जीवन का तात्पर्य है श्रेष्ठता प्राप्त करना, जीवन में आने वाली बाधाओं के निराकरण हेतु सामर्थ्यवान बनना। इसके साथ ही श्रेष्ठ जीवन के लिये यह आवश्यक है कि जीवन में आरोग्य हो, श्रेष्ठ सम्पत्ति हो, गृहस्थ जीवन में अनुकूलता और सुख-शांति हो। जीवन में अच्छे मित्र बने, जीवन में ही ‘श्री’ अर्थात् प्रसिद्धि की प्राप्ति हो। ये सारी स्थितियां मनुष्य को विचलित भी कर सकती हैं और ज्यादातर व्यक्ति अपने जीवन में अपने कार्यों का समाधान नहीं कर पाते, तो वे निराशा के गहरे अंधकार में चले जाते हैं। लेकिन इन सब बाधाओं तथा समस्याओं को अनुकूल बनाने का उपाय क्या है?
जीवन में पहला सूत्र तो यह आवश्यक है कि गुरु होने ही चाहिए। गुरु का तात्पर्य है वह ज्ञान, शक्ति का भण्डार जो आपको सतत् जीवन्त चेतना प्रदान करता रहे। दूसरा आवश्यक सूत्र है कि मनुष्य को जीवन में कर्मशील बनना ही है। विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी जो कर्म करते रहते हैं उनके जीवन में समस्याएं बहुत छोटी हो जाती हैं और वे कभी भी निराश नहीं होते। कर्म ही संजीवनी शक्ति है। जहां कर्म है और गुरु है, वहां गुरु के द्वारा जो ज्ञान प्राप्त होता है वह साधना कहलाता है। कर्मशील व्यक्ति गुरु द्वारा प्रदत्त साधनाओं के माध्यम से गुरु की शक्ति तो प्राप्त करता ही है, उसके साथ ही उसे दैवीय शक्ति भी पूर्ण रूप से प्राप्त होती है। देवी-देवता भी उसी पर आशीर्वाद की वर्षा करते हैं जो कर्मशील होता है, शिष्य होता है, साधक होता है।
नवरात्रि का पर्व दिनाँक 21 मार्च से प्रारम्भ हो रहा है यह साधना का विशिष्ट मुहूर्त है, जिसमें साधना कर व्यक्ति मां भगवती दुर्गा का साक्षात् आशीर्वाद प्राप्त करता है। उसके जीवन में त्रि-शक्ति तत्व प्राप्त होता है। इन नौ दिनों में जो भी साधनाएं की जाती हैं वे सिद्ध होती ही है तथा अंधकार और अज्ञान समाप्त हो जाता है। 9 ऐसी सिद्ध साधनायें है जिन्हें नवरात्रि में तो सम्पन्न करना ही चाहिए इसके अलावा किसी भी शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी के बीच सम्पन्न किये जा सकते हैं।
विवाह में बाधा विशेषकर कन्याओं के लिए विकट समस्या उत्पन्न कर देती है। उच्च शिक्षित, सुन्दर, प्रतिभावान होने के पश्चात् भी वर नहीं मिल पाते, लेकिन कभी-कभी सुयोग्य पुत्र के विवाह में भी अड़चने आ जाती हैं। ‘शीघ्र विवाह क्रीं साधना’ इस समस्या का अचूक समाधन है। उत्तर दिशा की और मुख कर, पहले आसन पर बैठ जाएं। माता-पिता भी अपने पुत्र/पुत्री हेतु प्रयोग कर सकते हैं। घी का दीपक लगा दें, चौकी पर सुगन्धित पुष्पों के आसन पर ‘क्रीं गुटिका’ को स्थापित करें। शांत चित्त भाव से निम्न मंत्र का ‘शक्ति माला’ से 11 माला मंत्र जप करें।
क्रीं गुटिका को बाजू पर बांध लें, (नवरात्रि काल में गुटिका धारण करना आवश्यक है) नवरात्रि के बाद दोनों वस्तुओं को जल में प्रवाहित कर दें। शीघ्र ही वर / वधू की प्राप्ति होगी।
गृहस्थ जीवन की समस्याओं में आज के भौतिकमय वातावरण में एक कठिन समस्या है- पुत्र अथवा पुत्री का बुरी संगत में फंस जाना, जिसके कारण पारिवारिक मर्यादाओं को त्याग कर, व्यर्थ के क्रिया कलापों, मदिरापान, जुआ खेलना आदि। ऐसी संगति से अगर उनका मोह भंग न कराया जाए, तो उनका जीवन ही बरबाद हो सकता है।
