मुनि ने कहा- राजन्! महामाया की विचित्र लीला के द्वारा समस्त प्राणि ममता और मोह के ग्रस्त में पड़े हुये है-
अर्थात् – जिसके द्वारा सम्पूर्ण जगत् मोहित हो रहा है, वह भगवान् विष्णु की महामाया है। वह महामाया देवी भगवती ज्ञानियों के चित्त को भी बलपूर्वक आकर्षण कर मोह में डाल देती हैं। उसी के द्वारा यह सम्पूर्ण चराचर जगत् रचा गया है। वह जिस पर प्रसन्न होती है उसे मुक्ति प्रदान करती है और वही संसार के बन्धन का हेतु है। मुक्ति की हेतु भूत सनातन परा विद्या यही है।
राजा ने पूछा महाराज जिसका आपने वर्णन किया वह महामाया देवी कौन हैं और कैसे उत्पन्न हुयी है? उसके गुण, कर्म, प्रभाव और स्वरूप कैसे हैं?
ऋषि कहते हैं, वह नित्या है, समस्त जगत उसकी मूर्ति है, उसके द्वारा यह चराचर जगत व्याप्त है। सांसारिक मनुष्यों को देवमय महामाया शक्ति स्वरूप में निर्मित करने के लिये वह अवतार धारण किये हुये हैं।
संसार में किसी भी काम में हाथ डालने से पहले अपनी शक्ति व बुद्धि का आकलन कर लेना चाहिये तब ही हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं। कमजोरों के लिये संसार में कहीं भी स्थान नहीं है। हमें अपने पूरी शक्तियों का ज्ञान नहीं है, यह ज्ञान हमें सद्गुरु ही करा सकते हैं।
भगवती महामाया का स्वरूप तीन रूपों में व्यक्त किया गया है- महाकाली, महालक्ष्मी व महा सरस्वती प्रजापति ब्रह्मा जी द्वारा योग माया की स्तुति करने पर देव कार्य सिद्ध करने के लिये उस सच्चिदानन्द स्वरूपिणी महामाया ने महाकाली का रूप धारण किया जिसका स्वरूप व ध्यान इस प्रकार है-
खड्ग, चक्र, गदा, धनुष, बाण, परिघ, शूल, भुशुण्डी, कपाल और शंख को धारण करने वाली, सम्पूर्ण आभूषणों से सुसज्जित, नीलमणि के समान कान्ति युक्त, दस मुख, दस पादवाली महाकाली का मैं ध्यान करता हूं, जिसकी स्तुति विष्णु भगवान् की योग निद्रा स्थिति में ब्रह्मा जी ने की थी।
एक बार देवता और दानवों में अति भयंकर युद्ध हुआ जिसमें सभी असुर मारे गये और देवताओं ने महामाया की विविध प्रकार से स्तुति की जिससे महामाया ने संहार हारिणी का रूप धारण किया जिसका स्वरूप एवं ध्यान इस प्रकार है-
स्वहस्त कमल में अक्षमाला, परशु, गदा, बाण, वज्र, कमल, धनुष, कुण्डिका, शक्ति, खड्ग, चर्म, शंख, घण्टा, सुधा पात्र, शूल, पाश और सुदर्शनचक्र, कमलस्थित, महिषासुर मर्दिनी संहार हारिणी का हम ध्यान करते हैं।
शुंभ और निशुंभ ने इन्द्रादि देवताओं के अधिकार छीन लिये तथा वे स्वयं ही यज्ञभोक्ता बन बैठे, तब देवताओं ने अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिये हिमालय पर भगवती महामाया की अनेक प्रकार से स्तुति की। उस समय पतित पावनीय महामाया पार्वती के शरीर से सरस्वती का आविर्भाव हुआ जिसका स्वरूप और ध्यान इस प्रकार है-
स्वहस्त कमल में घण्टा, त्रिशूल, हल, शंख, मुसल, चक्र, धनुष और बाण को धारण करने वाली, गौरी देह से उत्पन्न, त्रिनेत्र, मेधा स्थित चन्द्रमा के समान कान्ति वाली, संसार की आधार भूता, पालन हारिणी शुम्भादि विष्णु लक्ष्मी स्वर्ण रूपिणी महासरस्वती को हम नमस्कार करते हैं।
हे देवि! हे प्रपन्नार्तिहरे!! हे शिवे!!! तुम वाणी, मन, बुद्धि, शक्ति, मेद्या लक्ष्मी स्वरूप में अगोचर हो, इस कारण इस संसार में ऐसा कोई नहीं है जो शब्द द्वारा तुम्हारी स्तुति कर सकता हो।
आधुनिक संस्कृति का नववर्ष आ रहा है और नववर्ष को आनंद एवं उल्लास के साथ सम्पन्न किया जाता है लेकिन यह विचार करने की आवश्यकता है कि क्या बीता हुआ वर्ष आनन्द पूर्वक गया था या नहीं? यदि बीते वर्ष में कुछ कमियां रह गयी हैं, तो इसका क्या कारण है? इन कमियों पर विचार कर, इन गलतियों को कैसे सुधारा जाये? इसी हेतु-
दुर्गति नाशक महामाया की तपोभूमि पर पूजन पूर्ण जीवन्त जाग्रत दर्शन, प्रवचन, साधना, दीक्षा, हवन, अकंन, साक्षीभूत अभिषेक सद्गुरुदेव कैलाश श्रीमाली जी व वन्दनीय माता जी के सानिधय में 30-31 दिसम्बर व 01 जनवरी 2017 को रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ शत्रुहन्ता महामाया शक्ति साधना महोत्सव त्रिवेणी भवन, व्यापार विहार, बिलासपुर में सम्पन्न होगा। महामाया की तपस्यांश चेतना से आने वाले पौषीय मास व नूतन वर्ष के प्रथम क्षण से ही जीवन में आनन्द, हर्ष, उल्लास, चेतना रूपी शक्ति सम्पन्नता से जीवन सुमंगलमय युक्त हो सकेगा । ऐसी ही दिव्यतम क्रियायें जीवन्त जाग्रत स्वरूप में सिद्धाश्रम शक्तियों के माध्यम से 31 दिसम्बर की मधय रात्रि के बाद जिस क्षण से नूतन वर्ष का अभ्युदय होगा उसी समय सद्गुरु नारायण स्वरूप में सिद्धाश्रम से प्रत्येक साधक को शक्तिपात चेतना पुंज से आत्मसात करेंगे।
साथ ही भौतिक कामनाओं की पूर्णता, बल, बुद्धि, अक्षय लक्ष्मी, पूर्ण दीर्घायुमय सौभाग्य शक्ति, सम्पन्नता, आयु वृद्धि, धन वैभव और सद्गुरुदेवमय शिव स्वरूप तेजपुंज चेतनाओं से युक्त हो सकेंगे। नूतन वर्ष का प्रारम्भ शिव-गौरी स्वरूप में जाग्रत होने से निश्चिन्त रूप से जीवन कुण्डलिनी जागरण और सर्व सम्मोहन, आकर्षण व वशीकरण की चेतना और पूर्णता आती ही है, जिससे जीवन उन्नति की ओर गतिशील हो सकेगा । ज्ञानी साधक के लिये नूतन वर्ष का प्रथम दिवस स्वरूप में सद्गुरु सानिध्यता, प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ सुन्दर सुअवसर है। आपके आने से नारायण स्वरूप में सद्गुरु की कृपा आपको अवश्य प्राप्त होगी ही ।
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