भगवान शिव अनेक रूपों में मानव का कल्याण कर उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। वे एक ओर तो कुबेराधिपति हैं, वहीं महामृत्युंज्य स्वरूप में विभिन्न रोगों के हर्त्ता हैं, औघढ़दानी बन कर रंक को राजा बनाने की सामर्थ्य रखते हैं, दूसरी ओर स्वयं श्मशान में रहते हुए, भस्म लपेटे हुए, उसी प्रकार से आनन्दित रहते हैं, जिस प्रकार वे कैलाश पर्वत पर भगवती पार्वती के साथ रहते हैं।
भगवान शिव को रसेश्वर भी कहा गया है, क्योंकि वे जीवन को प्रत्येक रस से सराबोर करने वाले हैं, और जिस व्यक्ति के जीवन में रस ही ना हो तो उस व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है। भगवान शंकर ने गंगा के तेज प्रवाह को अपनी जटाओं में धारण किया था और उनके जटाओं से प्रवाहित यह गंगा पूरे भारत वर्ष को प्रेम, करूणा, आनन्द, हास्य के रस से आप्लावित करती हुई निरन्तर गतिशील रहती है, यही गंगा कहीं नर्मदा, कहीं ब्रह्मपुत्र, तो कहीं हुगली, क्षिप्रा इस प्रकार विभिन्न धाराओं में बहती हुई समुद्र में विलीन हो जाती हैं, ठीक इसी प्रकार मनुष्य भी अपने जीवन में निरन्तर काम, अर्थ, मोक्ष के प्रवाह में गतिशील होते हुए श्रावण मास के दिव्यतम चेतना को आत्मसात कर पूर्णता की ओर अग्रसर होता है।
श्रावण मास वरूण देव का कल्प भी कहा गया है, इन्द्र देव का भी कल्प कहा गया है, जब इन्द्र और वरूण भगवान शिव के आदेश से इस धरती को जल से सिंचित करते हैं तो पूरी धरती पर हरियाली छा जाती है। क्योंकि ऐसे श्रावण मास में ही प्रकृति रूपी भूमि और ईश्वर रूपी महादेव का संयोग होता है तभी इस संयोग से पृथ्वी पर वृद्धि होती है, इसीलिये शास्त्रों में श्रावण मास का विशेष महत्व बताया गया है। और यह मास भगवान शिव और महागौरी का मास है, जब वे अपनी लीला का प्रकाश फैलाते हुए धरती पर विचरण करते हैं।
भगवान शिव अपनी भक्तवत्सलता के कारण ही सभी के प्रिय देव हैं, तभी तो उन्हें देवाधिदेव महादेव कहा गया है। इसी कारण तो जहां प्रत्येक दैवीय शक्ति के लिए वर्ष में एक या दो दिन का निर्धारण किया गया है, वहीं भगवान शिव की आराधना के लिए पूरा एक मास ही निर्धारित है। जिस माह में किसी भी उद्देश्य के लिए भगवान शिव की आराधना करने से निश्चित रूप से पूर्ण सफलता के साथ श्रेष्ठमय स्थितियों का निर्माण होता है। इसी हेतु पूज्य सद्गुरूदेव जी ने अपने सभी मानस पुत्र-पुत्रियों के जीवन को शिव-गौरी की क्रियात्मक शक्ति को धारण कर प्रत्येक दृष्टि से पूर्ण होने के लिए शिवोहम धनदा शक्ति साधना पैकेट चैतन्य किया है। जिसे सम्पन्न कर निश्चिन्त रूप से सांसारिक जीवन की न्यूनताओं के समापन से साधक निरन्तर श्रेष्ठता और उच्चता की ओर बढ़ता है।
वास्तव में ही इस बार श्रावण महीने में जिस प्रकार के योग निर्मित हुए हैं, इन अवसर पर साधना सम्पन्न करना तो सौभाग्य ही होगा। जो सही अर्थों में साधक हैं। वे इसका पूर्णरूपेण लाभ उठाते ही हैं। सद्गुरूदेव की मनसा है कि इस वर्ष प्रत्येक साधक-साधिकायें इन चारों सोमवारों में किसी एक साधना को अवश्य सम्पन्न करें।
श्रावण मास में चार महत्वपूर्ण सोमवार आ रहें हैं। और प्रत्येक सोमवार अपने आप में विशिष्ट योगों से सम्पन्न हैं, गणेश चतुर्थी, कामना पूर्ति एकादशी, हरियाली तीज, ज्येष्ठा महानवमी के अद्वितीय योगों से युक्त है।
