यह रत्न पंच रत्नों में महा रत्न कहा जाता है, यह देव गुरू बृहस्पति का पुष्पराग रत्न है, बृहस्पति शुभ कर्मों के प्रेरक और सभी का भला करने वाले देव हैं, इसे धारण करने वाला देव हैं, इसे धारण करने वाला व्यक्ति शुभ कर्म के लिये प्रेरित होता है, धार्म, कर्म आदि पुण्य कार्यो में उसकी विशेष रूचि रहती है, यह प्रेमी युगल के लिये सर्व लाभकारी है, इससे गृहस्थ जीवन में प्रेम व माधुर्य की प्राप्ति होती है। संतान सुख, पुत्र प्राप्ति युक्त गृहस्थ जीवन में प्रेम व माधुर्य की प्राप्ति होती है। अखण्ड सुहाग रक्षा, वंश वृद्धि में इसका महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इसलिये यह सभी रत्नों में पवित्र माना जाता है।
इसके द्वारा कन्या विवाह में आ रही बाधाओं का निराकरण होता है। इससे पाप, विचारों व कृत्यों का शमन होता है, आध्यात्मिक विचार प्रबल होते हैं और तनाव मुक्त व चित्त शांत बना रहता है, यह एक Multipurpose रत्न है, जो धान, विद्या, सन्तान, विवाह व सर्व सुख प्रदाता है। मिथुन लग्न एवं कन्या लग्न वालों का सप्तमेश होने के कारण, इसे धारण करने पर उनका विवाह शीघ्र योग्य एवं मनोवांछित होता है। वैवाहिक बाधा निवारण में इस रत्न से महा सहयोग प्राप्त होता है। यह रत्न धान प्रदायक व सफ़ल, श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण करता है।
धनु और मीन राशि के व्यक्तियों को यह रत्न धारण करना चाहिये, जो शीघ्र सफ़लता प्र्रदायक व दीर्घायु जीवन का कारक है। मेष व कर्क लग्न वालों के लिये यह भाग्य के द्वार खोलता है, जो व्यक्ति गुरू द्वारा संचालित हो अथवा गुरू से दीक्षित हो या जिसकी कुण्डली में गुरू प्रधान हो उनके लिये पुखराज धारण करना आवश्यक है। किसी भी ग्रह में बृहस्पति का अन्तर चल रहा हो तो, पुखराज धारण करें।
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