जीव को 84 लाख योनियों में भटकने के उपरांत मनुष्य जीवन प्राप्त होता है। यह मनुष्य शरीर जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है। भगवान की कृपा से अनेक जन्मों के संचित सुकर्मों, जप-तप, पुण्यों के फलस्वरूप ही जीव मनुष्य-शरीर धारण करता है। आज तक जितने भी महान पुरूष हुए हैं, वे सब मानव देहधारी ही तो हैं। यह मानव शरीर विशिष्ट हेतु से ही प्राप्त होता है, मनुष्य जीवन का प्रयोजन ही भौतिक तथा आध्यात्मिक पूर्णता के साथ मानव रत्न विषय-भोगों को भोगकर जन्म-मरण के चक्रव्यूह से मोक्ष को प्राप्त कर लेना है।
मानव जीवन प्राप्त होना ही बडे़ सौभाग्य की बात है, क्योंकि यह मानव जीवन पुण्य कर्मों के आधार पर ही प्राप्त होता है, इसे यूं ही गंवा देना, अज्ञानता ही कही जा सकती है। मनुष्य होना कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है, अपितु मनुष्य बनना अपने आप में एक श्रेष्ठ उपलब्धि है, आवश्यक यह है, कि वह सद्गुरू के बताए मार्ग का अनुसरण कर अपने चरित्र और चिंतन को उत्कृष्ट करता हुआ ऊर्ध्वमुखी बनें।
प्रत्येक मनुष्य को जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरूषार्थों को प्राप्त कर लेने की कामना रहती ही है, जिनके माध्यम से वह अपने जीवन को संचालित करता है, परन्तु इस जन्म के या पूर्व जन्म में किए कार्यों के आधार पर ही हमें इस जीवन और आने वाले जीवन में पाप- पुण्यों से ही जीवन में स्थितियां बनती हैं।
यह जीवन पुनर्जन्म से जुड़ा है। पूर्व जन्म में आप क्या थे? कहां थे? आपने कौन से कर्म किए? इसको जानने की इच्छा तो अवश्य होती होगी।
भारतीय सिद्धान्त में प्रमाणित हो चुका है कि ‘आत्मा अजर अमर’ है। मनुष्य एक जीवन से दूसरे जीवन में प्रवेश करता है। हमारे इस जीवन के सम्बन्ध पूर्व जन्मों से जुड़े होते हैं। यह अलग बात है कि मृत्यु को प्राप्त कर हम दूसरा शरीर धारण कर लें, परन्तु आत्मा वही रहती है, आत्मा के सम्बन्ध तो ज्यों के त्यों रहते हैं।
हमारी अज्ञानता है कि हमने जीवन का मतलब उस दिन से मान लिया, जिस दिन से हमने जन्म लिया है और उस जीवन को उतना ही मान लिया जिस दिन हमारी मृत्यु हुई। शास्त्रीय दृष्टि से यह मात्र जीवन का एक भाग है। इससे पहले भी हम कई बार जन्म लें चुकें हैं और मृत्यु को भी प्राप्त हुए। कई बार व्यक्ति को ईश्वर पर क्रोध आता है और उसके न्याय पर संदेह होने लगता है, कि कोई व्यक्ति जीवन भर दान, पुण्य, गुरू की सेवा, इष्ट की पूजा करता हुआ सात्विक जीवन व्यतीत करता है, फिर भी वह गरीब और पैसे-पैसे के लिए मोहताज रहता है, जबकि दूसरी ओर बदमाश, ठग, हत्यारे, लूट खसोट करने वाले, झूठे और मक्कार व्यक्ति समाज में सम्मानीय कहे जाते हैं, उनके जीवन में कोई अभाव नहीं होता है। तब विधाता के न्याय पर संदेह होता है।
क्यों पति-पत्नी में परस्पर मतभेद बना रहता है? क्यों बाप के कंधे पर बेटे की लाश श्मशान तक पहुंचती है? क्यों व्यक्ति परिश्रम करने के बावजूद भी गरीब बना रहता है? क्यों इतना दुख भोगना पड़ता है? क्यों असफलता हमारा साथ नहीं छोड़ती? क्यों परिवार में अशांति और रोग बना रहता है? इन सब का कारण पूर्व जन्म के कर्मो पर ही आधारित होता है। जन्मों की श्रंृखला और कर्मफल का रहस्य अत्यन्त पेचीदा है। इन्हीं के संयोग से व्यक्ति का अगला जीवन निर्धारित होता है। बालक जन्म के उपरांत जैसे-जैसे बड़ा होता है, वैसे-वैसे उसके संचित कर्म उसके जीवन पर प्रभाव दिखाते हैं।
सत्य तो यह है कि कर्मफल की एक बहुत बड़ी स्थिति पूर्व जन्मों से सम्बद्ध होती है। इस जन्म में आने वाली असफलताओं, परेशानियों, बाधाओं, रोग-शोक, निर्धनता एवं अपमान का कारण पूर्व जन्म में हुए पाप ही होते हैं अथवा किसी आत्मा का शाप होता है, जाने-अनजाने में पूर्व जन्मों में हमसे किसी जीव को अथवा किसी मनुष्य को कष्ट पहुंचता है अथवा उसके साथ दुर्व्यवहार होता है तो उसकी आत्मा का वह शाप निरन्तर हमारा पीछा करता ही है और समय आने पर वह पाप राशि, वह अभिशाप हमारे मार्ग में एक दैत्य की तरह खड़ा होता है और हमें उस कर्म फल के हाथों विवश हो जाना पड़ता है।
