सांसारिक जीवन की अपनी अलग ही रामलीला होती है, जिसकी हर पटकथा धन पर आश्रित होती है अर्थात् गृहस्थ जीवन में अनेक आवश्यकतायें, इच्छायें होती हैं, जिनकी पूर्ति करना मनुष्य की प्राथमिकता होती है। इसके साथ ही संसार में रहते हुए जीवन यापन का आधार भी इसी धन लक्ष्मी पर आधारित होता है। यदि व्यक्ति के पास कोई इच्छा या आकांक्षा ना भी हो, तो भी उसे जीवन यापन के लिए धन की आवश्यकता पड़ती ही है, बिना धन के संसार में जीवन यापन हो ही नहीं सकता। इस प्रकार यदि देखा जाए तो जीवन की प्रथम मूलभूत आवश्यकता धन लक्ष्मी की होती है, जिसके पश्चात् व्यक्ति अन्य विषयों की ओर ध्यान दे पाता है। इसीलिए संसार में दीपावली महापर्व पर महालक्ष्मी जो सांसारिक जीवन की अधिष्ठात्री देवी हैं, उनकी स्तुति की जाती है। यदि संसार से विलग बात करें, तो इस दिवस पर अन्य षटकर्मो से सम्बन्धित साधनाओं, कुण्डलिनी जागरण, सम्मोहन, वशीकरण आदि से सम्बन्धित साधनाएं सम्पन्न की जाती हैं। परन्तु प्रत्येक सांसारिक व्यक्ति के लिए यह दिवस धन प्रदायक, आर्थिक सुदृढ़ता का दिव्य चैतन्य क्षण होता है, जिसका पूर्णरूपेण साधनात्मक उपयोग करने से वर्ष भर के लिए महालक्ष्मी तत्व को साधक अपने रोम-प्रतिरोम में समाहित कर, गृहस्थ जीवन की अभिलाषाओं, आवश्यकताओं को पूर्ण करने समर्थ बन पाता है।
लक्ष्मी केवल धन की अधिष्ठात्री ही नहीं हैं, यह सहस्त्र रूपों में विद्यमान है और सहस्त्र कोटि रूप से धारण की जाती हैं, तो जीवन योगमय, तपोमय, तेजस्वी बन पाता है। अपने में कोई आभा लेकर उत्पन्न नहीं होता, केवल अपने कर्म और भाग्य से ही आभा मण्डित होता है, इसलिए लक्ष्मी को आधार शक्ति कहा गया है। यह अंधकार व धनहीनता नाश करने वाली विष्णु प्रिया, कोटि सूर्य प्रकाश युक्त, वैष्णवी, विकासिनी, प्राण शक्ति प्रदात्री, त्रिगुण गर्विता, कीर्ति जया, आध्यात्म विद्या प्रदायिनी, सर्वमंगला, धनेश्वरी, सर्वार्थ साधिनी, सर्व कामप्रदा, सर्व भूतहित प्रदा, लोक-शोक विनाशिनी, दरिद्रता नाशिनी, वर लक्ष्मी व त्रिकाल ज्ञान सम्पन्ना कहा जाता है, यह तो लक्ष्मी के कोटि स्वरूपों में कुछ रूप ही हैं। ऐसे विविध स्वरूपों का आह्नान चैतन्य मुहुर्त में सम्पन्न कर साधक महालक्ष्मी के विविध तत्वों को स्वयं में समाहित कर पाता है, जिससे उसके जीवन में चिर-स्थायित्व रूप से लक्ष्मी का वास होता है और वह सम्पूर्णता के साथ अपने सांसारिक जीवन का पालन-पोषण कर पाता है। साथ ही उसकी सभी मनोकामनायें पूर्णता की ओर अग्रसर होती ही हैं।
कुबेर के बारे में भला कौन नहीं जानता? जनमानस में भी कुबेरपति के नाम की चर्चा खूब होती है, किसी भी धनाढ़य व्यक्ति को स्वभावतः लोग कुबेरपति, कुबेरवान आदि नामों से सम्बोधित करते हैं, जिसका सीधा सा तात्पर्य व्यक्ति के आर्थिक पक्ष से होता है। यानि जो व्यक्ति सर्व सम्पन्न है, जो सभी सुख- सुविधाओं से युक्त है, जिसके जीवन में कोई अभाव नहीं वही कुबेरपति है। भगवान कुबेर धन के कोषाध्यक्ष हैं, जिन्हें भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त है, ब्रह्माण्ड के सभी धन, सम्पदा का लेखा-जोखा, लेना-देना इन्हीं का कार्यभार है। जिनकी अनुकम्पा से व्यक्ति बेहिसाब धन की प्राप्ति कर सकता है। यही एक ऐसे देव हैं, जिनकी कृपा प्राप्त होने पर असीमित धन लाभ की प्राप्ति की जा सकती है। धन लाभ को पूर्णता से प्राप्त करने के लिए भगवान कुबेर की साधना अत्यन्त आवश्यक है, तब ही प्रचुर मात्रा में धन की उपलब्धता संभव हो पाती है। देवी-देवताओं के साथ उनके गणों की भी कृपा आवश्यक होती है।
एक वर्ष से सिद्धाश्रम में विराजित मां भगवती के पूर्ण वरदहस्त की प्राप्ति भगवती महालक्ष्मी स्वरूप में आत्मसात करने की यह दिव्य साधना सम्पन्न कर साधक मां भगवती के कारुण्यमय चेतनावान आशीर्वाद् से सराबोर होगा। साथ ही सिद्धाश्रम संस्पर्शित ऊर्जा, चेतना द्वारा जीवन के सभी अभावों, अवरोधों व धनहीनता जैसी विकट परिस्थितियों में विजय प्राप्त कर, जीवन को सभी दृष्टि से पूर्ण बना सकेगा। दीपावली महापर्व की दिव्य चैतन्यता में कुबेर धन लक्ष्मी साधना पूर्ण कुबेरमय धन शक्ति युक्त जीवन निर्माण का मार्ग है, जिससे आनन्द, सुख, भोग, विलास, सौन्दर्य, रस, आभूषण, वस्त्र, कीर्ति, गौरव, भू-भवन, वाहन आदि मनोकामनाएं निश्चित ही पूर्ण होंगी।
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