रात्रि के दस बजे के बाद काले आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुखकर बैठ जाएं। सामने चौकी पर ‘दक्षिणकालिका चक्र’ स्थापित करें तथा तेल का दीपक जलाकर संकल्प करें। तत्पश्चात् ‘कालिका उच्चाटन माला’ से निम्न मंत्र का 15 माला मंत्र जप करें।
मंत्र जप के पश्चात् चक्र और माला दोनों को पुत्र/पुत्री के फोटो के साथ रख दें, कुछ दिन बाद मां काली की कृपा से युवक/युवती सही मार्ग पर लौट आयेंगे। दशमी पर माला एवं दक्षिणकालि चक्र को दक्षिण दिशा में जाकर भूमि खोद जमीन में दबा दें।
हर व्यक्ति चाहता है कि वह सुन्दर तथा मनोहारक दिखे। केवल दैवीय कृपा से ही शरीर को सुगठित, त्वचा को कान्तिमान तथा मुख मण्डल को लावण्य युक्त बनाया जा सकता है। यही नहीं सुन्दर केश, लम्बा कद भी प्राप्त होता हैं। पूर्व दिशा की ओर मुख कर पीले आसन पर बैठ जाएं। सामने चौकी पर गुलाब के सुगन्धित पुष्प बिछाकर उस पर ‘मेनका गुटिका’ को स्थापित करें तथा इत्र छिड़क लें।
‘सौन्दर्य चैतन्य माला’ से निम्न मंत्र की 21 माला मंत्र जप करें।
साधना के पश्चात् माला पहन लें। नवरात्रि के बाद मेनका गुटिका और माला को नदी में प्रवाहित कर दें।
शत्रुओं की कुदृष्टि, ईर्ष्या से जीवन में तनाव एवं समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं, कुछ व्यक्तियों की तो प्रकृति ही ऐसी होती है, कि इधर टोका, उधर हानि का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार के कुप्रभावों से घर-परिवार को सुरक्षित रखने हेतु ‘रूद्र सृजक साधना’ महत्वपूर्ण है। रात्रि में दक्षिण दिशा की ओर मुख करके, काले आसन पर बैठे सामने तेल का दीपक जलाएं तथा ‘रूद्रा गुटिका’ को स्थापित करें। तत्पश्चात् ‘रूद्र माला’ से निम्न मंत्र की 11 माला जप करें।
रात्रि को ही माला और गुटिका को वस्त्र में लपेटकर घर से दूर निर्जन स्थान में दबा दें।
व्यापार का क्षेत्र एक जंगल की भांति होता है तथा उसमें जो भी व्यापारी शेर की भांति फुर्ती एवं चतुराई से कार्य करता है, वही सफलता की चरम सीमाओं पर पहुंच जाता है। जरा सी भी लापरवाही हुई नहीं, कि अन्य व्यापारी झपट कर मौका छीन ले जाते हैं, परन्तु व्यक्ति विशेष वही व्यापारी है जो कार्य का निष्पादन सूझबूझ से सफलता पूर्वक कर पाएगा। ऐसा ही हौसला, ऐसा ही जोश और बाधाओं को दूर करने की क्षमता प्रदान करने वाली यह साधना है।
रात्रि में श्वेत आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें। सामने चौकी पर ‘व्यापार बाधा निवारण यंत्र’ स्थापित करें तथा इस का पूजन कर घी का दीपक लगा दें। ‘व्यापार वृद्धि माला’ से 11 माला निम्न मंत्र की जाप करें।
व्यापार बाधा निवारण यंत्र को अपने व्यापार के स्थान पर स्थापित करें, 21 दिन पश्चात् माला तथा यंत्र को जल में प्रवाहित करें।
व्यक्ति का जीवन अधूरा है जब तक वह केवल आध्यात्मिकता या भौतिकता में रह रहा है, क्योंकि पूर्णता तो इन दोनों आयामों को प्राप्त करने में ही होती है। जहां ‘षोडशी’ का अर्थ है- चिरयौवनवान जीवन, भोग, धन, ऐश्वर्य वहीं ‘त्रिलोचन’ का अर्थ है- ज्ञानचक्षु, तृतीय नेत्र एवं सद्गति, अर्थात् भोग-मोक्ष का समन्वित स्वरूप। जो व्यक्ति अपने जीवन में दोनों पक्षों को प्राप्त करना चाहता है, वह अवश्य ही साधना सम्पन्न करें।
