लक्ष्मी इस विराट् जगत् की महादेवी हैं, लक्ष्मी शब्द संस्कृत के शब्द लक्ष से बना है, अर्थात् लक्ष्मी इस जगत के लक्ष्य को प्रगट करती है, और यह लक्ष्य केवल भौतिक और आध्यात्मिक पूर्णता का भी स्वरूप है। उसी व्यक्ति को हम जीवन में पूर्ण रूप से पुरूष कह सकते हैं, जिसने अपने जीवन में भौतिकता के लक्ष्य को पूर्ण रूप से प्राप्त कर लिया है, और आध्यात्मिकता के लक्ष्य को भी पूर्ण रूप से आत्मसात कर लिया हो। लक्ष्मी को स्त्री रूप में परिभाषित किया गया है, क्योंकि शक्ति मूलरूप से स्त्री तत्व से युक्त होती है, और वह सुन्दरता तथा प्रेम से परिपूर्ण होती है। इसका तात्पर्य है कि जो लक्ष्मी को आराध्य मानकर साधना करता है, वह प्रेम, सुन्दरता से परिपूर्ण हो जाता है।
जीवन में धन अर्थात् अर्थ की प्राप्ति इस प्रकार से हो की उस धन को कमाने में भी आत्मिक आनंद प्राप्त हो और व्यय करने में भी प्रसन्नता की प्राप्ति हो, इसके साथ ही अर्थ लाभ अपने साथ सौन्दर्य, आकषर्ण और सम्मोहन को साथ में लेकर आये, क्योंकि जब तक जीवन में शक्ति का स्वरूप रति नहीं है, और व्यक्ति काम स्वरूप नहीं है, उस व्यक्ति के जीवन में धन भी व्यर्थ है, इसलिये धनदा रति भी कही गयी है। और सबसे बड़ी बात है कि इस साधना के देव कुबेर हैं और जहां कुबेर हैं, वहां रति हैं और उनका कामेश्वरी यक्षिणी रूपी धनदा है, तो जीवन में पूर्ण आनन्द की प्राप्ति होती है।
दीपावली महाकल्प नवरात्रि के साथ विशेष रूप से विजय दशमी के दिन से प्रारंभ होता है, और यह महाकल्प कार्तिक पूर्णिमा के साथ ही पूर्ण होता है, अर्थात् विजय दशमी के पश्चात् पांच दिन और पूरा कार्तिक मास साधनात्मक महाकल्प है, जिसका प्रारंभ विजय उत्सव के रूप में प्रारंभ होता है, और उसकी पूर्णता संन्यस्त भाव स्वरूप पूर्णिमा दिवस पर सम्पन्न होती है। अर्थात् इन पैंतीस दिनों में जीवन के चारों वर्गों से सम्बन्धित धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की साधनायें सम्पन्न की जा सकती है। और इन चैतन्य दिवसों में ही सर्वश्रेष्ठ स्वरूप में दीपावली पंच पर्व आता है, जो धनत्रयोदशी से प्रारंभ होकर यम द्वितीया के दिन पूर्ण होता है, और ये पांच दिवस साधनात्मक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को पड़ने वाले दिवस और रात्रि को ‘रूप चर्तुदशी’ तथा सौन्दर्य दिवस, अप्सरा दिवस, स्त्री शक्ति दिवस कहा जाता है, इसके पीछे भी महान आख्यान है, हमारे सारे उत्सव केवल मौज मस्ती के लिये नहीं बने है, उनके पीछे निश्चित सत्य और विशेष कारण है, उस कारण वह दिवस अपने आप में चैतन्य दिवस और रात्रि बन जाता है। जिनका साधनात्मक लाभ होता है। इस दिवस को नारकीय स्थितियों के निवृति का दिवस भी कहा जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिवस पर भगवान श्री कृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने नरकासुर का सिर काट उसका रक्त तिलक भगवान श्री कृष्ण को लगाया, इस महासंग्राम के बाद कृष्ण इस लोक में आये तो उनकी प्रियाओं ने कृष्ण को अच्छी तरह से स्नान इत्यादि करा कर, मलिन युद्ध रूपी विचारों, रक्त मैल इत्यादि साफ किया, भगवान कृष्ण को गंधलेप इत्यादि से सुगन्धित की और उनका षोड़श श्रृंगार किया और इसके पश्चात् स्वयं भी यह क्रिया कर षोड़श श्रृंगार कर अपने रूप को सौन्दर्य और सम्मोहन से युक्त बनाया।
