ण रुप से हमारे द्वारा किए गए मंत्र जप व रुद्राभिषेक से हमारे लिए पूर्ण सफलतादायक बने। विशिष्ट मंत्रों के उच्चारण के मध्य हम सभी एक लय में हो कर रुद्राभिषेक करते सद्गुरुदेव जी स्वयं ही हमारे पात्रों में पंचद्रव्य युक्त जल प्रदान कर रहे हैं और हर एक साधक-साधिकाओं के पास जा कर उन्हें दिशा निर्देश दे रहे हैं। इसके बाद तो और भी अद्भुत घटना तब घटी जब सद्गुरुदेव जी ने हम सभी को हस्त आचमन से शिवलिंग पर जल चढ़ाने के निर्देश दिए। उस समय सद्गुरुदेव जी ने हम सभी के हाथों में स्वयं जल को अर्पित कर हमारे हस्तो के द्वारा शिवलिंग पूजन को सम्पन्न करवाया।
पूजन समाप्त होने पर हम सभी ने उस पूर्ण चैतन्य पारद विग्रह को अपने शरीर के समस्त अंगों से स्पर्श कराया जिससे शरीर पूर्ण रूप से शिवस्वरूप बन सके। थोड़ा विश्राम के बाद हम सभी सद्गुरुदेव जी के निर्देशानुसार 11 कुंडीय यज्ञ वेदी नवग्रहों की चेतना के अनुसार निर्मित की गई थी। इस यज्ञ में हमने नवग्रह, श्री सूक्त, दसो महाविद्याओं, दुर्गा सप्तशती व अन्य विशिष्ट तांत्रोक्त मंत्रों द्वारा आहुतियां प्रदान की। साधकों की अधिक संख्या के कारण ताम्र धातु युक्त यज्ञ कुण्डों को भी प्राप्त कर यज्ञ सम्पन्न किया। पूर्णाहुति के उपरान्त पूर्ण सप्तचक्र कुण्डलिनी जागरण दीक्षा और सद्गुरु आत्म चैतन्य राजराजेश्वरी लक्ष्मी दीक्षा ग्रहण की।
सुस्वाद भोजन ग्रहण करने के पूर्व गाँव का भ्रमण किया। कल्पना से परे हमने देखा कि स्वयं सद्गुरुदेव जी हमारी बस में आ गए हैं। उनके आने से हम सभी का जोश हजारों गुणा और बढ़ गया और हमने पूर्ण मस्ती के साथ, सद्गुरुदेव जी के साथ ही झूमते-गाते अपने लक्ष्य कैलाश सिद्धाश्रम तक की यात्रा सम्पन्न की। वास्तव में ही यह दिवस देव दुर्लभ ही था जिसका आनन्द विरले ही प्राप्त कर सके।
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