हर वर्ष शराब, सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू के कारण हजारों लोग गंभीर बीमारियों से पीडि़त होकर असमय मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, जिनके कारण उनके साथ ही साथ पूरा परिवार तनाव ग्रसित निर्धन और परेशान हो जाता है। नशा स्वास्थ्य के लिये इतना अधिक हानिकारक है, कि इससे शरीर का पूरा तंत्र ही विक्षिप्त हो जाता है। साथ ही साथ आदत लोगों में इतनी बढ़ गयी है कि चाह कर भी उससे छुटकारा पाना मुश्किल सा प्रतीत होता है।
साधकों के लिये तो अवश्य ही इन बुरी आदतों से दूर रहना ही चाहिये नहीं तो उनका सारा श्रम, प्रयास बर्बाद हो जायेगा। लोगों ने गृहस्थ जीवन में इस रोग को जाने-अनजाने में पाल रखा है, इस वजह से उन्हें ही नहीं परिवार के लोगों को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और वे चाहते हुये भी इन से छुटकारा नहीं पा रहे हैं।
अपने घर में ऐसा वातावरण देखकर जब वे बचपन में अपने माता-पिता को या घर में बड़े-बूढ़ों को सिगरेट या शराब पीते हुये देखते हैं और जब घर वाले या दूसरे विरोध करते हैं फिर भी वे पीते है, तो घर के बच्चों या युवाओं पर यह प्रतिक्रिया होती है कि अवश्य इसमें कुछ आनन्द है तभी बड़े इसे छोड़ते नहीं और वे भी छुप कर पीना शुरू कर देते हैं।
अब आप स्वयं कल्पना करें कि आपकी इन बुरी आदतों से आपके बच्चों पर आप क्या प्रभाव डाल रहे हैं उनको आज्ञा देने या मना करने से वे पीना बन्द नहीं करेंगे अपितु जब आप स्वयं को आदर्श उपस्थित करेंगे अर्थात् सद्संस्कार व सुक्रियाओं से ही घर के वातावरण में अनुकूलता आयेगी।
मनोवैज्ञानिक स्वरूप में स्पष्ट है कि अगर पिता या परिवार का सदस्य शराब या सिगरेट पीता है तो निश्चय ही उसका बेटा शराब या सिगरेट पीता ही है।
यौवन का प्रदर्शन कुछ-कुछ युवकों में यह धारणा बन गयी है कि वही जवान या युवा कहलाता है जो सिगरेट के छल्ले बनाता है या शराब पीता है और इस प्रकार वे अपने यौवन का प्रदर्शन करने के लिये सिगरेट पीना शुरू कर देते है और यही प्रदर्शन बाद में उनके लिये अनेक रोगों की उत्पत्ति जड़ स्वरूप में निर्मित होती है।
अपने गम को भुलाने के लिये कुछ लोगों के मन में यह धारणा है कि हम बहुत गमगीन हैं, हम पर बहुत परेशानियां हैं और इन परेशानियों से छुटकारा पाने के लिये सिगरेट या शराब पीनी पड़ती है और इस प्रकार अपने विचारों को पुष्टि के लिये वे इन दोनों का सहारा लेते हैं।
सिगरेट तो आग ही आग है, निश्चय रूप से यह शरीर को कमजोर करती है और कई प्रकार के रोग उत्पन्न कर देती है फिर जब शराब जैसा पेट्रोल उस आग को मिल जाये तो शरीर की क्या स्थिति हो सकती है, इसकी कल्पना की जा सकती है, ये दोनों स्वास्थ्य को तो खराब करते ही है, धीरे-धीरे व्यक्ति के मन में स्वयं के प्रति घृणा भी होने लगती है, जब वह चाहते हुये भी इससे छुटकारा नहीं पा सकता।
स्त्रियों के लिये भी सिगरेट उतनी ही हानिकारक है, इससे नाडि़यां सिकुड़ जाती है, खून में जहर तत्व मिल जाने से शरीर में केई रोग हो जाते हैं। जो स्त्रियों की सम्पूर्ण काया को बेडोल तथा रोग युक्त निर्मित कर लेती हैं।
नशा से मुक्त होने के उपाय