यहां पर एक और विशेष बात पुराणों में लिखी है कि नरकासुर की माता भूदेवी ने कहा कि नरकासुर का मृत्यु दिवस शोक दिवस नहीं है, यह संसार की सभी स्त्रियों के लिये स्त्री शक्ति की महानता का दिवस है। इसी कारण नरक चर्तुदशी अथवा रूप चर्तुदशी को अपने घर को सुसज्जीत कर अपने भीतर और बाहर स्वच्छ कर प्रेम रस, सौन्दर्य रस, श्रृंगार रस को पूर्ण रूप से प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही यह अन्याय, पाप अर्थात नारकीय स्थिति पर विजय प्राप्त करने का दिवस है। सुन्दरता, शालीनता, कान्तिमय देह, कामशक्ति युक्त पौरूषता व पूर्ण श्रृंगार का दिवस भी है।
दीपावली पंच कल्प के मध्य पड़ने वाला यह दिवस सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, और कार्तिक अमावस्या को दीपावली पर्व सम्पन्न किया जाता है, सामान्य जन जीवन में जिसे लक्ष्मी पूजन का दिवस माना जाता है और अमावस्या कि रात्रि में दो स्थिर लग्न, वृषभ लग्न और सिंह लग्न में गणेश-लक्ष्मी का विशेष पूजन किया जाता है।
सामान्य रूप से दीपावली लक्ष्मी उत्सव के रूप में मनाया जाता है, और साथ ही यह भी मान्यता है कि धन और भौतिक उन्नति की अधिष्ठात्री देवी इस दिन अपने असंख्य रूपों में उन घरों में विचरण करती है, जो स्वच्छ, शुद्ध, प्रकाशवान और साधनात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत होते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि अस्वच्छता, अशुद्धि, मानसिक अपवित्रता, अधंकार होता है वहां लक्ष्मी नहीं आती है। यह अशुद्धता, अधंकार और अस्वछता बाहृा रूप से भी हो सकती है। और मानसिक रूप से भी हो सकती है।
दीपावली कल्प की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस दिन सूर्य और तुला राशि के द्वितीय भाग में प्रवेश करता है और तुला का स्वरूप इस प्रकार होता है कि इसके दोनों पलड़े बराबर रहते हैं। इस कारण इस दिन व्यक्ति अपने साल-भर के हिसाब-किताब को बराबर करता है, और आने वाले वर्ष में धन लाभ से युक्त होने का संकल्प लेता है। यही विशेष कारण है कि दीपावली का दिन अमावस्या के दिन होते हुये भी श्रेष्ठ माना गया है। वर्ष भर हमने जो भी कार्य किये हैं, लाभ-हानि, पाप-पुण्य, शुभ अशुभ, दुष्टता-परोपकार इन सब अच्छे-बुरे अध्यायो को जीवन की आंतरिक तराजू में तोल कर देख ले और यह संकल्प लें कि हमारे जीवन का वास्तविक मार्ग कौन सा है? बीते वर्ष में क्या दोष, गलतियां हुई हैं? कार्य में क्या-क्या कमिया रही हैं। इन सभी न्यूनताओं पर दीपावली के विशिष्ट मुहुर्त में साधनात्मक चेतना, ऊर्जा से युक्त अपनी ज्ञान, बुद्धि को जाग्रत कर उन कमजोरियों, कमियों, आर्थिक न्यूनताओं का निराकरण कर सकते हैं।
सद्गुरूदेव ने आज से 42 वर्ष पहले लक्ष्मी साधना पुस्तक पृष्ठ 84 में लिखा है कि आर्थिक सम्पन्नता भी अपने आप में पूर्ण तपस्या है, समग्र साधना है, मानव जीवन का सार पुरूषार्थ है, बिना परिश्रम प्रयत्न एवं पुरूषार्थ के लिये कोई भी वस्तु लाभ नहीं है, अतः जो व्यक्ति कठिनाईयों, संघर्षों एवं बाधाओं से संघर्ष कर अपने लक्ष्य की ओर साहस के साथ बढ़ता है वही सफल हो सकता है। आज जो चतुर्दिक थोड़ा बहुत धर्म का वातावरण है, उसका आधार धन ही है। बिना धन के न मंदिर बनाये जा सकते हैं, न मस्जिदो का निर्माण होता है, और न धर्म का प्रचार ही किया जा सकता है। कोई भी सांसारिक धर्म बिना धन के बिना पंगु है। यद्यपि धनोपार्जन के मूल में परिश्रम ही सफल हो सकता है। लक्ष्मी साधना, लक्ष्मी तंत्र, महालक्ष्मी मंत्रादि ही आर्थिक सम्पन्नता के कारक हैं। जो साधक इस क्षेत्र में प्रवेश कर योग्य गुरू के सान्निध्य में साधना, मंत्र जप, शक्तिपात दीक्षा ग्रहण करता है, वह निश्चय ही कुण्डलिनी जागरण की शक्ति से युक्त होता है। और धन का सृजन कर लक्ष्य प्राप्त में सफल होता है।
