श्यालाः सम्बन्धिनो वापि सखायश्चपि भामिनी ।
प्रिया वृक्षाः पक्षिणश्च तिर्यग्योनिगता अपि ।।132।।
सुन्दरि! जो कोई माता के कुल में उत्पन्न हुए हों, जो पिता के वंश में उत्पन्न हुए हों, साले हो, सम्बन्धी हों, मित्र हों, प्रिय वृक्ष, पक्षी और पशु हों, उन्हें भी वहाँ पिण्ड चढ़ाने से वे परम स्थान अर्थात् विष्णु के परम पद को प्राप्त कर लेते हैं।
गच्छन्ति परमं स्थानं दद्विष्णोः परमं पद्म।
यानुद्दिश्य च सलिलं पिण्डदानं तथैव च ।।133।।
जिनको उद्दश्य करके वहाँ जल तथा पिण्ड दिये जाते हैं, वे स्मरण से भी विष्णुलोक को चले जाते हैं।
कृतं ते विष्णुलोकाय गच्छन्ति स्मरणादपि ।
नित्यं जल्पन्ति पितरो मद्वंशे कश्चिदुत्तमः ।।134।।
पितर लोग नित्य कहा करते हैं कि मेरे वंश का कोई उत्तम व्यक्ति बदरीविशाल जायेगा तो हमें तार देगा।
गमिष्यति विशालायां तारितास्तेन वै वयम ।
माहात्म्यं केन शक्येत वत्तफ़ं वर्षशतैरपि ।।135।।
सैकड़ों वर्षों में भी वहाँ का माहात्म्य कौन कह सकता है।
यत्र गंगा महाभागा बदरीनाथशोभिता ।
नृसिंहश्चापि गंगायां शिलारूपी महामते ।।136।।
महाबुद्धिमती जहाँ महाभाग गंगा बदरीश से शोभित है और शिलारूपी नृसिंह भी गंगा मे विद्यमान हैं।
तत्र नारायणं कुण्डं भुक्तिमुक्तिप्रदायकम् ।
इदं परमकं स्थानं श्रीविष्णुः परमेश्वरः ।।137।।
वहाँ नारायण कुण्ड भुक्तिमुक्तिप्रदायक है। इस श्रेष्ठ स्थान को परमेश्वर श्री विष्णु चारों युगों में नहीं छोड़ते हैं।
चतुर्युगे न त्यजति सत्यं सत्यं न संशयः ।
पश्चिमे क्रोशखण्डार्द्धे बदरीनाथधामतः ।।138।।
यह बिलकुल सत्य है, इसमें कोई सन्देह नहीं है। बदरीधाम से आधेकोस पश्चिम में समस्त सौन्दर्यदायक उर्वशीकुण्ड प्रसिद्ध है।
उर्वशीकुण्डमाख्यातं सर्वसौन्दर्यदायकम् ।
पुरा पुरूरवा यत्र रेमे वत्सरपञ्चकम् ।।139।।
समस्त सौन्दर्यदायक उर्वशीकुण्ड, जहाँ पूर्वकाल में पुरूरवा ने पाँच वर्षो तक उर्वशी के साथ रमण किया था और सुन्दरि! उसने पुत्रों को उत्पन्न किया था।
उर्वश्या सह वामाक्षि जनयामास वै सुतान् ।
अत्र यः पञ्चरात्रं वै स्नाति भक्तिसमन्वितः ।।140।।
उस कुण्ड में जो पाँच रात भक्तिपूर्वक स्नान करता है, वह कन्दर्प के समान रूपवान होता है।
कन्दर्प इव रूपाढयो जायते नात्र संशयः ।
तिस्रः कोटयोर्द्धसंयुत्तस्तीर्थान्यत्रश्रमे प्रिये ।।141।।
इसमें सन्देह नहीं। प्रिये! इस आश्रम में साढ़े तीन करोड़ तीर्थ हैं।
बद्रीनाथ धाम क्षेत्र में गणेश गुफा आज भी उतनी ही चैतन्य तथा गणेश जी के रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ दायक गुणों से आलौकित है जितनी कि महाभारत महाकाव्य की रचना करने के समय थी। इस गुफा में भगवान वेद व्यास जी ने जब महाभारत की रचना आरम्भ की तो उन्होंने सर्व प्रथम गणेश जी का आवाहन कर उन्हें प्रसन्न करके महाभारत को लिखने के लिये तैयार कर लिया कि यह महाकाव्य आप स्वयं अपने हाथों से लिखें।