कर्म का फल तो भगवती सीता को भी भोगना पड़ा था। उन्हें एक तोती का अभिशाप था कि जिस तरह तूने इस गर्भावस्था में पति से अलग किया है, उसी तरह तुझे भी अपने पति से विलग होना पड़ेगा। शास्त्र इस बात का प्रमाण है कि सीता जी को धोबी के आक्षेप के कारण स्वयं अपने पति राम द्वारा गर्भावस्था में अयोध्या से निष्कासित किया गया था और बाद में राजमहलों की सीता जी को वाल्मीकि आश्रम में पति के वियोग में ही मृत्यु तुल्य जीवन जीने को विवश होना पड़ा था। कर्म फल को तो भुगतना ही पड़ता है। पूर्व जन्म के इन पापों का शमन करना अति आवश्यक है क्योंकि इन पाप-शाप के रहते व्यक्ति का सफल होना संभव नहीं होता है।
प्राचीन काल से ही रामेश्वरम् की भूमि पाप, दोषों से मुक्ति, श्राद्ध, पिण्ड दान कर मोक्ष प्राप्ति का धाम माना जाता है। रावण का वध करने के बाद जब भगवान राम वापस आयें तो उन्हें ब्राह्मण कुल नाश करने का शाप लगा जिसकी निवृत्ति के लिए ऋषियों ने शिवलिंग की पूजा करने का आदेश दिया। श्री राम ने माता सीता के साथ रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना कर घोषणा की जो भी व्यक्ति इस दिव्य ज्योतिर्लिंग की पूजा-अर्चना करेगा उसके कई-कई जन्मों के पाप दोषों की निवृत्ति होगी। और वह प्रत्येक दृष्टि से सम्पन्न होकर पूर्णता प्राप्त करेगा।
कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद पाडंवों ने भी रामेश्वरम् में पूर्वजों के आत्माओं की शान्ति के लिए पिण्ड दान किया और दिव्य ज्योतिर्लिर्ंग का अभिषेक कर महादेव से पाप-दोष मुक्ति के साथ सुखद सफल जीवन के लिए प्रार्थना की।
प्रत्येक शिष्य के दुःखों का कारण पूर्व जन्म के पाप-ताप, दोष, शाप, पितरों की अंशाति ही मुख्य है। जिसके कारण अत्यधिक परिश्रम के बावजूद भी सफलता नहीं मिलती। परिवार में कोई ना कोई हर समय बीमार रहता है। लाख प्रयास के बाद भी व्यापार में सफलता नही मिलती। समय से विवाह का ना होना। योग्य शिक्षा के बाद भी रोजगार में असफलता की प्राप्ति। इन सबके शमन के बिना श्रेष्ठ और सफल जीवन की कल्पना करना भी व्यर्थ है।
यह युग साक्षी होगा जब गुरूदेव जी के द्वारा विशेष तांत्रोक्त महाकल्प में अपने शिष्यों के साथ उस दिव्य ज्योतिर्लिंग का रूद्राभिषेक सम्पन्न होगा जिसे स्वयं विष्णु के सातवें अवतार मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने स्थापित किया था। इस चैतन्य ज्योतिर्लिंग का पूजन सम्पन्न कर निश्चय ही आप अपने पाप-दोषों को भस्मीभूत कर उज्जवल और श्रेष्ठ भविष्य निर्माण की ऊर्जा प्राप्त कर सकेगें।
ऐसे दिव्यतम धाम पर जीवन को पूर्ण श्रेष्ठमय बनाने के लिए गुरुदेव जी के सानिध्य में समुद्र स्नान के बाद 21 पवित्र नदियों से युक्त कुण्डो में सभी अलौकिक दिव्य तीर्थ कुण्डों के जल से साधकों द्वारा स्नान कर पवित्रीकरण युक्त अभिषेक होगा साथ ही शैव शक्ति और वैष्णव शक्ति की तपो भूमि पर महामृत्युजंय रूद्राभिषेक, नवग्रह चैतन्य युक्त नव चण्डी हवन, श्री सुन्दरेश्वर शक्ति साधाना, विघ्नहर्ता गणपति दीक्षा, काल भैरव दीक्षा, मीनाक्षी धन लक्ष्मी दीक्षा के साथ योगा, प्राणायाम, प्रवचन की श्रेष्ठतम क्रियायें सम्पन्न होगी। पूज्य सद्गुरुदेव की आज्ञा से सर्वथा पहली बार रामेश्वरम् में दीर्घायु जीवन प्राप्ति सर्व सुख धन प्रदाता रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग शिविर का आयोजन 14, 15 मार्च को सत्संग भवन, गोस्वामी मठ-2, सीता तीर्थ के पास, रामेश्वरम् में सम्पन्न होगा।
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