अक्षत, कुंकुम, चन्दन, पुष्प, धूप, दीपक, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर अगरबत्ती नैवेद्य, फल आदि प्रयोग सामग्री।
मंत्र सिद्ध प्राण-प्रतिष्ठित नवदुर्गा यंत्र, नुवदुर्गा माला, नवशक्ति बीज
इस पूजन के लिये आप प्रातः स्नान आदि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर ब्रह्म मुहूर्त में पीला या सफेद ऊन का आसन बिछा कर बैठ जायें। इसके बाद अपने सामने छोटी चौकी (बाजोट) पर लाल वस्त्र बिछाकर गुरु चित्र स्थापित करें। पूजन की सभी सामग्री अपने सामने रखें।
पहले सभी साधना सामग्री को दोनों हाथों में लेकर पहले प्राण प्रतिष्ठा करें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
ऊँ आं ह्रीं क्रों यं रं वं शं षं सं हं लं क्षं हं सः सोऽहम् अस्याः श्री दुर्गा यंत्रस्य प्राणा इह प्राणाः
ऊँ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं हं लं क्षं हं सः सोहं अस्याः श्री दुर्गा यंत्रस्य जीव इह स्थितः।
ऊँ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं हं सः सोहं अस्यः श्री दुर्गा यंत्रस्य सर्वेन्द्रियाणि वाघ्मनस्त्वक्चक्षुः श्रोत्र जिह्नाघ्राणापाणि पाद पायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।
बाजोट पर किसी पात्र में कुंकुम से स्वस्तिक बना कर यंत्र को स्थापित करें। यंत्र के दायीं ओर नवशक्ति बीज को स्थापित करें और यंत्र के साथ इनका पूजन करें। धूप और दीप जलाकर साधक अपने दाहिनी ओर रख दें। पूजन हेतु संकल्प लें और एक-एक कर नवदुर्गाओं का आह्वान करें और यंत्र पर निम्न सन्दर्भ का उच्चारण करते हुये अक्षत चढाते जायें –
ऊँ भूर्भुवः स्वः शैलपुत्रि। इहागच्छ इहतिष्ठ, शैलपुत्र्यै नमः शैलपुत्रीममावाहयामि स्थापयामि नमः।
ऊँ जगत्पूज्ये जगद्वन्दे सर्वशक्तिस्वरूपिणि। पूजां गृहाण कौमारि! जगन्मातर्नमोस्तुते।।
ऊँ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मचारिणि! इहागच्छ इहतिष्ठब्रह्मचारिण्यै नमः। ब्रह्मचारिणी मावाहयामि स्थापयामि नमः।
ऊँ त्रिपुरां त्रिगुणाधारां मार्गज्ञानस्वरूपिणीम्। त्रैलोक्यवंदितां देवीं त्रिमूर्ति पूजयाम्यहम्।।
ऊँ भूर्भुवः स्वः चन्द्रघंटे इहागच्छ इहतिष्ठ चन्द्रघंटायै नमः। चन्द्रघंटामावाहयामि स्थापयामि नमः।।
ऊँ कालिकां तु कलातीतां कल्याणहृदयां शिवाम्, कल्याणजननीं नित्यां कल्याणीं पूजयाम्यहम्।।
ऊँ भूर्भुवः स्वः कूष्माण्डेइहागच्छ इहतिष्ठ कूष्माण्डायै नमः। कूष्माण्डामावाहयामि स्थापयामि नमः।।
ऊँ अणिमादिगुणोदारां मकराकारचक्षुषाम्, अनन्त शक्ति मेधां तां कामाक्षीं पूजयाम्यहम्।।
ऊँ भूर्भुवः स्वः स्कन्दमाता! इहागच्छ इहतिष्ठ स्कन्दमात्र्यै नमः। स्कन्द मातारमावाहयामि स्थापयामि नमः।।
चण्डावीरां चण्डगात्रं चण्डमुण्ड प्रभिञ्जनीम्, तां नमामि च देवेशीं चण्डिकां पूजयाम्यहम्।।
ऊँ भूर्भुवः स्वः कात्यायनि! इहागच्छ इहतिष्ठ कात्यायन्यै नमः। कात्यायनीमावाहयामि स्थापयामि नमः।।
ऊँ सुखानन्दकरीं शान्तां सर्व देवैर्नमस्कृताम, सर्वभूतात्मिकां देवीं शाम्भवीं पूजयाम्यहम्।।
ऊँ भूर्भुवः स्वः कालरात्रि! इहागच्छ इहतिष्ठ कालरा=यै नमः। कालरात्रीमावाहयामि स्थापयामि नमः।।
चण्डवीरां चण्डमायां रक्त बीज प्रभिञ्जनीम्, तां नमामि च देवेशीं गायत्रीं पूजयाम्यहम्।।