गुरूदेव कहते हैं कि जो सोता है, अर्थात् अपने जीवन में अक्रियाशील (श्रेष्ठ मुहूर्त को व्यर्थ के कार्यों में व्यतीत करना अथवा विशिष्ट साधनाओं में संलग्न ना होना) रहता है, उसका भाग्य भी सोता है, जो व्यक्ति ऐसे दिव्यतम अवसर पर विशेष साधनायें सम्पन्न करते हैं, जो अपने जीवन का स्वर्णिम निर्माण के लिये प्रयत्नशील रहते हैं। उनके जीवन में निश्चित रूप से श्री सौभाग्य लक्ष्मी का आगमन होता है। वे अपने पूर्व जन्म के दोषों को दूर कर संचित कर्मों से लक्ष्मी की वृद्धि करने में सफल होते हैं। क्रियमाण कर्म को पूर्ण रूप से जाग्रत कर इसी जीवन में भौतिकता से परिपूर्णता प्राप्त करते हैं। और इसके के लिये दीपावली महारात्रि श्रेष्ठ मुहूर्त है, जब गरीबी, याचना भरा दीन जीवन से निजात पाकर वैभवता, सम्मान, श्री और आनन्द से युक्त हुआ जा सकता है। इसीलिये दीपावली महासाधनात्मक पर्व जीवन की जागृती पूर्णमिंद पूर्णमदः का कल्प है। इसे व्यर्थ गंवाना घर में आये लक्ष्मी को वापस भेजना है।
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से वर्ष प्रतिपदा प्रारंभ होता है। इसी दिन से नववर्ष प्रारंभ होता है जिसे विक्रमी संवत् कहा जाता है। दीपावली की अमावस्या और लक्ष्मी साधना के साथ नववर्ष प्रारंभ करना इससे श्रेष्ठ और क्या हो सकता है। इस दिन गोवर्धन पूजा सम्पन्न किया जाता है। यह दिवस कृष्ण सिद्धि दिवस, विष्णु अवतार वामन सिद्धि दिवस इसके साथ ही यह गौ पूजन का दिवस भी है जो कि कामधेनु रूप में जगत माता मानी जाती है।
रूप चतुर्दशी, दीपावली महारात्रि और गोवर्धन पूजा के साथ ही जीवन में नूतनता प्राप्ति दिवस की चेतना को पूर्णता से आत्मसात करने पर जीवन की सभी अमंगल, अलक्ष्मी रूपी कालिमा से मुक्ति प्राप्त होती है। इसी हेतु रूप चर्तुदशी को अपने भीतर व बाहर की मलिनताओं पर षोड़श श्रृंगार रूपी सौन्दर्य, कान्ति, दिव्यता, ओज, तेज, काम शक्ति से आप्लावित होने, दीपावली के ज्योर्तिंमय पर्व पर अंधकार रूपी लक्ष्मी, गरीबी, अभाव का दमन कर जीवन को पूर्णता लक्ष्मी धन से प्रकाशित होने की ऊर्जा व गोवर्धन सिद्धि दिवस पर कामधेनु की भांति भौतिक जीवन की सभी रसों से सराबोर होने की क्रियात्मक चेतना शक्ति से युक्त होने के लिये पंच दिवसीय धन वर्षिणी अनंग श्रृंगार सौन्दर्य वृद्धि साधना, लक्ष्मी आबद्व कामाक्षी साधना और योगमय कृष्णत्व कामधेनु शक्ति साधना पैकेट पूज्य सद्गुरूदेव के द्वारा कामाक्षी धनदा लक्ष्मी, षोड़श सौन्दर्य, दुर्गा सप्तशती, श्री सूक्त कामधेनु कृष्णमय मंत्रों से अभिमंत्रित व चैतन्य किया गया है।
साथ ही निरन्तर धन आगमन की क्रिया होती रहे इस हेतु लक्ष्मी श्री लॉकेट भी प्रदान किया जायेगा। ऐसे दिव्यतम साधनाओं को सम्पन्न कर प्रत्येक साधक अपने जीवन की सभी आर्थिक,शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक कामनाओं को पूर्णता से प्राप्त करने में समर्थ हो सकेंगे। साथ ही प्रत्येक दृष्टि से आने वाला नूतन वर्ष श्रेष्ठता युक्त हो सकेगा। साधना पैकेट को समय से प्राप्त करने के लिये पूर्व में ही जोधपुर कार्यालय में बुक करायें जिससे आपके गोत्र व प्रकृति के अनुरूप साधना पैकेट तैयार कर भेजा जा सके और ऐसे दिव्यतम अवसर को जीवन में अक्षुण्ण बनायें। अतः प्रत्येक साधक को कार्यालय द्वारा पूर्व में ही सूचित किया जा रहा है कि वे समय से सविधि युक्त साधना पैकेट मंगाकर रख लें जिससे श्रेष्ठमय चैतन्य मुहूर्त का पूर्ण रूपेण लाभ प्राप्त कर सकें।
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