साधक शुद्ध सफेद धोती धारण कर रात्रि आठ बजे के उपरान्त सफेद आसन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठें और अपने सामने श्वेत वस्त्र से ढके बाजोट पर ‘षोडशी त्रिलोचन यंत्र’ स्थापित कर उसका पूजन करें। फिर ‘त्रैलोक्य माला’ से निम्न मंत्र की 9 माला मंत्र जप करें।
अगले दिन साधक यंत्र एवं माला को किसी जलाशय में अर्पित कर दें।
‘सर्वमांगल्य’ का अर्थ है- सर्व प्रकार से मंगल और निश्चय ही जो व्यक्ति इस साधना को सम्पन्न कर लेता है वह हर दृष्टि से सुखी जीवन जीता है।
सुख-समृद्धि, कीर्ति, पद-प्रतिष्ठा उसे सहज ही प्राप्त हो जाता है। उसका व्यक्तित्व अत्यन्त सम्मोहक एवं आकर्षक हो जाता है। उससे हर व्यक्त्वि प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। साधना प्रातः 6 से 8 बजे के मध्य सम्पन्न करे।
साधक स्वच्छ पीली धोती धारण कर पीले आसन पर उत्तराभिमुख होकर बैठे और सामने पीले वस्त्र से ढके बाजोट पर ‘भुवनेश्वरी सर्वमांगल्य यंत्र’ स्थापित कर उसका केसर से पूजन करें। फिर ‘कार्य सिद्धि माला’ से निम्न मंत्र की 5 माला मंत्र जप करें।
अगले दिन माला एवं यंत्र किसी जलाशय में अर्पित कर दें।
हर व्यक्ति के मन में कामनाएं होती हैं। हर कोई सौन्दर्यवान, आकर्षक एवं चिरयौवनवान होना चाहता है। हर कोई पूर्ण गृहस्थ सुख चाहता है और सभी की इच्छा होती है, कि इच्छित स्त्री/पुरूष से ही उसका विवाह हो पर बहुत ही कम होते हैं जिनकी ये कामनाएं पूर्ण होती हैं, फिर उसका जीवन एक निराशा में बदल जाता है। ऐसी स्थिति में श्रेष्ठ उपाय है ‘मातंगी सर्व मनोरथ साधना’ क्योंकि इसके द्वारा व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं सफलता से पूर्ण होती है।
वह अत्यधिक आकर्षक एवं सम्मोहक व्यक्तित्व का स्वामी हो जाता है, उसका विवाह अपने प्रेमी/प्रेमिका से होने का मार्ग मिलने लग जाता है और उसका गृहस्थ जीवन अत्यन्त सुखमय होता है।
साधक स्वच्छ श्वेत धोती धारण कर सफेद आसन पर पूर्वाभिमुख होकर प्रातः काल अपने सामने सफेद वस्त्र पर ‘मांतगी मनोकामना पूर्ति यंत्र’ का पंचोपचार पूजन करें, और फिर निम्न मंत्र का 40 मिनट तक जप करें।
अगले दिन यंत्र को किसी जलाशय में अर्पित कर दें और घर पर किसी बालिका को भोजन एवं उपहार भेंट करें।
विपत्ति तो जीवन में कभी भी आ सकती है तथा उसके निराकरण हेतु मां दुर्गा की साधना फलदायक सिद्ध होती है। पति-पत्नी से विमुख हो जाना, प्रेमी-प्रेमिका में सम्बन्ध विच्छेद हो जाना, पुत्र-पुत्री का रूष्ट हो घर-छोड़ कर चले जाना, अनेक समस्याएं हैं। समाधान केवल, कार्य सिद्धि दुर्गा साधना।
रात्रि में पीले वस्त्र धारण कर उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठ जाएं। सामने चौकी पर ‘दुर्गा बीसा यंत्र’ स्थापित करें, पूजन करें, जिस व्यक्ति विशेष हेतु प्रयोग किया जा रहा है, उसका नाम एक पर्चे पर लिखकर यंत्र के नीचे रख दें। अपनी कामना व्यक्त करें, निम्न मंत्र का 35 मिनट तक मंत्र जप करें।
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