ऊँ भूर्भुवः स्वः महागौरि! इहागच्छ इहतिष्ठ महागौर्ये नमः। महागौरीमावाहयामि स्थापयामि नमः।।
ऊँ सुन्दरीं स्वर्णवर्णो सुख सौभाग्यदायिनीम्, सन्तोष जननीं देवीं सुभद्रां पूजयाम्यहम्।।
ऊँ भूर्भुवः स्वः सिद्धिदे! इहागच्छ इहतिष्ठ सिद्धिदायै नमः। सिद्धिदामावाहयामि स्थापयामि नमः।।
ऊँ दुर्गमे दुस्तरे कार्ये जयदुर्गे विनाशिनि! पूजयामि सदा भक्तया दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम्।
दोनों हाथ जोड़ कर समस्त समन्वित भगवती दुर्गा का ध्यान करें-
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः, स्वस्थैः स्मृतामतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रय दुःख भय हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार करणाय सदार्द्रचित्ता।।
निम्न सन्दर्भ का उच्चारण करते हुये आसन के प्रतीक रूप में एक पुष्प यंत्र पर चढावें-
अनेक रत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्,
कार्तस्वरमयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।
गंगादि सर्व तीर्थेभ्यो मया प्रार्थनयाह्रितम्,
तोयमेतत्सुखं स्पर्शं पाद्यार्थ प्रतिगृह्यताम्।
हस्त प्रक्षालन हेतु दो आचमनी जल अर्पित करें-
निधीनां सर्व रत्नानां त्वमनर्घ्यगुणाह्रितम्,
सिंहोपरिस्थिते देवि! गृहाणार्घ्यंनमोऽस्तुते।
निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुये मुख शुद्धि के लिये तीन आचमनी जल यंत्र पर चढायें-
कर्पूरेण सुगंधेन सुरभि स्वादु शीतलम्
तोयमाचमनीयार्थं देवि! त्वं प्रतिगृह्यताम्।
यंत्र को जल से स्नान करावें-
मंदाकिन्याः समानीतैर्हेमां भोरूह वासितैः,
स्नानं कुरूष्व देवेशि! सलिलैश्च सुगन्धिभिः।
इसके बाद दूध, दही, शहद व शक्कर इन पांचों वस्तुओं से अलग-अलग स्नान करावें और अन्त में पांचों को एक साथ मिलाकर पंचामृत स्नान करावें।
निम्न मंत्र बोलते हुये पंचामृत से स्नान करावें-
पयोदधि घृतं चैव मधु च शर्करान्वितम्,
पंचामृतं मया दत्तं! स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।
इसके बाद निम्न मंत्र बोलते हुये शुद्ध जल से स्नान करावें-
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति,
नर्मदे सिन्धु कावेरि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।
स्नान के बाद यंत्र को स्वच्छ वस्त्र से पोंछ कर किसी दूसरे पात्र में कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस परं यंत्र को स्थापित करें।
पट्टकूलयुगं देवि! कंचुकेन समन्वितम्,
परिधेहि कृपां कृत्वा दुर्गे! दुर्गतिनाशिनी।।
चन्दन अथवा कुंकुम से यंत्र पर तिलक करें-
श्री खण्डचन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्,
विलेपनं च देवेशि! चन्दनं प्रतिगृह्यताम्।
यंत्र पर निम्न मंत्र बोलते हुये अक्षत चढावें-
अक्षतान्निर्मलान् शुद्धान् मुक्तामणिसमन्वितान्,
गृहाणेमान्महादेवि! देहि मे निर्मलां धियम्।
सौभाग्य के प्रतीक स्वरूप हल्दी, गुलाल, सिन्दूर और दूब चढावें। इसके बाद पुष्प माला चढायें।
पुष्प माला अथवा खुले पुष्प यंत्र पर अर्पित करें-
शरत्काले समुद्भूतां निशुम्भासुर कर्दिनि।
पुष्पमालां वरां देवि! गृहाण सुरपूजिते!