तब गणेश जी ने कहा कि मैं महाभारत लिख तो दूंगा लेकिन आपको कथा निरन्तर-निरन्तर बोलते रहना होगा। यदि एक बार भी मेरी लेखनी रूक गई तो दोबारा उस महाकाव्य पर नहीं चलेगी। तब वेद व्यास जी ने युक्ति पूर्वक उनसे विनय पूर्वक कहा कि भगवन्! ऐसा ही होगा लेकिन आप बिना सोचे समझे और बिना मुझसे सलाह किये तुम कुछ भी नहीं लिखोगे। इस प्रकार गणेश जी द्वारा महाभारत महाकाव्य की रचना इस गुफा में बैठ कर ही करनी पडी। यह गुफा पूर्ववत आज भी उनकी ज्ञान रश्मियों से आपूरित है जहां साधक आज भी रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ आदि की साधना प्रारम्भ करने से पहले यहां दर्शन लाभ कर सिद्धि में सफलता पाने का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। तथा गणेश जी से तीव्र बुद्धि तथा मंगलदायक प्रभावों को प्राप्त करने के लिये सद्गुरुदेव कैलाश जी द्वारा साधनात्मक क्रियायें साधकों शिष्यों को कराई जायेंगी।
यह गुफा अलकनन्दा तथा सरस्वती नदी के संगम तट पर स्थित है और बद्रीनाथ धाम से कुछ ही दूरी पर है। इसी गुफा क्षेत्र के पास में व्यास गुफा भी है जहां पर भगवान वेद व्यास जी ने बैठ कर सभी पुराणों की रचना की थी। इस गुफा को बाहर से देख कर ही ऐसा प्रतीत होता है कि मानों अनेकों ग्रन्थों को एक दूसरे के ऊपर तह लगा कर रखा गया हों।
इसी पर्वत पर नर एवं नारायण ऋषि की तपस्या से भयभीत होकर इन्द्र ने उनकी तपस्या को भंग करने हेतु स्वर्ग लोक की अप्सराओं को भेजा था। लेकिन नारायण ऋषि ने अप्सराओं की कोई भी भूल न मानकर यह माना की यह तो इन्द्र के आदेश पर यहां पर उपस्थित हुई है अतः उन्होने स्वर्ग लोक की अप्सराओं से भी अत्यंत सुंदर, एवं सर्व गुण सम्पन्न उर्वशी का अपनी जांघ पर हाथ मारकर प्रकटीकरण किया।
उनके जांघ (उर्व) से अप्सरा का प्रकट होने के कारण उसका नाम उर्वशी रखा गया है। इस अप्सरा के गुण स्वर्ग लोक की अप्सराओं को भी मात देते थे स्वर्ग लोक में उर्वशी के समान अन्य दूसरी अप्सरा न थी। उर्वशी के सभी लाभ, गुण साधना के द्वारा, दीक्षा के द्वारा और मंत्रों के द्वारा इस पर्वत पर अतिशीघ्र लिये जा सकते है। यहां पर बामणि गांव में उर्वशी का मंदिर भी है।
अलकनन्दा नदी को विष्णु पदी इसलिये कहा गया है के यह नदी बद्रीनाथ धाम के चरणों से हो कर निकलती है तथा कुबेर की नगरी अलकापुरी भी इसके दोनों अंचलों पर स्थित है इस नदी में अनेक-अनेक देवी देवताओं का निवास सूक्ष्म रूप में विराजमान है। इस धाम की चैतन्यता इसके चारों ओर के क्षेत्र फल में ऋषियों-मुनियों के तपस्या स्वरूप और भी अधिक बढ़ गई है यहां के कण-कण एवं