सौभाग्य के क्षण जीवन में बहुत कम बार आते हैं, और व्यक्ति इन महत्वपूर्ण क्षणों को पकड़ ले तो अपने जीवन की दिशा को बदल सकता है क्योंकि जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप दुर्भाग्य है, और जब तक यह दुर्भाग्य रहता है, व्यक्ति का जीवन बड़ा ही कष्टकारक बना रहता है, यह दुर्भाग्य मूल रूप से इन कारणों से बनता है, किसी के द्वारा तांत्रिक प्रयोग कर दिये जाने पर, ग्रहों के प्रतिकूल होने से, पितृ दोष की वजह से, पूर्व जन्म और इस जन्म के कर्मों के फलस्वरूप।
ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपने जीवन में उन्नति नहीं कर पाता, वह परिश्रम तो पूरा करता है, परन्तु उसे अपने जीवन में सुख नहीं मिलता, उसे निरन्तर आर्थिक हानि होती रहती है, न तो व्यापार में वृद्धि होती है, और न धन-संचय होता है, जीवन में रोग-शोक, बीमार और अशत्तफ़ की स्थिति बनी रहती है, साथ ही साथ उसे परिवार में भी किसी प्रकार का सुख नहीं मिलता, चारों तरफ से परेशानियां उसे घेरे रहती हैं, वह एक परेशानी को मिटाता है, तो दूसरी स्वतः उपस्थित हो जाती है, इसके अलावा उसे शत्रु-भय और राज्य-भय बराबर बना रहता है।
यह स्थिति स्त्रियों के लिए असहनीय होता है, दुर्भाग्य के कारण ही स्त्री को अपने पीहर में या ससुराल में सुख नहीं मिलता, पति दूसरी स्त्री में अनुरक्त हो जाता है, जिसकी वजह से उसे पत्नी के रूप में जो सुख मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाता, स्वास्थ्य बराबर कमजोर बना रहता है, और उसे नित्य नई व्याधियों और तनाव प्राप्त होते रहते हैं, यही एक कारण होता जब स्त्री विधवा जीवन व्यतीत करने को मजबूर होती है।
इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रख कर हमारे ऋषियों ने गृहस्थ सुख की वह विधि ढूंढ निकाली जिसकी वजह से दुर्भाग्य की काली छाया पुरूष या स्त्री के जीवन पर न पड़े, उसके सभी पाप और दोष साधना से समाप्त हो सकें, वह जीवन में पूर्ण अनुकूलता प्राप्त कर सके। मेरे जीवन का यह अनुभव है कि जो व्यक्ति पूरे वर्ष में एक बार भाग्योदय सिद्धि दिवस के दिव्य अवसर पर गृहस्थ योगिनी प्राप्ति साधना सम्पन्न कर लेता है, उसका पूरा वर्ष अपने आप में सुखदायक और सौभाग्यशाली बना रहता है, उसके सारे ऋण समाप्त हो जाते हैं, आश्चर्यजनक रूप से आर्थिक उन्नति होने लगती है, और वह पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर जीवन में निरन्तर उन्नति करता रहता है।
यह मेरे जीवन का अनुभव रहा है कि वास्तव में ही हमारे ऋषि-मुनि श्रेष्ठ विद्वान थे और उन्होंने जिस विधि को ढूंढ निकाला है, वह अपने आप में ही आश्चर्यजनक है, गृहस्थ योगिनी प्राप्ति साधना को सम्पन्न करते ही आश्चर्यजनक अनुभव होने लगते हैं, और वह सभी दृष्टियों से उन्नति करता हुआ पूर्ण सुखी होता है और सौभाग्य प्राप्त कर लेता है।
