व्यक्ति हर पल भविष्य के प्रति आशंकित और भयभीत रहता है। अनेक दुःख रूपी ज्ञात-अज्ञात बाधाओं से चिंतित और तनाव से तो जीवन अभिशाप युक्त हो जाता है, सुरक्षित, नियंत्रित, निडरता के साथ श्रेष्ठमय जीवन व्यतीत करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को तीव्र साधाना सम्पन्न करना ही चाहिए।
जीवन है तो उसके साथ सुख-दुख चलते ही रहते हैं, कभी सुख आयेगा तो कभी दुख, यह दृष्टिकोण है, थोड़ी देर के लिए यह मान लें कि जीवन में अनचाहे दुख पीड़ाएं और कुछ आकस्मिक घटनाएं भी घट सकती हैं, तो क्या ऐसा कोई उपाय नहीं? जिससे जीवन की दुःखदायी घटनाओं की जानकारी हो सके और उनके बारे में कुछ उपाय किया जा सके।
जीवन में यह सत्य हैं, कि परिवार में एकदम से बीमारी आ जाय, परिवार के किसी सदस्य का एक्सीडेन्ट हो जाये, जिस व्यक्ति पर भरोसा करें वह व्यक्ति घाटा पहुंचा दे, कोई अचानक आपको धोखा दे दें, कोई शत्रु आपके विरूद्ध षड़यंत्र रच दे, कहीं अकस्मात् रूप से कोई ऐसा कार्य हो जाये, जिससे आपकी प्रतिष्ठा पर हानि पहुंचे। ये सब स्थितियां जीवन में सुख का नाश कर, दुःख में वृद्धि करती हैं, और जीवन की उन्नति को पीछे धकेलती हैं, इन स्थितियों के होते आप जो श्रम करते हैं, वह श्रम आपको पूर्ण रूप से फलदायी नहीं रहता। साधना ही इसका उत्तर है साधना द्वारा ही इन स्थितियों पर विजय प्राप्त होती है।
कुछ साधनाएं जिनमें कुछ विशेष तंत्र प्रयोग भी शामिल है, शत्रु नाश, बाधा निवारण, मारण प्रयोग, स्तम्भन एवं वशीकरण प्रयोग की साधनाएं होती हैं, जिसे साधक अपने कार्यों की पूर्ति, बाधाओं के नाश के लिए करता है। कुछ विशेष रक्षा साधनाएं होती हैं, जो कि भविष्य में आने वाली बाधाओं के सम्बंध में एक कवच का रूप बन जाती हैं जिससे यदि बाधाएं आएं भी, तो आप पर प्रभाव न डाल सकें। इन बाधाओं की आपको पूरी जानकारी हो जाय, जिससे समय रहते, उचित उपाय कर सकें।
यह महत्वपूर्ण वरूथिनी शक्ति साधना विशेष प्रयोग दिवस के दिन सम्पन्न की जाती है, और इसका विधान अत्यन्त सरल है, और विशेष बात यह है कि यह साधना गृहस्थ व्यक्तियों के लिए है क्योंकि गृहस्थ को ही अपने जीवन में पग-पग पर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, अपने घर परिवार के अतिरित्तफ़ समाज में रहते हुए उसे सब कार्य निभाने पड़ते हैं, वह चारों ओर से जिम्मेदारियों के तारो से बंधा एक कुशल नट की भांति जीवन जीता है, जहां थोड़ा पैर चूका कि परेशानियां दस गुना बढ़ जाती है।
‘योगिनी हृदय तंत्र’ के अनुसार ब्रह्म ने सृष्टि रचना के साथ जिन विशेष शक्तियों की उत्पत्ति की उनमें प्रमुख ‘वरूथिनी’ है।
‘अष्टाद निकाय’ में इस साधना का जो वर्णन मिलता है, वह निश्चय ही इस साधना के पूर्ण स्वरूप को दर्शाना है।
शक्तागम साहित्य में ‘श्री विद्यार्ण’ ग्रंथ में भी इस साधना के सिद्धान्त तथा उपासना के सम्बंध में विवरण है, यह ग्रंथ प्रकाशित ही नहीं हुआ, इस ग्रंथ की एक हस्तलिखित प्रति जम्मू रघुनाथ मन्दिर पुस्तकालय में है, यह ग्रंथ शंकराचार्य द्वारा लिखा गया है।
इसमें लिखा है कि यदि कोई साधक वरूथिनी सिद्धि प्राप्त कर लेता है, तो वह सम्पूर्ण ज्ञाता बन जाता है, उसे भविष्य की सिद्धि प्राप्त हो जाती है। साधक में सूर्यतत्व प्रबल हो जाता है, उसका मस्तिष्क अत्यन्त तीव्र तथा विशेष विचारशील हो जाता है। अपने कार्यों के गुण अवगुण का ज्ञान हो जाता है, और उसके सामने अपना मार्ग स्पष्ट रहता है, कोई भी विपरीत स्थिति आने पर सिद्धि प्राप्त साधक को पूर्ण जानकारी हो जाती है और वह उसकी निवृत्ति का मार्ग ढूंढ़ लेता है। शक्ति संचार के तीव्रत्व में एक तादात्म्य हो जाता है, जिससे उसकी शक्ति एक ही दिशा में अग्रसर रहती है, व्यर्थ के कार्यों में उसकी शक्ति का नाश नहीं होता। गुण तथा द्रव्य दोनों की ही प्राप्ति संभव हो जाती है।