चारों सोमवार साधानायें एक ही सामग्री से चारों सोमवारों को सम्पन्न की जाने वाली साधनाओं के लिए अलग-अलग साधना पैकेट की आवश्यकता नहीं है। सद्गुरूदेव के विशेष कृपा से एक सामग्री से चारों साधनायें सम्पन्न की जा सकेंगी। साधक अपनी सुविधानुसार चारों या किन्हीं एक-दो सोमवार को साधनाओं को सम्पन्न कर सकता हैा।
सर्व प्रथम पूजा स्थान को स्वच्छ कर शुद्धता पूर्वक लकड़ी का बाजोट रखें, उस पर सफेद वस्त्र बिछावें तथा निम्न सामग्री को एकत्र कर अपने पास रख लें, शुद्ध जल, गंगा जल, चन्दन, अक्षत, कुंकुंम, पुष्प, विल्वपत्र, पुष्प माला, पंचामृत, वस्त्र यज्ञोपवीत, अगरबत्ती, नैवेद्य विविध फल, सुपारी, घी का दीपक, तथा शिवोहम साधना पैकेट।
स्नानदि से निवृत्त होकर पूर्व की ओर मुंह करके बैठ जायें, और यदि सम्भव हो तो अपनी पत्नी को भी दाहिने हाथ की ओर बिठा दें। पवित्रीकरण, आचमन, शिखा बन्धन और न्यास आदि की क्रियायें सम्पन्न होने के बाद चावल की ढ़ेरी पर जल का कलश स्थापित कर दें और उसके चारों ओर केशर या कुंकुम की चार बिंदिया लगा लें, और उसमें निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए जल भरें-
फिर उसी कलश से जल लेकर अपनी
मनोकामना बोलकर संकल्प लें।
लकड़ी के बाजोट पर शिवोहम शक्ति यंत्र को स्थापित कर यंत्र के समक्ष पांच चावल की ढेरी बनाकर प्रत्येक पर रूद्राक्ष कल्प स्थापित कर दें। तुलसी की माला और चार सोम शक्ति जीवट को भी एक ओर स्थापित कर सभी सामग्री का संक्षिप्त पूजन करें। ध्यान रखें प्रत्येक सोमवार को अलग-अलग सोम शक्ति जीवट प्रयोग में लें।
फिर निम्न मंत्र का उच्चारण कर भगवान शंकर का आवाहन करें।
ध्यान
दो आचमनी जल चढ़ावें
पाद्यं समर्पयामि नमः अर्घ्यं समर्पयामि,
आचमनीयं जलं समर्पयामि नमः।
फिर धूप, दीप, अक्षत, कुंकुम, पुष्प से पूजन कर जो साधना सम्पन्न करनी हो उसका मंत्र जप करें तथा संकल्प भी उसी साधना का लें।
जीवन की श्रेयता तो तभी संभव है, जब व्यक्ति का समाज में एक वर्चस्व हो, जहां उसकी बातों को ध्यान पूर्वक सुना जाता हो, सम्मान पूर्वक ग्रहण किया जाता हो और धन, ऐश्वर्य से भी सम्पन्न हो, क्योंकि धन-सम्मान आदि आज के भौतिक जीवन में महत्वपूर्ण एवं आवश्यक बन गये हैं। भगवान शिव के कुबेराधिपति स्वरूप की साधना करने से साधक रावण के समान अतुलनीय धनवान, ऐश्वर्यवान और वैभवशाली होता है। और लक्ष्मी अपने ‘श्री’ स्वरूप में भगवान शिव के साथ अखण्ड रूप से विद्यमान होती है। और सांसारिक जीवन की भी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ लक्ष्य प्राप्ति के लिये क्रियाशील बनाये रखती है।
निम्न मंत्र का 11 माला जप करें।
भगवान शिव का शक्ति से संयुक्त स्वरूप अत्यधिक चैतन्यता और दिव्यता से युक्त है। शिव-शक्ति की संयुक्त कृपा से ही साधक को किसी साधना में सफलता प्राप्त होती है। शिव-शक्ति की चेतना से ओत-प्रोत होकर ही साधक पति-पत्नी की आरोग्यमय दीर्घायु, आध्यात्मिक उन्नति, ध्यान, कुण्डलिनी जागरण, महाविद्याओं साधनाओं में सफलता प्राप्त कर पाता है।
गृहस्थ जीवन को आनन्द और रसमय बनाने के लिये आध्यात्मिक प्रगति के लिए शिव-शक्ति की साधना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है और इनकी साधना सम्पन्न कर साधक विशिष्टता को प्राप्त कर आनन्द और प्रेममय, श्रेष्ठता, सफलता, पूर्णता की ओर अग्रसर होता ही है।