पत्थरों आदि में भी देवताओं का निवास है। अलकनन्दा का सुमेरू पर्वत तथा अलकापुरी से अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है जिसके कारण कुबेर की कृपा भी यहां आने पर साधक को प्राप्त होती है तथा साधना मंत्रों से कुबेर की तरह धनवान बना जा सकता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में सुमेरू पर्वत तथा कुबेर को अपनी विभूति माना है, जिसका पूर्ण भौतिक तथा आध्यात्मिक लाभ इसलिये भी अनुभव होते है कि यह यात्रा सिद्धाश्रम दिवस पर की गई यात्रा होगी। इस दिवस पर सिद्धाश्रम की दिव्य आत्मायें इस क्षेत्र में स्वयं प्रति दिन बद्रीनाथ धाम में सिद्धाश्रम से आती जाती है तथा सद्गुरुदेव स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी की भी यह तप स्थली रही है, उनकी अलौकिक शक्तियां तथा सिद्धियां अपने शिष्यों एवं साधकों को इतने निकट एवं साधनात्मक क्रियाओं में लगे रहने के कारण उन पर अपना वरदहस्त तथा सफलताओं का आशीर्वाद देते है। स्वयं कैलाश चन्द्र श्रीमाली जी ने यहां स्थित अनेक गुफाओं तथा शिलाओं पर साधना कर पूर्णता प्राप्त की है तथा सिद्धाश्रम से उनका सीधा सम्बन्ध होने के कारण सिद्धाश्रम की सभी शक्तियों की दृष्टि भी इस यात्रा पर है। और वह भी साधकों एवं शिष्यों को सफलता देने के लिये आतुर है।
सर्व प्रथम पंजीकृत साधकों के लिये 17 मई को हरिद्वार में पहुंचने के बाद ठहरने, विश्राम, भोजन की व्यवस्था स्वामी नारायण मंदिर, निकट सप्तऋषि आश्रम, पावन धाम, भूपतवाला, हरिद्वार में की गयी है।
इस यात्रा का प्रबन्ध शिविर आयोजन से बहुत पहले से व्यवस्थित करना होता है। इस स्वरूप में साधकों के ठहरने, भोजन, आने-जाने के लिये बसों की व्यवस्था, टेंट, होटल, गरम बिस्तर आदि अनेक-अनेक तरह की सामग्री हरिद्वार से ही संभव हो पाती है, अतः जो भी साधक-शिष्य सद्गुरुदेव नारायण का दिव्यपात प्राप्त करना चाहें और अपने जीवन को सर्व भौतिक सुखमय बनाने के इच्छुक हों वे ही पंजीकरण करायें। इस हेतु अपना व अपने पिता का नाम जन्म तारीख, जन्म स्थान अवश्य लिखे जिससे उसकी गणना कर पूर्ण व्यक्तिगत रूप से चैतन्य मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त साधनात्मक सामग्री निर्मित हो सकेगी ।
सरकारी नियमानुसार अपना परिचय पत्र और उसकी दो फ़ोटो कापी अवश्य साथ रखें ।
सर्वप्रथम यह ध्यान रखें कि आप कितने भी श्रेष्ठ आयोजक, कार्यकर्ता या समर्पित शिष्य रहें हों परन्तु ऐसे दिव्यतम स्थान पर आप केवल साधक ही हैं, अतः प्रत्येक का पंजीकरण अनिवार्य है, धार्मिक व साधनात्मक यात्रा हेतु परिवार के सभी सदस्यों के साथ पंजीकरण कराने से सांसारिक सुखों को पूर्ण रूपेण समवेत स्वरूप में प्राप्त कर सकेंगे।