वरूथिनी साधना एक तांत्रिक प्रयोग है, इस प्रयोग में साधक को कुछ विशेष सावधानियां भी रखनी पड़ती है साधक एकादशी के दिन भोजन ग्रहण न करें, साधना के दिन शारीरिक रूप से पूर्ण स्वस्थ हों। साधना के दिन साधक के मन में विशेष उत्साह हो, यह उत्साह शक्ति गुरू ध्यान कर साधक अवश्य ही प्राप्त कर सकता है।
यह साधना प्रक्रिया थोड़ी भिन्न है, क्रमबद्ध रूप से करने पर साधक सरलता पूर्वक प्रयोग सम्पन्न कर सकता है, इसमें वरूथिनी शक्ति युक्त ‘महाकाली यंत्र’, ‘दो जोड़ी दो मुखी रूद्राक्ष’, भैरव गुटिका तथा ‘15 हकीक पत्थर’ आवश्यक है। इस साधना में किसी प्रकार की माला की आवश्यकता नहीं है। सर्व प्रथम गुरू पूजन कर 1 माला गुरू मंत्र का जप करें, इसी प्रकार भैरव का ध्यान करते हुए भैरव गुटिका का पंचोपचार पूजन कर अपने सामने में स्थापित कर दें। और बिना माला के 108 बार भैरव मंत्र का जप करें।
अब अपने सामने एक ताम्र पात्र में पुष्प रख कर महाकाली यंत्र जो कि ताम्रपत्र पर अंकित हो, शुद्ध जल से धो कर उस पर स्थापित करें और सिन्दूर चढांए, उसके साथ ही पूजा स्थान में धूप अवश्य जला दें, दोनों घुटने टिका कर पैर पीछे करके बैठें तथा बाधा निवारण हेतु निम्न मंत्र का 21 बार जप करें।
पहले से ही सिन्दूर से रंग कर रखे हुए चावलों को प्रत्येक बार मंत्र जप के समय, ताम्र पात्र में रखे यंत्र पर अर्पित करते रहें।
इसके पश्चात् अपने पैरों को सीधा कर पालथी मार कर बैठ जाएं, दोनों दो मुखी रूद्राक्षों को अपने सामने यंत्र पात्र के बाहर सफेद चावल की ढ़ेरी पर रखें और उन पर चंदन चढाएं, शिव का ध्यान करें, निम्न मंत्र का 51 बार उच्चारण करते हुए प्रत्येक रूद्राक्ष पर दाएं हाथ से जल अर्पित करें।
यह पूजन कार्य सम्पन्न करने के पश्चात् अपने सामने किसी पात्र में तीन लाइनों में 15 हकीक पत्थर रखें प्रत्येक हकीक पत्थर पर तिल तथा सरसों चढ़ा दें, इस समय अपनी मुद्रा दूसरी ओर कर दें, अर्थात मंत्र जप के समय दिये की ओर देखना नहीं है, दीपक आपके पीठ पीछे हो।
मंत्र जप प्रारम्भ करने पहले अपनी सारी बाधाओं को एक कागज पर लिख कर लाल डोरा बांधे और अपने पास दीपक के साथ रख दें। जब 101 बार मंत्र जप पूर्ण हो जाय तो यह कागज उस दीपक की लौ में जला दें तथा जोर से फूंक मार दीपक को बुझा दें, अब अपने सामने से हकीक पत्थर, तिल, सरसों तथा कागज की राख आदि को लेकर एक लाल कपड़े में बाधं दे और इसे अलग कोने में रख दें।
जब यह सारी साधना सम्पन्न हो जाय तो केवल गुरू के सम्मुख अर्पित किया हुआ प्रसाद ही ग्रहण करें अन्य प्रसाद जो कि भैरव गुटिका के सामने अर्पित है, श्वान अर्थात किसी कुत्ते को खिला दें।
लाल कपड़े में बांधे गये हकीक पत्थर, तिल, सरसों तथा राख को घर से दूर गड्ढा खोद कर गाड़ दें। घर आकर पुनः स्नान कर शुद्ध श्वेत वस्त्र पहिन कर गुरू आरती तथा शिव आरती सम्पन्न करें। यह साधना अत्यन्त प्रभावकारी एवं महत्वपूर्ण है, रक्षा कवच की यह महत्वपूर्ण साधना साधक को बाधाओं की समाप्ति, जीवन में हर समय व्याप्त चिन्ता आशंका के समापन के लिए अवश्य करनी चाहिए।
व्यक्ति अपने जीवन-धर्म को निभाने में निरन्तर कार्यशील रहता है परन्तु समय के चक्र और और पाप-ताप दोषों के कारण साधक को सफ़लता प्राप्त नहीं हो पाती जिसका वह आकांशी होता है। साधक के जीवन में बाधाओं को समाप्त करने और समस्त सुस्थितियों की प्राप्ति हेतु आप अपने किन्हीं पांच मित्रों या रिश्तेदारों को पत्रिका सदस्य बनाने पर आपको भैरव दुर्गा सायुज्य वरूथिनी दीक्षा और साधना सामग्री उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी। जिससे आपके जीवन की ज्ञात-अज्ञात बाधाओं का निवारण हो सकेगा और सुस्थितियों की प्राप्त कर पूर्ण आनन्द युक्त जीवन गुरुमय हो सकेगा। यह दीक्षा आप फ़ोटो के माध्यम से भी प्राप्त कर सकते है।
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