यह साधना वर्ष में केवल एक बार इसी दिन सम्पन्न किया जा सकता है और किसी कारणवश इस दिन नहीं कर सके तो किसी भी एकादशी को सम्पन्न कर सकते हैं। घर के मुखिया को यह साधना अवश्य सम्पन्न करना चाहिये जिससे कि उसके जीवन में सभी दृष्टियों से अनुकूलता प्राप्त हो सके, ज्यादा अच्छा यह होगा कि पति-पत्नी साथ में यह साधना सम्पन्न करे, जिससे उसका सुहाग अक्षुण्ण रह सके और उसे जीवन में सभी दृष्टियों से सुख और सौभाग्य प्राप्त हो सके, उसे अपने पति का, अपने पुत्र व पुत्रियों का सुख मिल सके, उसकी पुत्रियों के शीघ्र विवाह सम्पन्न हो सकें, और वह अपने जीवन में जो चाहे वह प्राप्त कर सके।
यह साधना अत्यन्त आसान है, और इसमें कोई जटिल विधि-विधान नहीं है, इसलिए कम पढ़ा-लिखा साधक भी इस साधना को सम्पन्न कर सकता है, इस साधना को घर के मुखिया और जो भी अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने की इच्छा रखता है, जो भी अपने जीवन में पूर्ण गृहस्थ योगी बनकर उन्नति करना चाहता है, जो निरन्तर आगे बढ़ते हुये पूर्ण सुख और सौभाग्य की इच्छा रखते हैं, उन्हें यह साधना अवश्य करना चाहिए, विद्यार्थियों के लिये तो यह साधना अत्यन्त महत्वपूर्ण सफलतादायक और सौभाग्यवर्धक है।
अतिश्रवा उपनिषद में बताया गया है, कि इस प्रकार की साधना सम्पन्न करने से सभी प्रकार की पूर्ण शान्ति प्राप्त होती है और मानसिक तनाव समाप्त हो जाता है, ऐसे व्यक्ति के सभी रोग दूर हो जाते हैं, धन, कीर्ति और आयु की वृद्धि होती है, तथा उसके महापाप भी पूर्ण रूप से नष्ट हो जाते हैं उसकी सारी आशाओं की पूर्ति होती है, चाहे उस पर कितना ही भीषण तांत्रिक प्रयोग किया हुआ हो, तो वह प्रयोग भी निश्चय ही समाप्त हो जाता है, यही नहीं अपितु उसके सारे मनोरथ और सारे उद्देश्य सिद्ध हो जाते हैं, उसे तीर्थों में जाने का पूर्ण फल मिल जाता है, भूत-प्रेत डाकनियों का भय नष्ट हो जाता है, तथा तेज एवं बल की वृद्धि होती है।
वास्तव में ही यह साधना अपने आप में महत्वपूर्ण है, यह भले ही सामान्य दिखाई दे, परन्तु इसका फल अपने आप में अचूक होता है, जिस प्रकार से छोटा सा अंकुश विशाल डीलडौल वाले हाथी को नियन्त्रण में कर लेता है, उसी प्रकार यह साधना सभी प्रकार के दुर्भाग्य को समाप्त कर सौभाग्य में परिवर्तित करने की क्षमता रखती है।
साधक इस दिन प्रातःकाल उठकर यह निश्चय करें कि मैं आज अपने समस्त दुर्भाग्य की निवृत्ति हेतु साधना सम्पन्न करूंगा, इसके लिए वह स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर ले, यदि स्त्री इस साधना को सम्पन्न करना चाहती है, तो वह प्रातःकाल उठकर अपने सिर धो ले और बाल खुले रखें।
इसके बाद साधक आसन पर पूर्व की ओर मुंह कर बैठ जाये, उसके लिए यह आवश्यक नहीं है, कि वह पीली धोती ही धारण करे, वह सफेद धोती भी पहिन सकता है, इसी प्रकार साधिका भी किसी प्रकार के वस्त्र धारण कर यह साधना सम्पन्न कर सकती है।
इसके बाद साधक सामने लकड़ी का बाजोट रख कर उस पर रेशमी वस्त्र बिछा दें, और उसके मध्य चावलों की ढे़री बना दें, फिर चावल की ढ़ेरी पर तांबे का, मिट्टी का या पीतल का छोटा सा कलश स्थापना करें, और इस कलश पर केसर से त्रिकोण बनावें, फिर इस कलश में जल डालें यदि घर में गंगाजल हो तो थोड़ा सा गंगाजल भी डालें, इसके बाद कलश में अक्षत, सुपारी और थोड़े से पुष्प डाल दें तथा कलश के मुंह पर पांच पीपल के या आम के पत्ते रख दें, यदि इस प्रकार के पत्ते न मिलें तो किसी प्रकार के पांच पत्ते रख कर उसके ऊपर एक चैतन्य लघु नारियल रख दें।
