वर्तमान समय में अपने जीवन को परिपूर्ण बनाये रखने के लिये, जीवन को प्रत्येक विपत्तियों से सुरक्षित रखने के लिये तथा घर में सम्पन्नता बनाये रखने के लिये, इन तीनों तत्वों की प्राप्ति अत्यधिक आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है और यह सब प्राप्त हो सकता है, भगवती तारा की साधना से!! जो जीवन की दुर्भाग्य पूर्ण परिस्थितियों का भक्षण कर असहाय, दीन और जर्जर बन चुके जीवन में विजयश्री, आनन्द, शक्ति का भाव प्रदान करती हैं।
यह दस महाविद्याओं में से एक प्रमुख महाविद्या और संसार की अद्वितीय धनदायक देवी है, हजारों वर्षों से ऋषि मुनि और हमारे पूर्वज तारा साधना सम्पन्न करते आये हैं, क्योंकि निष्ठा पूर्वक से सम्पन्न की गई, इस साधना में निश्चित ही मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
इसके साथ ही साथ इस साधना को सम्पन्न करने पर भौतिक दृष्टि से जीवन में वह जो कुछ भी चाहता है, उसे प्राप्त हो जाता है, जिससे साधक के जीवन में सुख- सम्पन्नता, प्रसन्नता, आरोग्य, आयु में वृद्धि होती है। साथ व्यक्ति जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्राप्त करता है। क्योंकि सांसारिक जीवन में अर्थ के माध्यम से ही अधिकांश सफलता प्राप्त हो सकती है।
इस साधना को नवरात्रि की अष्टमी अर्थात् 27 सितम्बर बुधवार को अथवा किसी भी रविवार की रात्रि से यह साधना प्रारम्भ की जा सकती है।
रात्रि 9 बजे के पश्चात् स्नान कर लाल धोती पहन कर लाल आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाये, सामने लकड़ी के बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा दें और उस पर तारा यंत्र स्थापित कर दें, फिर सामने चावल की सात ढेरियां बना दें, चौथी ढेरी पर तेल का दीपक स्थापित कर दें, इस दीपक के सामने ही धन वर्षिणी गुटिका को किसी पात्र में स्थापित कर दें और उसके आगे जल पात्र, कुंकुम, अगरबत्ती रख दें।
सर्वप्रथम जल से यंत्र को धोकर रख दें, अक्षत चढ़ा दें, फिर धन वर्षिणी गुटिका को जल से धोकर पौछ कर उसके आगे कागज पर किसी भी श्लाका से कुंकुम के द्वारा निम्न मंत्र लिखें-
इसके बाद एक और दीपक जलायें, साथ ही अगरबत्ती भी जला दें तथा मूंगे की माला से मंत्र जप प्रारम्भ करें, इसमें नित्य 11 माला मंत्र जप अनिवार्य है तथा यह तीन दिन अष्टमी, नवमी, दशमी तक नित्य इसी प्रकार सम्पन्न करनी है।
इसके बाद तारा यंत्र को पूजा स्थान में रख दें और धन वर्षिणी गुटिका को उसी लाल वस्त्र में लपेट कर तिजोरी अथवा जहां रूपया, पैसा रखते हों, वहां रख दें, इस प्रकार करने से यह साधना सिद्ध हो जाती है तथा जीवन में वह सब कुछ प्राप्त होता है, जो साधक की इच्छा होती है।
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