मंत्र का 9 माला जप सम्पन्न करें।
जीवन में केवल रोग, पीड़ा की बराबर उपस्थिति ही नहीं, अनेक-अनेक समस्याओं का एक कारण किसी प्रतिस्पर्द्धी अथवा ईर्ष्यालु पड़ोसी या किसी निकटतम मित्र के द्वारा तांत्रिकों के माध्यम से तांत्रिक क्रिया सम्पन्न कराना, व्यक्ति के जीवन में ग्रहों का अनुकूल ना होना या किसी एक ग्रह द्वारा अत्यधिक पीडि़त होना। जिसके कारण से व्यक्ति का जीवन अवर्चनीय पीड़ा से युक्त हो जाता है जिनका निराकरण जीवन की प्रथम आवश्यकता है। क्योंकि इन समस्याओं के समाधान के पश्चात् ही चँहुमुखी प्रगति संभव है।
मंत्र का 7 माला जप करें।
जीवन को पूर्णरूप से सकारात्मक बनाने के लिये आवश्यक है, कि जीवन के नकारात्मक पक्षों पर प्रहार कर उन्हें अपने अनुकूल बनाना। अपनी संतान को सुसंस्कारों से युक्त कर ज्ञान, बुद्धि, बलशक्ति, वाक् चार्तुता और आज्ञा पालक युक्त करने में सहायक है साथ ही पूर्ण गृहस्थ सुख की प्राप्ति हेतु श्रावण मास में की गई साधना से तुरंत लाभ मिलता है। साथ ही नकारात्मक पक्ष से जुड़ा हों, जीवन में जहां एक ओर श्री साधनायें जैसी निर्माण की साधनायें करनी आवश्यक होती हैं, वहीं ऐसी साधनायें भी महत्व रखती है जिनसे जीवन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शत्रु उपस्थित न रह सकें। जबकि उनका पूर्ण रूप से दमन हों।
मंत्र का 16 माला जाप करें।
प्रत्येक सोमवार मंत्र जप करने के बाद सभी सामग्री को पूजा स्थान में स्थापित कर नित्य इनके सामने सुबह शाम अगरबत्ती और दीपक जलाकर ऊँ शाम्भ् शिवाय नमः मंत्र का एक माला जप अवश्य करें। साधना समाप्ति के पश्चात् सभी सोम शक्ति जीवट को किसी शिव मंदिर में अर्पित कर दें और अन्य सभी सामग्री को लाल कपड़े में बांधकर नदी अथवा तालाब में विसर्जित कर देना चाहिए।
इस राशि में साधना सामग्री के साथ-साथ प्रत्येक श्रावण सोमवार को फोटो दीक्षा प्रदान की जायेगी। जिससे कि गुरूत्व शक्ति के द्वारा आप शिव-शक्ति से युक्त होकर श्रेष्ठ सफल जीवन की प्राप्ति कर सकें। यदि किसी कारणवश आप केवल साधना सामग्री प्राप्त करना चाहते हैं तो मात्र 700/- की न्यौछावर में प्रदान की जायेगी।
श्रावण मास तो भगवान सदाशिव और भगवती गौरी का रसेश्वर मास है, जब शिव-शक्ति भूमि भ्रमण करते हुये अपने सभी भक्तों को आर्थिक, व्यापारिक और भौतिक सुख-सुविधाओं से पूर्ण कर देने के लिये आतुर रहते हैं।
इसी चैतन्य मास में शिव-गौरीमय शक्ति को पूर्णता के साथ आत्मसात करने हेतु वेद मंत्रों से चैतन्य किया गया शिवोहम् गौरी श्रावण शक्ति लॉकेट जिसे धारण कर आप भौतिक- आध्यात्मिक जीवन में नवीनता, ऊर्जा और चेतना के प्रवाह से घर के रोग, शोक और दरिद्रता, मलिन शक्तियों के प्रकोंपो का नाश और शिव-गौरी स्वरूप में लक्ष्मी के मूल तत्व को आत्मसात कर आर्थिक उच्चता की ओर अग्रसर हो सकेंगे। वही साधक जीवन में शक्ति सम्पन्न, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, और धन-धान्य तथा अष्टसिद्धि शक्तियों से युक्त होता है, जो अपने जीवन में शिव-शक्ति और लक्ष्मी की चेतना शक्ति को आत्मसात कर पाता है।
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