इसके बाद कलश पर अबीर गुलाल चढ़ा कर निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
इस प्रकार के मन्त्रेचारण करने के बाद सामने गुरू का चित्र स्थापित करें और गुरू का पूजन करें।
इसके बाद साधक सामने घी का दीपक, अगरबत्ती जलावें तथा सामने किसी पात्र में सौभाग्यवर्धक गृहस्थ सुख वृद्धि यंत्र व दुर्गति नाशक गुटिका को स्थापित कर दें, यह यंत्र व गुटिका अपने आप में अत्यन्त श्रेष्ठ व मंत्र सिद्ध होता है, और इस पर पूर्ण ज्ञानाभिषेक और पूर्णाभिषेक सम्पन्न कर प्राण प्रतिष्ठा युक्त बनाया जाता है, जिसकी वजह से यह यंत्र, मंत्र-सिद्ध और अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके बाद साधक व्याधि विनाशिनी माला से इस कलश के सामने निम्न मंत्र का 11 माला जप करें।
मंत्र जप सम्पन्न करने के बाद साधक कलश पर स्वास्तिक केसर से अंकित करें, यह अंकन किसी तिनके से या चांदी की श्लाका से किया जा सकता है।
इसके बाद साधक जो सामने पात्र में दुर्गति नाशिनी गुटिका रखी है, उस गुटिका पर ‘’ह्रीं’’ अक्षर केसर से अंकित करें, और उसकी संक्षिप्त पूजा सम्पन्न करें। ऐसा करने पर यह साधना सम्पन्न हो जाती है, शास्त्रों में वर्णित है कि साधक जिस दिन साधना सम्पन्न करें, उससे अगले एक महिने तक तो अवश्य ही यह गुटिका गले में पहने रहें, इसके बाद इस गुटिका को उतार कर जल में विसर्जित कर दें। यह साधना अपने आप में महत्वपूर्ण है, जो महा-चिनाचार सार तंत्र से अभिषेक युक्त और शक्ति संगम तंत्र के अनुसार प्रभाव युक्त बनाया हुआ होता है, जिसकी वजह से इसका प्रभाव तुरन्त ही प्राप्त होने लगता है। निश्चित रूप से यह साधना आपके जीवन की सभी व्याधियों, दुर्भाग्य को समाप्त कर उज्ज्वल भविष्य निर्माण करने में पूर्ण प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में धान-कीर्ति, सम्मान, प्रतिष्ठा से युक्त जीवन व्यतीत करना चाहता है। लेकिन दुर्भाग्य से सामान्य सुखों से युक्त जीवन में भी अचानक परेशानियों और कठिनाईयों का जमावड़ा शुरू हो जाता है। हर दिन एक नई समस्या से जीवन अस्त-व्यस्त होने लगता है। धन-संचय करना तो दूर जीवन यापन के लिये धनोपार्जन करना मुश्किल हो जाता है। ऐसी स्थिति में पारिवारिक कलह की क्रियाओं में वृद्धि होती है। यदि इसी को जीना कहते हैं तो फि़र ऐसे जीवन का तात्पर्य ही क्या जिस में गृहस्थ जीवन की भौतिक आवश्यकतायें और सुख-समृद्धि का अभाव रहे, इन न्यूनताओं को पूर्ण रूपेण समाप्त करने के लिये और जीवन को आनन्द सुख और सौभाग्य से युक्त करने के लिये श्रावण मास के शिव प्रदोष दिवस पर गृहस्थ योगिनी सुख-सौभाग्य वृद्धि दीक्षा प्राप्त करने से जीवन में प्रत्येक दृष्टि से सुस्थितियां निर्मित होना प्रारंभ होती है। और साथ ही इसमें निरंतरता बनी रहती है।
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