न्यून मानसिकता, ओछी सोच व सदैव अनिर्णय के भाव से ग्रसित शिष्य नहीं आये। जिस साधक में सजगता, चेतना, ठोस निर्णय लेने की क्षमता होगी वे ही शिष्य अपने आपको अहम् ब्रह्मस्मि युक्त करने हेतु पंजीकरण करायेंगे।
वैशाख मास की अक्षय एकादशी के दिव्यतम अवसर पर जीवन अमृतमय प्राप्ति साधना व कर्ण पिशाचिनी शत्रुहन्ता दीक्षा तथा सिद्धाश्रम शक्ति दिवस पर वैभव धन लक्ष्मी साधना, सहस्त्र चक्र कुण्डलिनी जागरण दीक्षा, दिव्यतम पवित्र अलकनन्दा नदी, ब्रह्म कपाल मंदिर, गणेश गफ़ुा व चैतन्य स्थानों पर प्रदान की जायेगी। उक्त साधनात्मक क्रियायें बस यात्रा, भोजन, बद्रीनाथ में ठहरने की व्यवस्था पंजीकरण शुल्क में सम्मिलित है।
17 मई 2017 बुधवार को हरिद्वार पहुंचना अनिवार्य हैं, पंजीकृत साधकों के लिये ही ठहरने और भोजन की व्यवस्था हरिद्वार में 17 मई सांय 04 बजे से 18 मई प्रातः 4 बजे तक ही संभव हो सकेगी।
18 मई 2017 को प्रातः 04 बजे से आराम दायक बसों से बद्रीनाथ धाम की यात्रा प्रारम्भ करना आवश्यक होगा तब ही सांय 06 बजे तक बद्रीनाथ पहुंचना संभव हो सकेगा। रूद्र प्रयाग के पास रतूड़ा स्थान पर भोजन, चाय प्रदान की जायेगी।
प्रातः 04 बजे के बाद बद्रीनाथ की यात्रा के लिये रवाना होने पर किसी भी स्थिति में उस दिन बद्रीनाथ पहुचना संभव नहीं होगा और बीच में ही साधक को स्वयं की व्यवस्था से ही ठहरना होगा और दूसरे दिन बद्रीनाथ पहुंच सकेंगे।
बहन, बेटियां, मातायें किसी भी स्थिति में अकेली नहीं आये। अस्थमा, हृदय रोगी, गठिया रोगी व अन्य बीमारी से युक्त साधक इस शिविर में भाग नहीं लें। पूरी यात्रा में सामान की और स्वयं की सुरक्षा की जिम्मेदारी साधक की स्वयं की रहेगी।
अकाल मृत्यु, दोषो, क्लिष्ट रोगो से निवृत्ति हेतु महामृत्युज्ंय रूद्राभिषेक, दुर्गति नाशक सौभाग्य प्रदायक निखिल शक्ति व शिव गौरी नारायण दीक्षा, हवन, अंकन का न्यौछावर अलग से न्यूनतम रूप में प्रदान कर सिद्धाश्रम शक्ति युक्त हो सकेंगे।
बद्रीनाथ धाम में ठहरने हेतु Dormitory में अलग-अलग पलंग की व्यवस्था की गयी है।
22 मई 2017 को प्रातः 5 बजे से हरिद्वार लौटने की व्यवस्था बसों द्वारा होगी। हरिद्वार पहुंचने पर वंहा ठहरना या अपने घर को लौटने की व्यवस्था साधक को स्वयं ही करनी होगी।
पंजीकरण शुल्क केवल कैलाश सिद्धाश्रम जोधपुर या गुरुधाम दिल्ली में व्यक्तिगत रूप से जमा करायें। ड्रॉफ़ट या सीधे खाते में जमा कर पंजीकरण REGISTRATION कराना होगा। पंजीकरण शुल्क J 11000 ( Eleven Thousand Only)
पंजीकरण शुल्क भेजने के लिए आप प्राचीन मंत्र यंत्र विज्ञान जोधपुर कार्यालय के फोन नं- 0291-2517025, 2517028, साथ ही मोबाईल नं- 7895727019, 8010088551 पर संपर्क कर विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,