गुरुदेव मैं मध्यम परिवार का साधक हूं। हमारे परिवार में दस सदस्य हैं और हमारे पास कोई जमीन-जायदाद भी नहीं है। मैं श्राद्ध पक्ष में नारायण धाम दिल्ली गया तो आश्रम में कुछ मरम्मत कार्य चल रहा था, मैंने वहां सेवा देने की प्रार्थना की। कुछ दिन सेवा किया क्योंकि हमारे पैतृक सम्पत्ति का बंटवारा हुआ, जिसमें हमें हमारा हिस्सा नहीं देने के लिये हमारे भाईयों ने कई तरह के कुचक्र रचे थे, और समय-समय पर हमें हिस्सा ना देने की धमकी देते थे, आपने मुझे पितृदोष मुक्ति ताबीज धारण कराया था। मैंने वह ताबीज 15 दिन धारण कर विजय दशमी के दिन रावण दहन अग्नि में विसर्जित कर दिया। इसके कुछ दिनों पश्चात गुरुदेव आपकी कृपा से हमारी पैतृक संपत्ति सहज और सुलभ तरीके से बिना लडाई-झगडे हमें प्राप्त हुयी। जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी। धन्य हैं गुरुदेव आप और आपकी कृपा! आपको बारम्बार प्रणाम, हम पर ऐसी ही कृपा बनाये रखना गुरुदेव!
आपका शिष्य
अभिषेक गुप्ता-कानपुर उ-प्र
16 अक्टूबर 2017 को फेसबुक पर भगवती माता जी के बारे में संदेश प्रसारित हो रहा था जिसे देख कर मेरा मन कंपायमान हो गया और मैं बड़े ही दुःख का अनुभव कर रहा था, जैसे मैं अनाथ हो गया हूं और यही स्थिति मेरी दीपावली तक बनी रही। मैं विषाद से भरा हुआ दीपावली के रात्रि में सो गया। कोई पूजन इत्यादि करने का मन भी नहीं हुआ। रात्रि में स्वप्न में एक विचित्र स्वप्न दिखाई दिया। भगवती माता जी मुझे यह कह रही हैं कि मैं कहीं नहीं गई हूं। मैं तुम सब के बीच ही हूं और यह कह कर वह पास में बैठी माता शोभा श्रीमाली जी की देह में समा गई, इतना देख कर मेरी आंखे खुल गई और मैं इस स्वप्न का विचार करने लगा और जब इसका अर्थ समझा तो मेरा मन शांत हुआ कि अब आगे माता शोभा श्रीमाली जी में ही हमारी भगवती माता का अंश विराजमान हो गया है। गुरुदेव मैं धन्य हुआ आपका संकेत पाकर।
आपका शिष्य
भोलानन्द कटिहार (बिहार)
गुरुवर 13 अक्टूबर से मेरा मन बडा अशांत था और किसी अनहोनी का अनुभव हो रहा था, किसी अप्रिय घटना का संकेत सा मिल रहा था। परंतु ज्ञात नहीं था कि माता भगवती जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा है। 16 अक्टूबर को माता जी के सिद्धाश्रम गमन का संदेश सुनकर कांप गयी। मन दुःखी, परेशान हो गया, उसी रात स्वप्न में भगवती माता दिखाई दी तथा स्नेह पूर्वक कह रही थी बेटी तुम इतना दुःखी क्यों हो रही हो? माँ शक्ति स्वरूप होती है, जो सदा अपने पुत्र-पुत्रियों के साथ होती हैं, सद्गुरुदेव के साथ मैं भी सदा शिष्यों के साथ हूं, इतना कहकर वे अन्तरध्यान हो गई। इस दृश्य को देख कर मुझे बहुत शांति और साहस मिला।
आपकी शिष्या
मीनाक्षी सिन्हा (ललितपुर)
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