सब दीप जलाते चौखट पर मन का दीप जलाओ तुम प्रेम, त्याग, करुणा भरकर एक सच का दीप जलाओ तुम अंधियारा जब घनघोर हो तो एक छोटी सी रोशनी की हल्की सी किरण भी उम्मीद जगाती है कि यह अंधकार छंटेगा। दीपों का यह पर्व भी मन की सुप्त, अवचेतन आशाओं को जगाने का भाव है। एक नई आशा, एक नई प्रेरणा, एक नए उत्साह के साथ कुछ कर जाने का साहस प्रदान करने वाला यह दीपावली महापर्व ऐसे ही सभी पर्वो में अग्रणी नहीं है।
इस महापर्व को सम्पन्न करने का भाव ही नकारात्मकता के अंधकार को पार करना है, अज्ञानता से ज्ञान की ओर बढ़ना है, सद्गुणों का विकास करना है और इन सभी क्रियाओं का सीधा सा तात्पर्य है जीवन की सभी दिशाओं को प्रकाशित करना, क्योंकि प्रकाशवान जीवन में ही सुख-समृद्धि-सम्पन्नता के बीज का रोपण हो सकता है। इसलिए पहला सूत्र जीवन के अंधियारे को समाप्त करना है।
दीपो के महापर्व पर मन के भीतर भी एक दीप प्रज्ज्वलित करना जो मिटा सके अर्न्तमन के अंधियारे को और ज्योतिर्मंय प्रकाश से प्रकाशित कर सके
इस महापर्व में सुख-समृद्धि और बुद्धि के विस्तार का रहस्य छिपा है, इसलिए इस दिन लक्ष्मी व गणेश का पूजन, अर्चना, साधना, उपासना आदि क्रियायें सम्पन्न की जाती हैं। विघ्नहर्ता गणेश बुद्धि के देवता हैं एवं सुख-समृद्धि-सम्पन्नता की प्रतीक लक्ष्मी, जिनकी साधना, उपासना से बुद्धि की वृद्धि अर्थात् सुभावों का विस्तार होता है और जहां सुभावों का विस्तार होता है वहीं लक्ष्मी स्थिर स्वरूप में विराजित होती हैं अर्थात् सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
सुख-समृद्धि सभी मनुष्यों के जीवन का आधार है और सभी के व्यक्तिगत जीवन की आवश्यकता भी, क्योंकि सुख का आकलन केवल भौतिकता के आधार पर नहीं किया जा सकता है और ना ही समृद्धि का तात्पर्य केवल सांसारिक जीवन के भोगों से है। सुख का तात्पर्य है आत्मिक-मानसिक शांति, जीवन का सबसे बड़ा सुख यही है। जिसके जीवन में आत्मिक और मानसिक सुख है, वही सुखी कहा जा सकता है। इसी तरह समृद्धि का अर्थ केवल रूपये, पैसे, स्वर्ण, आभूषण से नहीं है, ऐसी समृद्धि तो खोखली है, आज है कल नहीं रहेगी। समृद्धि का तात्पर्य है आप सद्गुणो, उच्चतम सुसंस्कारों, श्रेष्ठ विचारों, अच्छे चिंतन से विभूषित हो और अभाव मुक्त भाव से आत्मनिर्भर होकर सम्मान के साथ अपनी आजीविका अर्जित करते हों, ऐसी समृद्धि ही मनुष्यता को जीवंत बनाती है, आपके आत्म सम्मान को स्थिर बनाये रखती है।
इसीलिये दीपावली महापर्व पर दीप प्रज्ज्वलित कर सर्वप्रथम प्रकाश का प्रबन्ध किया जाता है। यह दीप जो प्रज्ज्वलित किया जाता है, यह प्रतीक है मन के अंधकार को दूर करने का, भगवान बुद्ध ने कहा अप्प दीपो भवः अर्थात् अपना दीपक स्वयं बनो, अपने मन के भीतर का दीपक स्वयं जलाओ, आंतरिक दीपक जलाने पर भीतर-बाहर दोनो आलोकित हो जाते हैं और जीवन को एक नई दिशा मिलती है, मन के विकार समाप्त हो जाते हैं। इसलिए दीप प्रज्ज्वलित करने के बाद लक्ष्मी-गणेश का पूजन किया जाता है अर्थात् सबसे पहले दीपक जलाया जाता है, जिससे मन का अंधकार दूर हो, फिर गणेश की वन्दना की जाती है, जिससे बुद्धि का सुव्यवस्थित विकास हो और जब मन के विकार दूर होंगे, तब ही बुद्धि सही दिशा में विकास करती है और फिर लक्ष्मी की आराधना की जाती है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति हो। जो जीवन में आत्मिक व मानसिक शांति प्रदान कर सके।
इस दीपावली महापर्व पर अपने मन का दीप जलायें, जो आपको आन्तरिक रूप से आलोकित करें, आपके जीवन को एक नई ऊर्जा, नई सोच, नये विचार, नये चिंतन दे, जिससे आपकी भावनाएं और कर्म शक्ति का भाव ज्योतिर्मंय स्वरूप में दैदीप्यमान हो सकें और उस प्रकाश से स्वयं के साथ-साथ आपके अपने परिवार के लिए भी कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो।
निखिल ज्ञान ज्योति से युक्त होकर आप निखिलमय——बन सके ऐसी ही मैं आप सभी को इस प्रकाश पर्व की—– अनन्त शुभकामनाएं—— देता हूं, आपके सुख-समृद्धि लक्ष्मीमय———-जीवन की कामना करता हूं—–
———-कल्याण हो—–!!!
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