बायें हाथ में कुंकुम व अक्षत लेकर यंत्र पर चढाते जायें-
ऊँ दुर्गायै नमः पादौ पूजयामि नमः।
ऊँ महाकाल्यै नमः गुल्फौ पूजयामि नमः।
ऊँ मंगलायै नमः जानुद्वयं पूजयामि नमः।
ऊँ भद्रकाल्यै नमः कटिं पूजयामि नमः।
ऊँ कमलवासिन्यै नमः नाभिं पूजयामि नमः।
ऊँ शिवायै नमः उदरं पूजयामि नमः।
ऊँ क्षमायै नमः हृदयं पूजयामि नमः।
ऊँ कौमार्यै नमः स्तनौ पूजयामि नमः।
ऊँ उमायै नमः हस्तौ पूजयामि नमः।
ऊँ महागौर्यै नमः दक्षिण बाहुं पूजयामि नमः।
ऊँ सुर पूजितायै नमः वाम बाहुं पूजयामि नमः।
ऊँ रमायै नमः स्कन्धौ पूजयामि नमः।
ऊँ महिषमर्दिन्यै नमः नेत्रे पूजयामि नमः।
ऊँ सिंहवाहिन्यै नमः मुखं पूजयामि नमः।
ऊँ माहेश्वर्यै नमः शिरः पूजयामि नमः।
ऊँ कात्यायन्यै नमः सर्वांड्ग पूजयामि नमः।
भगवती को दीपक दिखाकर निम्न सन्दर्भ बोलें –
घृतवर्ति समायुक्तं महातेजो महोज्वलम्,
दीपं दास्यामि देवेशि सुप्रीता भव सर्वदा।
दूध से बनी मिठाई को भोग लगावें-
अन्नं चतुर्विधं स्वादु रसै षड्भिः समन्वितम्,
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्तिं में ह्यचलां कुरू।
किसी थाली में फल सजाकर भगवती को अर्पित करें।
द्राक्षा स्वर्जुर कदली पनसाम्र कपित्थकम्,
नारिकेलेक्षु जंवादि फलानि प्रतिगृह्यताम्।
लौंग इलायची सुपारी युक्त सुगंधित पान चढायें-
एला लवड्गं कस्तूरी कर्पूरैः पुष्पवासितां,
वीटिकां मुखवासर्थमर्पयामि सुरेश्वरि।
भगवती को सम्मान हेतु द्रव्य अर्पित करें –
पूजा फल समृध्यर्थं तवाग्रे स्वर्णमीश्वरि,
स्थापिता तेन मे प्रीता पूर्णा कुरू मनोरथान्,
नवदुर्गा माला से निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप प्रतिदिन नवरात्रि पर्यन्त सम्पन्न करें-
मंत्र के बाद नौ बत्ती के दीपक में घृत का प्रयोग कर आरती सम्पन्न करें।
दोनों हाथों में कुछ पुष्प लेकर यंत्र पर अर्पित करें –
नाना सुगन्ध पुष्पाणि तथा कालोद्भवानि च
पुष्पांजलि र्मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि।
नवमी को साधना समाप्त कर आरती आदि कर प्रसाद वितरित करें। यदि सम्भव हो, तो किसी छोटी कन्या को भोजन करावें। साधना के बाद यंत्र, माला को विसर्जित करें। नौ शक्ति बीज को तिजोरी अथवा जहां अन्न का भण्डारण है, उस स्थान में स्थापित करें।
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