भौगोलिक रूप में पृथ्वी भी शिव की ज्योति स्वरूप ही है, जैसे सबसे छोटी रचना परमाणु Atom) है। वही स्वरूप हमारे शिवलिंग का है। जिसे हमारे ऋषियों ने हजारो वर्षो पूर्व ही खोज लिया था। विज्ञान के अनुरूप नाभि (Nucleus) के चारो ओर इलेक्ट्रान, प्रोटान चक्कर लगाते हैं, जो हमारे शिवलिंग का ही रूप है। मध्य में लिंग जो उर्जा का स्रोत है उसी से जीवन संचालित होता है।
भारत में बारह ज्योर्तिलिंग स्थापित है, इन सबका रंग कृष्णमय क्यों? शिवलिंग जिस प्रकार उर्जा का स्रोत है उसी प्रकार उर्जा को अपने अन्दर समाहित करने में समर्थ है। सोमनाथ, रामेश्वरम्, ओंकारेश्वरम् प्राचीन काल में भूकम्प व प्राकृतिक विपदाओं के केन्द्र रहें है। इस भू-गर्भ को शान्त करने के लिये, इसकी शक्ति को अपने अन्दर सम्माहित करने के लिये ऋषियों ने काले पत्थर से निर्मित शिवलिंग की स्थापना की और उच्चकोटि की साधनायें सम्पन्न कर वहां पर उपस्थित ऊर्जा को अपने अन्दर समावेश किया।
जिससे वहां पर उपस्थित ऊर्जा का उपयोग कर कृष्ण स्वरूप में साधक 64 कला पूर्ण शक्ति से युक्त हो सके। सद्गुरूदेव निखिल जन्मोत्सव के साथ ही 22 अप्रैल से प्रारम्भ सिंहस्थ महाकुम्भ में सद्गुरूदेव कैलाश जी ने सभी 12 ज्योर्तिलिंग की चेतनामय शक्तियों से अभिमन्त्रित विशिष्ट रूद्र शिव महाकाल शिवलिंग मन्त्रेचित चैतन्य किये हैं। सभी 12 ज्योर्तिलिंग से लाये गये जल और शिव भस्मी से रूद्री शिव पुराण अनुरूप 21 दिवस तक मन्त्रों उच्चारण कर पूर्ण रूप से प्राण प्रतिष्ठित रूद्र शिव महाकाल शिवलिंग चैतन्य शक्तियों का स्रोत है, जिसे अपने घर में स्थापित करने से जीवन की सभी नकारात्मक शक्तियां, पाप-ताप, दोष, बाधाओं, कठिनाईयों का शमन हो सकेगा और जीवन में शिवमय आनन्द सुख, हर्ष, प्रसन्नता, सौभाग्य, उन्नति, प्रगति, की वृद्धि होती ही है। ऐसे चेतनामय शिवलिंग पर श्रावण मास के प्रत्येक दिवस पर अभिषेक करने से साधक नवीन चेतना और गुरू की शक्ति को समाहित कर सकेंगे।
इस चेतनामय शिवलिंग को प्रत्येक साधक को अपने घर में अवश्य स्थापित करना चाहिये, जिससे वे शिव-शक्तिमय होकर अक्षय धन लक्ष्मी की पूर्णता से गृहस्थ जीवन के सभी सुखों का भोग कर सकेंगे। साथ ही शिव-परिवारमय चेतना से परिपूर्ण होंगे।
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