मन पर कठोर नियन्त्रण कीजिये- जब मन में शराब या सिगरेट पीने की इच्छा होती है तब मन को पूर्ण रूप से नियन्त्रण कीजिये, सोच लीजिये कि मैं इस मन का गुलाम नहीं बनूंगा तो वह प्रभाव समाप्त हो जायेगा और उस समय आप बिना शराब या सिगरेट पीये भी रह सकते हैं। इस प्रकार नित्य थोड़ा-थोड़ा ही सही, मन पर नियन्त्रण बढ़ाते जायेंगे तो एक दिन निश्चय ही आप शराब या सिगरेट से पूर्ण मुक्ति पा सकेंगे। कम कीजिये- नित्य शराब या सिगरेट की मात्र घटाते जाइये, ऐसे करके एक दिन आप शराब या सिगरेट रहित जीवन शुरू कर सकते हैं।
संकल्प कीजिये- आज प्रातः काल उठ कर अपने मन में निश्चय कर लीजिये कि अपने आप पर मुझे गर्व है, आज से मैं किसी भी हालत में मद्यपान व धूम्रपान नहीं करूँगा और यदि आप अपने आप पर संयम सात दिन रख दें तो निश्चय ही इससे छुटकारा पा सकते है।
दूसरे शौक पालिये- जब आदमी खाली होता है तभी उसे शराब या सिगरेट पीने की याद आती है, ऐसी स्थिति आते ही आप किसी दूसरे कार्य में लग जाइयें, धार्मिक पुस्तकों व श्रेष्ठ वचनों को नियमित पढ़ना शुरू कर दीजिये, बगीचे में घूम आइये या कोई ऐसा कार्य प्रारम्भ कर दीजिये जो आप की रूचि का है, अपने आपको व्यस्त रखने की क्रिया से ही आपका मन उस शराब या सिगरेट से हट जायेगा धीरे-धीरे आप इस अभ्यास को बढ़ाइये।
उन दोस्तों से दूर रहिये- शराब या सिगरेट दोस्तों के बीच ही पीने की लालसा बनती है, जब उनको पीता देखते हैं, तो आप भी सिगरेट जला लेते हैं, आप इस सप्ताह प्रतिज्ञा कर लीजिये कि मैं उन दोस्तों से कट जाऊँगा, हो सकता है वे आपको उलाहना दे पर आप चिन्ता मत कीजिये सप्ताह भर में आपको काफी अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकेंगे।
यह आप अच्छी तरह से समझ ले कि आपका दुःख आपका गम शराब या सिगरेट पीने से दूर नहीं होता, यदि दुःख या गम है तो वह चौबीस घण्टे का है और सिगरेट या शराब तो कुल पाँच मिनट से 1 घंटा के लिये पीते हैं, बाकी समय तो दुःख से आबद्ध है ही, फिर किस प्रकार से शराब या सिगरेट आपके गम को दूर कर सकता है, यह तो मन का वहम है या मन को धोखा देने का एक प्रयास है, आप अपने आपको धोखा मत दीजिये।
साधना में सफलता प्राप्त करने के लिये साधक के लिये आवश्यक है कि वे इन प्रवृत्तियों को छोड़कर अपने मन को धीरे-धीरे साधनाओं की ओर अग्रसर करें, बिना सात्विक जीवन के साधना में सफलता प्राप्त नहीं हो सकती है और ना ही बिना सात्विक भावना के जीवन में अनुकूलता आ सकती है। अतः अर्नगल भावों और विचारों पर नियन्त्रण करने से ही मन आपके नियन्त्रण में होगा। इससे भविष्य में ज्ञान शक्ति और आत्म शक्ति का विस्तार होता है। साथ ही अपने जीवन को श्रेष्ठ कार्यो में लगायें जिससे बौद्धिक और शारीरिक क्षमता का विकास हो सकें।
हर माँ अपने पुत्र को आरोग्य और दीर्घायु बढ़ते हुये देखना चाहती है और इस माँ की भी यही अभिलाषा है कि आप सभी सद्गुरू के मानस पुत्र अपने जीवन में सुकर्म और सुभावों से ही श्रेष्ठता से प्राप्त कर सके। सात्विकता ही आपके भौतिक और आध्यात्मिक सफलता की कुंजी है। मुझे आप सभी पर पूरा भरोसा है कि आप अपनी माँ की इस अभिलाषा को अवश्य पूरा करेंगे।
सस्नेह आपकी माँ
शोभा श्रीमाली
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